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नागरिक संशोधन कानून

02:10 AM Feb 29, 2024 IST | Aditya Chopra
नागरिक संशोधन कानून

नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) को राष्ट्रपति द्वारा 12 दिसम्बर, 2019 को मंजूरी दी गई थी। जिसके बाद यह अधिनियम बन गया। मोदी सरकार ने पिछले चुनाव में वादा किया था कि इस विधेयक को लाया जाएगा। सरकार ने इस बिल को लाकर दोनों सदनों में भारी विरोध के बावजूद पारित कराकर अपना वादा पूरा किया। अब सरकार आम चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा से पहले सीएए के नियम जारी करने की तैयारी में है। जब सीएए के नियम जारी हो जाएंगे तो मोदी सरकार बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से 31 दिसम्बर, 20214 तक आए प्रताड़ित गैर मुस्लिम प्रवासियों-हिन्दू, सिख, जैन, बोध, पारसी और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देना शुुरू कर देगी। सीएए दिसम्बर 2019 में पारित हुआ था तो उस दौरान देशभर में प्रदर्शन होने शुरू हो गए थे। देश के कुछ हिस्सों में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे। प्रदर्शनों के दौरान और पुलिस कार्रवाई में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। दिल्ली का शाहीनबाग आंदोलन तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ​चर्चित हुआ था। इस कानून को लेकर पूरी लड़ाई जन अवधारणा (पब्लिक परसैप्शन) पर लड़ी गई। सरकार की तरफ से कहा गया कि यह कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के उन सताए गए हिन्दुओं और गैर मुस्लिम नागरिकों की मदद के​ लिए हैं जिनके लिए पूरी दुनिया में एक मात्र भारत देश ही स्वाभाविक रूप से शरण लेने के लिए बचता है। क्योंकि यह सभी देश एक समय में उस अखंड भारत के भाग रहे हैं जो अंग्रेजों के सत्ता सम्भालने से पूर्व था।
ब्रिटिश हुकूमत हिन्दोस्तान में विधिवत रूप से 1860 में तब शुरू हुई थी जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत की हुकूमत ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया को करोड़ों पौंड में बेची थी। चूंकि 1947 में हिन्दोस्तान का बंटवारा हिन्दू-मुसलमान के आधार पर दो देशों भारत व पाकिस्तान के बीच हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली की छूट देते हुए हुआ था। अतः हिन्दोस्तान से अलग हुए देशों के मुस्लिम राष्ट्र घोषित हो जाने पर वहां बचे हिन्दुओं पर अत्याचार होने की सूरत में उनके भारत में आने पर उन्हें अपनाने में किसी प्रकार की अड़चन पेश नहीं आनी चाहिए जिस वजह से 2019 के दिसम्बर महीने में मौजूदा भाजपा सरकार ने पुराने नागरिकता कानून में संशोधन किया है परन्तु इसके साथ यह भी कटु सत्य है कि इन देशों में रहने वाले सभी धर्मों के नागरिकों की सुरक्षा और उनके जनाधिकार व मानवीय मूल्यों की रक्षा के दायित्व से भी इनकी सरकारें संविधानतः बंधी हुई हैं मगर भारत ने नागरिकता कानून में संशोधन करके सुनिश्चित कर दिया है कि धार्मिक उत्पीड़न की सूरत में इसके दरवाजे इन तीन देशों के हिन्दू नागरिकों के लिए खुले रहेंगे। दूसरी तरफ इसके ठीक विपरीत कांग्रेस व अन्य समाजवादी विचारधारा के धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले राजनीतिक दलों का मत है कि यह संशोधित कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बंगलादेश में सक्रिय उन इस्लामी जेहादी व तालिबानी ताकतों को घर बैठे ही अपने देश के गैर मुस्लिमों पर और अधिक अत्याचार करने व उन्हें सताये जाने का हथियार देता है और वहां की सरकारों को इनके राजनीतिक दबाव में आने के लिए प्रेरित करता है जिससे वे गैर मुस्लिमों को भारत की तरफ धकेल सकें और अपनी- अपनी आबादी का पूर्ण इस्लामीकरण कर सकें।
दरअसल इस कानून को लेकर भ्रम भी बहुत फैलाए गए। ऐसा माहौल बनाया गया कि इस कानून के बनने से धीरे-धीरे भारतीय मुस्लिमों को भारत की नागरिकता से बाहर कर देगा। नागरिकता संशोधन कानून को एनआरसी से जोड़ कर भ्रम फैलाया गया कि इससे मुस्लिमों को छोड़कर सभी प्रवासियों को नागरिकता दी जाएगी और मुसलमानों को हिरासत शिविरों में भेज दिया जाएगा। जबकि वास्तविकता यह है कि इस कानून का एनआरसी से कुछ लेना-देना नहीं है। कौन नहीं जानता कि हमारे पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। उनकी बहू-बेटियों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं। हिन्दुओं, सिखों की बेटियों का अपहरण कर जबरन उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है और उनका निकाह करवाया जाता है। हर साल पाकिस्तान से भागकर हिन्दू भारत आ जाते हैं। देश  के कई हिस्सों में पाकिस्तान से भाग कर आए हिन्दू शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। यह कानून न तो किसी धर्म के खिलाफ है, न ही यह किसी के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करता है, बल्कि यह तो उन लोगों को सम्मानजनक जीने का अधिकार देता है जो प्रताड़ित होकर भारत आकर भी नारकीय जीवन बिता रहे हैं।
जहां तक मुस्लिमों का सवाल है, पाकिस्तान और अफगानिस्तान तथा बंगलादेश इस्लामी देश हैं वहां मुस्लिमों को प्रताड़ित किए जाने का कोई आधार ही नहीं है। यह भी वास्तविकता है कि कोई भी देश खुद को घुसपैठियों का देश नहीं बना सकता। इससे तो देश की संस्कृति ही बदल सकती है। अब सीएए को लेकर​ नियम सामने आ जाएंगे। उन नियमों को लेकर चिंतन-मंथन भी होगा। जरूरी है कि इसको लेकर अब कोई भ्रम नहीं फैलाया जाना चाहिए और इस पर आम सहमति पैदा होनी ही चाहिए।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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