बदले-बदले से नजर आ रहे हैं छोटे चौधरी
सियासत की बदलती भंगिमाओं से नायाब मौके चुराना कोई जयंत चौधरी से…
‘यह गठरी है एक गरीब आदमी की,
इसमें सूखी रोटी में लिपटा एक चांद है
एक धुधंली सी रोशनी है, भूख की आंच में तपता पेट का धीमा सा अलाव है’
सियासत की बदलती भंगिमाओं से नायाब मौके चुराना कोई जयंत चौधरी से सीख सकता है। उस वक्त जब जाट व किसान दोनों ही भाजपा की ईंट से ईंट बजाने में जुटे थे, छोटे चौधरी ने तब एक बड़ा फैसला लेते हुए अखिलेश का साथ छोड़ पश्चिम यूपी से कमल खिलाने का एक दुःसाहसिक निर्णय ले लिया था। आज वे मोदी सरकार में मंत्री हैं, वे भी स्वतंत्र प्रभार के साथ, फिर भी वक्फ बिल समेत कई अन्य मुद्दों पर वे भाजपा से असहमति जताने में परहेज नहीं कर रहे। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने अपने ‘एक्स’ हेंडल से कम से कम ऐसे तीन पोस्ट डाले हैं जो उनके बागी इरादों की झलक दिखा जाते हैं। बावजूद इसके वे लगातार यूपी में संघ व भाजपा के लोगों से वन-टू-वन मिल रहे हैं।
उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मिलने का समय मांगा है, पर अभी तक उन्हें यह समय मिल नहीं पाया है। जब तक छोटे चौधरी अखिलेश के साथ थे तो उनकी हर मांग की पूर्ति चांदी की तश्तरी में पेश कर दी जाती थी। यहां हालात किंचित अलग हैं, जैसे यूपी विधानसभा के चुनाव भले ही दो साल बाद हों, पर जयंत अभी से अपने लिए भाजपा से 33 विधानसभा सीटों की डिमांड कर रहे हैं। वहीं भाजपा का आंकलन है कि उनकी बस 10 सीटें बनती हैं। भाजपा रणनीतिकारों की चिंता है कि ‘इनके पास योग्य उम्मीदवारों का टोटा है, सो इनके लिए ज्यादा सीटें छोड़ने का क्या मतलब?’ वैसे भी भाजपा ने जयंत की पार्टी को दो लोकसभा सीट व एक राज्यसभा सीट दे रखी है। सूत्रों की मानें तो भाजपा के एक सीनियर नेता ने पिछले दिनों जयंत से कहा कि ‘हमने अनुप्रिया पटेल के लिए 15-16 सीटें छोड़ी थीं, हम आपके लिए भी 12-13 सीटें छोड़ सकते हैं।’ पर यह दलील जयंत को रास नहीं आ रही है, कम से कम उनके ‘एक्स’ के हालिया पोस्ट तो इसी बात की चुगली खाते हैं।
बिहार और राहुल
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राहुल गांधी बहुत गंभीरता दिखा रहे हैं। पिछले सप्ताह राहुल ने बिहार के पार्टी नेताओं की एक मीटिंग दिल्ली में बुलाई और उन्हें सुझाव दिया कि ‘कांग्रेस को दिवंगत शरद यादव की पुण्य तिथि पर पूरे बिहार में जगह-जगह कार्यक्रम करने चाहिए।’ इस पर कुछ बिहारी नेताओं ने विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि ‘शरद यादव न तो बिहार के थे और न ही बिहार में उनका कोई ऐसा जनाधार ही था। जब उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई तो अपना एक भी विधायक जिता नहीं पाए।’
राहुल इस बात से कुपित हुए, बात बदलते हुए उन्होंने कहा-आप लोग ही कोई नया आइडिया बताओ। एक नेता ने कहा-हमें ब्राह्मणों पर फोकस करना चाहिए, ये कांग्रेस के पुराने वोटर हैं। राहुल ने कहा, ‘बिहार में सवर्ण वोटरों की तादाद मात्र 16-17 फीसदी है, हमें पिछड़ों व दलितों की पार्टी बनानी है।’ चुनांचे कांग्रेस महासमिति का दो दिवसीय 86वां अधिवशन 8-9 अप्रैल को जहां अहमदाबाद में शुरू हो रहा है, राहुल 7 अप्रैल को पटना जा रहे हैं। अब बिहार कांग्रेस के तमाम आला नेताओं की उस दिन पटना में ही रुकने की मजबूरी है, इसके बाद अहमदाबाद अधिवेशन के लिए जो प्लेन पकड़ सकते हैं वे तो ठीक हैं, पर जिन्हें ट्रेन से जाना था वे क्या करें? 8 तक कैसे पहुंचे अहमदाबाद? इसके लिए कांग्रेस जन पानी पी-पी कर अपने नए अध्यक्ष राजेश राम को कोस रहे हैं जो लालू की पार्टी से ‘अलायंस’ के प्रबल समर्थक बताए जाते हैं, यह भी माना जा रहा है कि तेजस्वी कांग्रेस को 40-50 सीट पर ही मना लेंगे। राहुल की इस पटना यात्रा में राजद व कांग्रेस गठबंधन पर जमी अनिश्चय की धूल भी साफ हो सकती है।
अपनी ही सरकार के खिलाफ रावत
हरिद्वार से भाजपा सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेश की अपनी ही सरकार के प्रति इस कदर हमलावर हैं कि उनकी इस बदली भाव-भंगिमाओं से भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी हैरत में है। पिछले दिनों रावत ने संसद में उत्तराखंड के अवैध खनन के मुद्दे को मजबूती से उठा कर कांग्रेस को भी एक नया हथियार मुहैया करा दिया है। अवैध खनन और राज्य में बढ़ते भ्रष्टाचार के मुद्दे को लगातार उठा कर रावत ने अपनी ही पार्टी की धामी सरकार के लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है। पिछले दिनों रावत ने उत्तराखंड के सभी विधायकों और कुछ पत्रकारों को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया था, रावत करीबियों को उम्मीद थी कि उनके इस भोज में कम से कम 20-22 भाजपा विधायक जरूर शिरकत करेंगे, पर आए गिन-चुन कर बस 3-4 एमएलए। भाजपा हाईकमान ने रावत की इस नादानी को किंचित गंभीरता से लिया।
कहते हैं कि पार्टी के संगठन महासचिव बीएल संतोष ने उन्हें तलब कर उनकी जमकर क्लास भी लगाई। इस बीच उत्तराखंड के खनन सचिव का एक बयान सामने आ गया कि अवैध खनन के बारे में जो फैलाया जा रहा है यह पूरी तरह से निराधार है, तब कुछ लोगों ने रावत का ध्यान खनन सचिव के इस बयान की ओर दिलाना चाहा तो रावत ने गुस्से में कह दिया-‘शेर कुत्तों के भौंकने का जवाब नहीं देता।’
रावत के इस बयान के विरोध में आईएएस एसोसिएशन भी मैदान में उतर आया है, उन्होंने भी इस पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल, जब रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था तो उन्हें भाजपा शीर्ष की ओर से आश्वासन दिया गया था कि ‘आगे हम आपका पूरा ध्यान रखेंगे।’ पर ऐसा कुछ हुआ नहीं, यही बात रावत को खाए जा रही है।
संघ की नसीहत
पिछले दिनों भाजपा के एक बड़े नेता के साथ संघ के एक प्रमुख नेता की लंबी मुलाकात आहूत थी। भाजपा नेता ने संघ शीर्ष से शिकायती लहज़े में कहा-आप योगी से बात क्यों नहीं करते, आप लोगों की ओर से इन्हें इतनी खुली छूट क्यों मिली हुई है?’ संघ शीर्ष ने चुटकी लेते हुए कहा-जो गलती आपने देवेंद्र फडणवीस मामले में की, वह गलती अब आप योगी जी के साथ भी दुहरा रहे हैं, इनके सामने आप इतने बौने नेताओं को खड़ा करते हैं कि इनका कद खुद व खुद बढ़ जाता है, देवेंद्र जी के मामले में भी यही हुआ।
अब आप योगी के सामने बीएल वर्मा, हरीश द्विवेदी या केशव प्रसाद मौर्या को खड़ा कर रहे हैं, क्या इनमें से किसी में योगी से आधे का भी करिश्मा है? पहले आप सोच लो, योगी नहीं तो और कौन?’ भाजपा के इस शिखर पुरुष से कोई जवाब देते नहीं बना।
…और अंत में
दिल्ली में जब से भाजपा की सरकार आई है पत्रकारों की मौज हो गई है। जब आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने असेंबली में पत्रकारों की एंट्री ही बंद कर दी थी। जब से दिल्ली में भाजपा की रेखा गुप्ता सरकार आई है पत्रकारों पर खूब नज़रें इनायत हुई हैं। गैर पीआईबी पत्रकारों के लिए भी सदन में एंट्री खोल दी गई है। पत्रकारों के लिए कैंटीन में अलग से शाकाहारी ‘बुफे’ का इंतजाम कर दिया गया है, यह भोजन मीडिया वालों के लिए बिल्कुल मुफ्त है। इसके साथ ही दिल्ली सरकार के सभी मंत्रियों ने अपने लिए निजी फोटोग्राफर भी रख लिए हैं, जबकि अरविंद केजरीवाल की टीम के लिए फोटोग्राफर के पैसों के भुगतान का जिम्मा पंजाब सरकार के हवाले है।