For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

चीन की तिलमिलाहट

चीन के साथ भारत के सम्बन्धों की जब भी हम समीक्षा करेंगे तो ‘तिब्बत’ का प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठेगा क्योंकि भारत की पर्वतीय हिमालय की सीमाएं इसी से मिलती हैं ।

01:15 AM Jul 09, 2022 IST | Aditya Chopra

चीन के साथ भारत के सम्बन्धों की जब भी हम समीक्षा करेंगे तो ‘तिब्बत’ का प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठेगा क्योंकि भारत की पर्वतीय हिमालय की सीमाएं इसी से मिलती हैं ।

चीन की तिलमिलाहट
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों की जब भी हम समीक्षा करेंगे तो ‘तिब्बत’ का प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठेगा क्योंकि भारत की पर्वतीय हिमालय की सीमाएं इसी से मिलती हैं । यह भी कम विचारणीय मुद्दा नहीं है कि 2003 में भारत की तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने उस तिब्बत को चीन का स्वायत्तशासी अंग स्वीकार क्यों किया जिस पर चीन ने 1949 में अपनी आजादी के बाद बल पूर्वक सेना की मदद से अधिकार किया था। बदले में चीन ने तब सिक्किम को भारत का अंग स्वीकार किया था मगर इसके तुरन्त बाद ही हमारे अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी भाग कह कर इसे अपना अधिक्षेत्र कहना शुरू कर दिया था। मगर जून 2020 से पूर्वी लद्दाख के इलाके में चीन ने जिस तरह भारतीय सीमा में अतिक्रमण करके छोटे सैनिक संघर्ष को दावत दी थी उसकी यादें अभी तक जीवित हैं क्योंकि इस संघर्ष में भारतीय सेना के 20 रणबांकुरे शहीद हुए थे। लद्दाख की सीमाएं तिब्बत से ही लगती हैं जिसे अब चीनी सीमा कहा जाने लगा है। भारत में तिब्बत की निर्वासित सरकार अभी भी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर से काम करती है जिसके मुखिया आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा हैं।
Advertisement
हालांकि चीन ने 1950 से ही तिब्बत में अतिक्रमण शुरू कर दिया था मगर दलाई लामा 1959 में ही भारत आये थे और तत्कालीन सरकार ने उन्हें शरण दी थी। दलाई लामा का भारत में हर सच्चा भारतीय दिल से सम्मान करता है क्योंकि वह केवल शान्ति व भाईचारे और विश्व सौहार्द की बात करते हैं। चीन से उनका यह रुतबा बर्दाश्त नहीं हो पाता और वह शुरू से ही कहीं न कहीं दलाई लामा को भारत में शरण देने की भारत की ‘हिम्मत’ को तोलना चाहता है। कुछ विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि 1962 में चीन का भारत पर अचानक हमला इसी वजह से किया गया था क्योंकि चीन को यह भरोसा नहीं था कि दोनों देशों के बीच की सीमाओं के मामले में भारत तिब्बत को बीच में ला सकता है। परन्तु 2003 में इस अवधारणा में जबर्दस्त बदलाव आया क्योंकि स्वयं भारत ने ही तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार लिया। मगर चीन ने अपने विस्तारवादी रवैये को नया आयाम देते हुए अरुणाचल प्रदेश पर निगाहें गड़ानी शुरू कर दीं और लद्दाख से मिलती भारत-तिब्बत नियन्त्रण सीमा रेखा की स्थिति बदलने की रणनीति तैयार की जिससे वह पाक अधिकृत कश्मीर क्षेत्र तक बेफिक्र होकर अपनी सामरिक रणनीति को मजबूत करते हुए पाकिस्तान के सहयोग से चल रही वाणिज्यिक परियोजनाओं को बेखटके अंजाम दे सके। जून 2020 की घटना इसी रणनीति का परिणाम मानी जाती है। भारत ने उसे यहीं पकड़ा और नियंत्रण रेखा पर उसके मुकाबले का माकूल सैनिक जमावड़ा करके यह सुनिश्चित किया कि नियन्त्रण रेखा को बदलने की चीन की कोशिशों पर पानी फिर सके। इसमें भारत आंशिक रूप से सफल भी रहा मगर सीमा पर अभी तक जारी तनाव से यही लगता है कि चीन अपनी ‘विस्तारवादी धौंस’  को छोड़ना नहीं चाहता।  पूर्वी लद्दाख में सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं जिससे यह नहीं कहा जा सकता कि सैनिक सद्भाव व नियन्त्रण रेखा पर शान्ति व सौहार्द का माहौल बनाये रखने के लिए पूर्व में दोनों देशों की सरकारों के मध्य जितने भी समझौते हुए हैं चीन उनका पालन कर रहा है। अतः चीन की दुखती रग को छूने से यदि उसे तिलमिलाहट होती है तो इसे कूटनीति में ‘टेढी चाल’  कहा जाता है। मगर एेसा नहीं है कि भारत-चीन के बीच कूटनीतिक व राजनयिक स्तर पर बातचीत नहीं है। यह बातचीत पिछले 50 वर्षों से लगातार जारी है।
पिछले दिनों दलाई लामा 87 वर्ष के हुए तो प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उनके जन्म दिन पर शुभकामनाएं दीं। इस पर चीन तिलमिला उठा। दलाई लामा भारत के सम्मानित मेहमान हैं और अब तो वह स्वयं को भारतीय तक मानते हैं। चीन को यदि इस पर भी आपत्ति होती है तो हमारी बला से। चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने पिछले दिनों ब्रिक्स (ब्राजील, भारत, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका) के सम्मेलन में कहा कि क्षेत्रीय राष्ट्रीय गुटों का गठन उचित नहीं है इससे वैश्विक स्तर पर गुटबाजी को बढ़ावा मिलता है जिससे विभिन्न देशों के आपसी सम्बन्धों पर विपरीत असर पड़ता है। जाहिर है उनका इशारा क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान व  आस्ट्रे​लिया) के हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में नौसैनिक सहयोग से था। इससे भी चीन तिलमिलाया लगता है। उसकी तिलमिलाहट बताती है कि वह भारत की बढ़ती अन्तर्राष्ट्रीय महत्ता को पचा नहीं पा रहा है। मगर चीन व भारत कई और वैश्विक संगठनों के सदस्य भी हैं। इनमें जी-20 संगठन प्रमुख है जिसमें दुनिया के बीस औद्योगिक राष्ट्र हैं। इस बार इस संगठन की अध्यक्षता करने का जिम्मा भारत का है। भारत ने इसका शिखर सम्मेलन पहले जम्मू-कश्मीर में करने का विचार रखा था । चीन को इस पर भी आपत्ति हुई मगर भारत ने इसी रास्ते पर चलते हुए अब इसका सम्मेलन लद्दाख में करने का फैसला किया है। जाहिर है कि लद्दाख 5 अगस्त, 2019 तक जम्मू-कश्मीर राज्य का ही हिस्सा था। चीन इस पर तिलमिलाहट तो दिखा रहा है मगर खुल कर कुछ नहीं बोल पा रहा है।
जी- 20 संगठन के विदेशमन्त्रियों का सम्मेलन फिलहाल इंडोनेशिया में होना है जिसके लिए विदेशमन्त्री जयशंकर बाली गये हुए हैं। यहां वह चीन के विदेशमन्त्री वांग-यी से मुलाकात करके चीन को समझा रहे हैं कि वह आपसी संजीदगी और विश्वास व हितों का ध्यान रखते हुए मौजूदा सीमा तनाव को समाप्त करने की तरफ निर्णायक तरीके से बढ़े। भारत की यह कूटनीति निश्चित रूप से रंग लायेगी क्योंकि दलाई लामा 15 जुलाई से सिन्धु नदी के किनारे बसे एक लद्दाखी गांव में एक महीने तक प्रवास करके लोगों को शान्ति व सद्भावना की शिक्षा देंगे जो बौद्ध धर्म का परम सिद्धान्त है। संभवतः सैनिक उमादी चीन को कुछ अक्ल आये !
Advertisement
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×