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चुनावों में स्पष्ट जनादेश

महाराष्ट्र व झारखंड की जनता ने विधानसभा चुनावों में जो जनादेश दिया है वह अलग-अलग गठबन्धनों के हक में है मगर एक बात साझा है कि दोनों राज्यों में पुरानी सरकारें पुनः सत्ता पर काबिज की गई हैं।

10:51 AM Nov 23, 2024 IST | Aditya Chopra

महाराष्ट्र व झारखंड की जनता ने विधानसभा चुनावों में जो जनादेश दिया है वह अलग-अलग गठबन्धनों के हक में है मगर एक बात साझा है कि दोनों राज्यों में पुरानी सरकारें पुनः सत्ता पर काबिज की गई हैं।

महाराष्ट्र व झारखंड की जनता ने विधानसभा चुनावों में जो जनादेश दिया है वह अलग-अलग गठबन्धनों के हक में है मगर एक बात साझा है कि दोनों राज्यों में पुरानी सरकारें पुनः सत्ता पर काबिज की गई हैं। इसके अलावा एक बात और साझी है कि दोनों ही राज्यों में स्पष्ट जनादेश दिया गया है। इसके अलावा विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों में मिला-जुला जनादेश प्राप्त हुआ है। एक तरफ जहां केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर कांग्रेस नेता श्रीमती प्रियंका गांधी प्रचंड बहुमत से विजयी रही हैं वहीं उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन ने 7 सीटें जीती तो सपा 2 पर सिमट गई। इसी प्रकार प. बंगाल की छह विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी अधिसंख्य सीटों पर विजयी रही है। मगर इन चुनावों में वायनाड उपचुनाव में जिस तरह प्रियंका गांधी धमाकेदार बहुमत से 4,10,931 वोटों से जीती हैं उससे यह साफ होता है कि दक्षिणी राज्यों में कांग्रेस का दबदबा कायम है लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा को जो तूफानी जीत हासिल हुई है उसकी कल्पना संभवतः इस पार्टी के नेताओं को भी नहीं थी।

राज्य की कुल 288 सीटों में से भाजपा नीत महायुति महागठबन्धन को 234 सीटें मिली हैं जिनमें भाजपा का आंकड़ा सवा सौ के आसपास है। भाजपा को राज्य में इतनी बड़ी जीत पहली बार प्राप्त हुई है। इससे पहले 2014 के चुनावों में भाजपा को 122 सीटें मिली थीं जबकि पिछले 2019 के चुनावों में इसने 105 सीटें जीती थीं। इसी प्रकार झारखंड में इंडिया गठबन्धन को धमाकेदार विजय मिली है। यहां की 81 सदस्यीय विधानसभा में इंडिया गठबन्धन को दो-तिहाई बहुमत के करीब सीटें मिली हैं जो पिछले बहुमत से कहीं अधिक है। मगर महाराष्ट्र में महायुति ने तीन चौथाई बहुमत को छू लिया है जो कि पिछले 40 वर्षों में सबसे बड़ा बहुमत है। इससे पहले सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही इस राज्य में एेसा कमाल किया करती थी। इसका मतलब यह हुआ कि दोनों राज्यों की जनता ने इतना बहुमत देना उचित समझा जिससे बीच रास्ते में किसी प्रकार की तोड़फोड़ की गुंजाइश न रहे। क्योंकि हमने देखा कि किस प्रकार महाराष्ट्र में ढाई साल पहले सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी की सरकार के पैर उखाड़े गये थे और शिवसेना व राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायकों में सेंध लगाई गई थी।

लोकतन्त्र की असली मालिक जनता ही होती है और उसने एेसा जनादेश दिया है जिससे न तो महाराष्ट्र में सत्ता में वापसी पर आयी महायुति को कोई शिकायत रहे और न ही झारखंड में पुनः हुकूमत में आये झारखंड मुक्ति मोर्चे को जिसके नेतृत्व में इंडिया गठबन्धन ने यहां चुनाव लड़ा। इस राज्य में महाराष्ट्र की भांति क्षेत्रीय स्तर के गठबन्धन नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर के एनडीए व इंडिया सीधे आमने-सामने चुनाव लड़ रहे थे। बेशक झारखंड मुक्ति मोर्चा क्षेत्रीय दल है मगर वह इंडिया गठबन्धन का घटक दल है। इस राज्य के मुख्यमन्त्री श्री हेमन्त सोरेन को पिछले जनवरी महीने में प्रवर्तन निदेशालय ने जमीन घोटाले के नाम पर गिरफ्तार कर लिया था। इस कथित घोटाले को उच्च न्यायालय ने पूरी तरह खोखला पाया और श्री सोरेन की जमानत चुनावों से लगभग दो महीने पहले हो गई । उनकी अनुपस्थिति में झारखंड मुक्ति मोर्चे ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री चम्पई सोरेन को मुख्यमन्त्री बनाया। जेल से वापस आकर हेमन्त सोरेन ने मुख्यमन्त्री पद पुनः संभाला मगर चम्पई सोरेन ने भाजपा का दामन थामना उचित समझा। विधानसभा चुनावों में चम्पई सोरेन को भी इस प्रदेश की जनता ने सबक सिखाने का काम किया है और हेमन्त सोरेन के पाक-साफ होने पर अपनी मुहर लगाई है। पंजाब की चार विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव हुए थे। इनमें से तीन पर सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की विजय हुई है और एक पर कांग्रेस की। इससे पंजाब की जनता के मिजाज का पता लगता है कि किस प्रकार यहां सत्ता विरोधी भावना पनप रही है। इन सब तथ्यों के बावजूद महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि महाराष्ट्र देश का अग्रणी राज्य माना जाता है और इसकी राजधानी मुम्बई देश की वित्तीय राजधानी है।

हालांकि महाराष्ट्र सामाजिक रूप से भी बहुत चेतन व सजग राज्य माना जाता है। इसके बावजूद इस राज्य में हिन्दुत्व व क्षेत्रीय अस्मिता की भावना को शिखर पर रखने वाली पार्टियों की विजय बताती है कि भाजपा नीत महायुति के पिछले ढाई साल के शासन से लोग खुश थे और उन्होंने मुख्यमन्त्री एकनाथ शिन्दे के शासन को नापसन्द नहीं किया। शिन्दे मूल रूप से शिवसैनिक हैं मगर ढाई साल पहले उन्होंने शिवसेना के संस्थापक स्व. बाला साहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे से विद्रोह करके अपनी अलग शिवसेना बनाई और इन चुनावों में सिद्ध कर दिया कि वही बाला साहेब के सच्चे वारिस एक शागिर्द की हैसियत में हैं क्योंकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को इन चुनावों में जनता ने स्वीकार नहीं किया।

यही स्थिति राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता व संस्थापक श्री शरद पवार की रही। उनकी कांग्रेस को भी लोगों ने तिरस्कृत कर उनके भतीजे अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस को गले लगाया। ये नतीजे पिछले लोकसभा चुनावों के पूरी तरह उलट आये हैं क्योंकि लोकसभा चुनावों में शरद पवार की कांग्रेस व कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के गठबन्धन महाविकास अघाड़ी ने भाजपा नीत

महायुति के छक्के छुड़ा दिये थे। कुल मिलाकर इन चुनावों में जनता ने सभी दलों को कुछ न कुछ दिया है। कांग्रेस व इंडिया गठबन्धन को झारखंड दिया और वायनाड से प्रियंका गांधी को सांसद बनाया तो भाजपा को महाराष्ट्र दिया और अपने लोकतन्त्र के मालिक होने का सबूत दिया।

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