CM Dhami ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर JPC संवाद कार्यक्रम में भाग लिया
CM Dhami ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर विचार साझा किए
मुख्यमंत्री धामी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि संयुक्त चुनाव से राज्य और केंद्र सरकार के खर्च में कमी आएगी। उन्होंने बताया कि बार-बार चुनाव से प्रशासनिक कामकाज प्रभावित होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में मतदान की चुनौतियों को देखते हुए यह पहल अधिक समावेशी और प्रभावी होगी।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को मसूरी रोड स्थित एक होटल में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” विषय पर संयुक्त संसदीय समिति के साथ संवाद कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी एवं समिति के सभी सदस्यों का स्वागत एवं अभिनंदन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ हमारे लोकतंत्र को और अधिक मजबूत, प्रभावी एवं समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। उन्होंने कहा कि हमारी चुनाव प्रणाली विविधताओं के बावजूद प्रभावी एवं मजबूत रही है। हालांकि, चूंकि चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, इसलिए बार-बार आचार संहिता लग जाती है, जिसके कारण राज्यों के सारे काम-काज ठप हो जाते हैं। जब भी चुनाव आते हैं, तो अनेक कार्मिकों को उनके मूल कार्य से हटाकर चुनाव ड्यूटी पर लगाना पड़ता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में राज्य में विधानसभा, लोकसभा एवं नगर निकाय चुनावों की आचार संहिता के कारण राज्य की प्रशासनिक मशीनरी 175 दिनों तक नीतिगत निर्णय लेने की प्रक्रिया से वंचित रही। छोटे और सीमित संसाधन वाले राज्य के लिए ये 175 दिन शासन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि विधानसभा चुनाव का पूरा व्यय भार राज्य सरकार उठाती है, जबकि लोकसभा चुनाव का व्यय भार केंद्र सरकार उठाती है। यदि दोनों चुनाव एक साथ कराए जाएं तो राज्य और केंद्र सरकार पर व्यय भार बराबर आधा रह जाएगा।
दोनों चुनाव एक साथ कराए जाने से कुल व्यय में करीब 30 से 35 फीसदी की बचत होगी। इसका उपयोग राज्य के कई क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी, कृषि और महिला सशक्तीकरण में किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में जून से सितंबर तक का समय बारिश का समय होता है, साथ ही चारधाम यात्रा भी होती है, ऐसे में चुनाव कार्यक्रम के कारण कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही जनवरी से मार्च तक चुनाव प्रक्रिया निर्धारित नहीं की जानी चाहिए।
फरवरी-मार्च में हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की बोर्ड परीक्षाएं होने के कारण प्रशासनिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव रहता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्यों में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में मतदान केंद्रों तक पहुंचना कठिन है, यही कारण है कि चुनाव प्रक्रिया में अधिक समय और संसाधन लगते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में मतदाताओं के लिए चुनाव में भाग लेना भी चुनौतीपूर्ण होता है, बार-बार चुनाव होने से लोगों का मतदान के प्रति रुझान कम होता है और मतदान प्रतिशत भी कम होता है।
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