भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम से हिला चीन! आखिर क्यों पाकिस्तान की मदद कर पछता रहा ड्रैगन?
पाक की मदद कर पछता रहा चीन, भारतीय रक्षा प्रणाली से मिली चुनौती
भारतीय एयर डिफेंस प्रणाली ने पाकिस्तान की चीनी PL-15 मिसाइल को हवा में नष्ट कर दिया, जिससे चीन की सैन्य तकनीक पर सवाल उठने लगे हैं। भारत ने पाकिस्तान के एचक्यू-9पी सिस्टम को भी तबाह कर दिया, जिससे चीन द्वारा दिए गए हथियारों की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा हुआ। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर PL-15 मलबे की मांग बढ़ रही है।
Indian Air Defense System: भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में बढ़े सैन्य तनाव के दौरान भारतीय वायुसेना ने अत्याधुनिक एयर डिफेंस प्रणाली से अपनी ताकत का जबरदस्त प्रदर्शन किया. जिसका अंदाजा ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान से छिड़े सैन्य संघर्ष को देखकर लगाया जा सकता है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच हुए इस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान की ओर से दागी गई चीनी PL-15 मिसाइल को भारतीय एयर डिफेंस ने हवा में ही नष्ट कर दिया था. इतना ही नहीं, भारतीय टीम ने इस मिसाइल के अवशेष भी सुरक्षित इकट्ठा कर लिए हैं, जिससे चीन की सैन्य तकनीक पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं.
HQ-9P सिस्टम को किया ध्वस्त
भारत ने न केवल मिसाइल को नाकाम किया, बल्कि लाहौर के समीप स्थित पाकिस्तान के एचक्यू-9पी एयर डिफेंस सिस्टम को भी सटीक निशाने पर लेकर पूरी तरह तबाह कर दिया. इस कार्रवाई ने चीन द्वारा पाकिस्तान को दिए गए तथाकथित अत्याधुनिक हथियारों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
वैश्विक शक्तियों की PL-15 मलबे में रुचि
इस दौरान भारतीय वायुसेना के पास मौजूद पीएल-15 मिसाइल के मलबे की अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग बढ़ रही है. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के फाइव आईज़ गठबंधन के देशों के अलावा फ्रांस और जापान जैसे तकनीकी रूप से उन्नत राष्ट्र भी इस मलबे की रिसर्च के लिए भारत से अनुरोध कर चुके हैं. उनका उद्देश्य चीन की सैन्य क्षमताओं की सच्चाई को गहराई से समझना है.
PL-15 के दावों पर उठे सवाल
चीन लंबे समय से पीएल-15 को दुनिया की सबसे एडवांस एयर-टू-एयर मिसाइल बताता रहा है. इसमें AESA रडार सीकर, डुअल-पल्स मोटर और टू-वे डेटा लिंक जैसे फीचर्स होने का दावा किया गया है. चीन यह भी कहता रहा है कि पीएल-15, अमेरिका की एआईएम-120 और यूरोप की मीटियोर मिसाइल से कहीं अधिक प्रभावशाली है. लेकिन भारत द्वारा इसे हवा में ही निष्क्रिय किए जाने के बाद इन सभी दावों की सच्चाई पर संदेह गहराने लगा है.
चीन को रिवर्स इंजीनियरिंग का डर
अब जबकि भारत के पास पीएल-15 का मलबा सुरक्षित है, बीजिंग की चिंताएं बढ़ गई हैं. चीन को भय है कि जैसे वह वर्षों से अन्य देशों की सैन्य तकनीक की नकल कर अपने हथियार बनाता आया है, वैसे ही अब भारत या पश्चिमी देश उसकी मिसाइल को रिवर्स इंजीनियर करके उसकी तकनीक की पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं.
पहले भी लगे हैं चीन पर नकल के आरोप
चीन पर पहले भी अमेरिकी और रूसी सैन्य उपकरणों की नकल करने के गंभीर आरोप लग चुके हैं. जे-35ए को अमेरिका के एफ-35 की नकल, जे-10 को एफ-16 से प्रेरित और जे-15 को रूसी एसयू-27 पर आधारित बताया जाता है. जेड-20 हेलिकॉप्टर को अमेरिकी ब्लैक हॉक और सीएच -5 ड्रोन को एमक्यू -9 रीपर का चीनी संस्करण माना जाता है. अब PL-15 के मलबे के हाथ लगने से चीन की तथाकथित ‘मूलभूत तकनीकी बढ़त’ वैश्विक मंच पर उजागर हो सकती है.
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भारत की रणनीतिक बढ़त से दुश्मनों में चिंता
इन घटनाओं के बाद यह साफ हो गया है कि भारत न केवल सैन्य तकनीक में आत्मनिर्भर हो रहा है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था में भी एक अहम खिलाड़ी बनकर उभर रहा है. बीजिंग और इस्लामाबाद दोनों को अब यह समझ आ गया है कि भारतीय रक्षा क्षमताओं को हल्के में लेना उनके लिए भारी पड़ सकता है.