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चीन की कुटिलता

नववर्ष के मौके पर लद्दाख क्षेत्र में दस जगहों पर भारतीय और चीनी सैनिकों ने मिठाइयों का आदान-प्रदान किया था लेकिन चीन की कुटिल चालों के चलते इन मिठाइयों की मिठास नहीं बची।

03:05 AM Jan 05, 2022 IST | Aditya Chopra

नववर्ष के मौके पर लद्दाख क्षेत्र में दस जगहों पर भारतीय और चीनी सैनिकों ने मिठाइयों का आदान-प्रदान किया था लेकिन चीन की कुटिल चालों के चलते इन मिठाइयों की मिठास नहीं बची।

नववर्ष के मौके पर लद्दाख क्षेत्र में दस जगहों पर भारतीय और चीनी सैनिकों ने मिठाइयों का आदान-प्रदान किया था लेकिन चीन की कुटिल चालों के चलते इन मिठाइयों की मिठास नहीं बची। अब ड्रेगन की चालों के पीछे छिपे खतरनाक खेल का पूरा सच सामने आ चुका है। हाल ही में चीन ने अरुणाचल प्रदेश की 15 जगहों के चीनी नाम रख दिए हैं। चीन अरुणाचल प्रदेश को जांगतान या दक्षिणी तिब्बत बताता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का यह ताजा कदम उसके नए सीमा कानून से जुड़ा है जो एक जनवरी से लागू कर दिया गया है। फिर यह खबर आई कि गलवान घाटी में भारत और  चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष होने के डेढ़ वर्ष बाद वहां पर चीनी झंडा फहरा दिया है। यद्यपि भारत के कब्जे वाली भूमि पर झंडा फहराये जाने की खबरों को भारतीय सेना ने गलत बताया है और कहा है कि चीनी सैनिकों ने झंडा विवादित क्षेत्र में फहराया है। सेना ने वायरल वीडियो काे चीन का ‘प्रोपेगंडा वार’ बताया। भारतीय सैनिकों ने भी गलवान घाटी में तिरंगा फहराकर चीन के दुष्प्रचार का मुंह तोड़ जवाब दे दिया है।
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अब सैटेलाइट तस्वीरों से यह पता चला है कि चीन पैंगोंग त्सो झील पर एक पुल तैयार कर रहा है ताकि उसके सैनिक झील के उत्तर और दक्षिण इलाकों में आसानी से आवागमन कर सके। 2019 में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण दोनों में भारत और चीन की सेनाओं में विवाद  हुआ था। झील के उत्तर में ​विवादित​ फिंगर एरिया है तो दक्षिण में कैलाश हिल्स रेंज और  रेचीना दर्रा है, हालांकि  बाद में दोनों ही जगह पर डिसइंगेजमेंट हो गया था लेकिन पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं में तनाव जारी है। दोनों ही सेनाओं के 60-60 हजार सैनिक वहां तैनात हैं। इसके अलावा टैंक, तोप और मिसाइलों का जखीरा भी है। करीब 140 किलोमीटर लम्बी पैंगांग झील के दो-तिहाई हिस्से पर यानि करीब सौ किलोमीटर पर चीन का कब्जा है। ऐसे में चीन के सैनिकों को एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए नौकाओं का सहारा लेना पड़ता है लेकिन नए पुल से एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंचना आसान हो जाएगा।
कभी डोकलाम तो कभी गलवान ताे भी सीमावर्ती क्षेत्रों में गांव बसाना चीन की ऐसी कुटिल चालें हैं जिनका संबंध राष्ट्रपति शी जि​नपिंग की विस्तारवादी और ​विघटनकारी नीतियों से है। चीन अब ऐसा देश बन चुका है कि वह जिसे अपना मित्र  राष्ट्र मानता है, उसके साथ ही विश्वासघात करने से संकोच नहीं करता।
चीन ने अरुणाचल राज्य स्थित सेला दर्रे का नाम बदलकर ‘से-ला’ कर ​दिया । उसने अन्य क्षेत्रों के नाम भी बदले। भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीनी नाम के बदलाव से यह तथ्य नहीं बदल जाता कि यह स्थान भारत का हिस्सा है लेकिन इससे चीन द्वारा मनोवैज्ञानिक युद्ध पर जोर देने की बात रेखांकित होती है। 
अरुणाचल में 13,700 फुट ऊंचे सेला दर्रे में शीर्ष पर भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा लगाए गए स्मृति लेख पर लिखा है-‘‘हे प्रिय मित्र, जब आप सड़क के आखिर में पहुंचते हैं तो उसके ठीक आगे हमेशा एक पहाड़ी होती है, जिस  पर चढ़ना होता है।’’ नाम बदलने की कवायद में ‘जगनान’ या दक्षिण तिब्बत के आठ गांवों और कस्बों, चार पहाड़ियों और दो नदियों को शामिल  किया है। चीन हिमालय भारत के कुछ हिस्सों पर अपना दावा करने के​ लिए नक्शाें के नामों में बदलाव की कवायद कर रहा है। 
चीन एक तरह से विमान पर किसी मोहरे को हिलाये बिना शतरंज खेलता है। चीन ने 1962 के सीमा युद्ध में भी सेला दर्रे को निशाना बनाया था। इससे पहले भी वर्ष 2017 में चीन ने छह इलाकों के नाम बदले थे। भारत ने चीन के इन कदमों पर कड़ा एतराज जताते हुए साफ कर दिया है कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग है, ऐसे में चीन अगर किसी इलाके का नाम बदल कर फर्जी दावों की शुरूआत करता है तो भारत उसे सहन नहीं करेगा और किसी भी तरह से दखल का उसी भाषा में जवाब दिया जाएगा। वर्ष 2020 में भारतीय सेना ने चीन को जैसे को तैसा कर ऐसा सबक सिखाया था कि उसकी सारी हेकड़ी निकल गई थी। एक तरफ जहां गलवान में खूनी झड़प हो गई थी, वहीं पैंगोंग झील के पास भारतीय सेना ने ऊंचाई पर पोजीशन लेकर चीन को यह सोचने को मजबूर कर दिया था कि अब उसकी पहले जैसी दादागिरी नहीं चलेगी। भारतीय नेतृत्व और सैन्य प्रतिष्ठान ने अपनी रक्षा तैयारियों को बढ़ाकर यह संदेश दे दिया  है कि अब भारत 1962 वाला भारत नहीं है। भारत एलएसी और एलओसी दोनों की सुरक्षा के लिए एस-400 पंजाब के एक वायुसेना अड्डे पर तैनात हो जाएगा जो पाकिस्तान और चीन की किसी भी हिमाकत का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम होगा। आज के अनिश्चित माहौल में युद्ध की आशंकाओं को खारिज नहीं किया जा सकता। इसीलिए मोदी सरकार की भारतमाला परियोजना के तहत बीते 6-7 वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और सुरंगों का निर्माण किया गया है। भारत को यह अहसास हुआ कि  अब पुरानी रणनीति पर चलना ठीक नहीं क्योंकि चीन लम्बे समय से भारत ​विरोधी गतिविधियों में लगा हुआ है। भारत अब  साम​रिक  सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं पर काम कर रहा है। भारत चीन की हर चाल का जवाब देने के​ लिए तैयार है, क्योंकि शत्रु तो शत्रु होता है जिससे निपटना भारत सरकार की ही ​​जिम्मेवारी है।
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