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आओ मेघा आओ...

धरती तप रही थी, सूर्य आग उगल रहा था। पेड़ और वनस्पति सूख रहे थे। क्या इंसान तो क्या वन्य प्राणी सब बेहाल थे। लेकिन मानसून के आगमन के बाद तापमान कुछ कम हुआ है।

01:00 AM Jun 18, 2022 IST | Aditya Chopra

धरती तप रही थी, सूर्य आग उगल रहा था। पेड़ और वनस्पति सूख रहे थे। क्या इंसान तो क्या वन्य प्राणी सब बेहाल थे। लेकिन मानसून के आगमन के बाद तापमान कुछ कम हुआ है।

धरती तप रही थी, सूर्य आग उगल रहा था। पेड़ और वनस्पति सूख रहे थे। क्या इंसान तो क्या वन्य प्राणी सब बेहाल थे। लेकिन मानसून के आगमन के बाद तापमान कुछ कम हुआ है। मानसून की वर्षा सभी के लिए ढेर सारी खुशियों की बौछार लेकर आती है। असहनीय गर्मी के बाद सभी के जीवन में वर्षा उम्मीद और राहत की फुहार लेकर आती है। इस बार तो राजधानी दिल्ली समेत कई महानगरों में तापमान ने रिकार्ड तोड़े हैं। इंसानों के साथ ही पेड़-पौधे, पक्षी और जानवर बड़ी उत्सुकता के साथ वर्षा का इंतजार कर रहे थे। दिल्ली में शुक्रवार के तड़के आई वर्षा ने काफी संतोष प्रदान किया है। हालांकि यह वर्ष प्री मानसून की कोई गतिविधि नहीं है लेकिन मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में भी बारिश का अनुमान जताया है। मौसम विभाग ने आरेंज अलर्ट जारी करते हुए मध्यम वर्षा और तेज हवाएं चलने की सम्भावना जताई है। इस वर्षा से आग की भट्ठी में झुलस रहे महानगर में मौसम सुहाना हुआ है। आकाश में घने बादल उड़ते दिखाई दिए, जिससे सभी का हृदय उमंगों से भर गया। वर्ष 2022 ने भी तापमान में बढ़ौतरी का रिकार्ड कायम किया। अब सबसे बड़ा सवाल जलवायु संकट का है। वर्ष 2021 में धरती के वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की सघनता बढ़ी है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने के साथ-साथ सामुद्रिक तापमान और लवण मात्रा में भी वृद्धि हुई है। यह चारों बिन्दु जलवायु परिवर्तन के मुख्य सूचक हैं। पिछला वर्ष 10 वर्षों में सबसे अधिक गर्म रहा था, जिस कारण दुनिया भर में बाढ़ व सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं, जंगलों की आग, अत्यधिक गर्मी, ग्लेशियरों के पिघलने की गति में बड़ी बढ़ौतरी दर्ज की गई। इस वर्ष के पहले चार महीनों में तापमान रिकार्ड स्तर पर रहा है। 
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विश्व मौसम संगठन की हाल ही में आई रिपोर्ट में यह कहा गया कि पिछले साल वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर (1850-1900) से 1.1 डिग्री सेल्सियस ऊपर रहा था। यह रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि मानवता जलवायु चुनौती  के समाधान में पूरी तरह से विफल रही है। धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो इससे मनुष्य, पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। पिछले वर्ष आई आपदाओं में 100 अरब डॉलर से अधिक का नुक्सान हुआ है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ा है। स्टाक होम एनवायरमैंट इंस्टीच्यूट के ताजा शोध का निष्कर्ष यही है कि दुनिया उबलने की कगार पर है और मनुष्य को प्रकृति के साथ संबंध नए सिरे से परिभाषित करने होंगे। जलवायु परिवर्तन का असर भारतीय मानसून पर भी पड़ रहा है। ऐसे कई कारक हैं जो भारत के दक्षिण पश्चिम मानसून या मौसम को प्रभावित कर रहे हैं। वर्ष 2020 में अगस्त का महीना पूरी तरह शुष्क रहा था और सितम्बर में असाधारण रूप से वर्षा हुई थी जबकि पिछले वर्ष अगस्त में काफी अधिक बारिश देखी गई। पुराने दौर में सात-सात दिन रिमझिम वर्षा होती रहती थी और वर्षा के पानी को धरती अपने अन्दर समेट लेती थी। अब बारिश एक या  घंटे इतनी तेज होती है कि शहरों में जलभराव इतना भयंकर रूप धारण कर लेता है जैसे बाढ़ आ गई हो। एक तरह से बड़े जलवायु परिवर्तन अब धरातल पर प्रकट होने लगे हैं। मौसम विज्ञानी दक्षिण एशिया खासकर भारत के लिए बारिश के अ​नियमित पैटर्न को चेतावनी दे चुके हैं। अलबीनो, लानीना, मानसूनी बारिश को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं।
भारत में मानसून की अच्छी बारिश और खरीफ फसलों के उत्पादन के बीच एक मजबूत सकारात्मक संबंध हैं और इस का असर रबी सीजन की फसलों पर भी पड़ता हैै। भारत में खराब मानसून का अर्थ खराब फसल से है जिसका मतलब कृषि उत्पादन में कमी भी है। यह एक तथ्य है कि भारत की खेती आज भी वर्षा पर निर्भर करती है। मौसम विभाग के डेटा के अनुसार 1 जून से 15 जून तक भारत में 48.04 मिलीमीटर बारिश हुई है जो 1901 के बाद 37वीं सबसे कम बारिश है। यह 1961-2010 की अवधि में समान 15 दिनों में भारत में औसतन हुई 63 मिलीमीटर वर्षा से 24 प्रतिशत कम है। मानसून की रफ्तार तेज होना अभी बाकी है। मौसम विभाग ने इस वर्ष अच्छी बारिश होने का अनुमान बताया है और मानसून सीजन में अच्छी बारिश भी अर्थव्यवस्था के ​लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है। यह मानसून न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। इस बार समय से पहले गर्मी की लहर शुरू हो गई थी। बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण गेहूं का दाना काफी सिकुड़ गया था। जिससे गेहूं की फसल प्रभावित हुई और किसानों को भी काफी नुक्सान उठाना पड़ा। गेहूं का उत्पादन 11.13 करोड़ टन रहने का अग्रिम अनुमान लगाया गया था, लेकिन अब अनुमान घटा दिया गया है। इसी तरह धान के उत्पादन पर भी किसी तरह का प्रतिकूल प्रभाव उत्पादन को कम कर सकता है। सबसे बड़ा कारण जो भारत में इस साल मानसून के बेहतर प्रदर्शन को अत्यंत  महत्वपूर्ण बना देता है वह है अन्तर्राष्ट्रीय खाद्य बाजारों की स्थिति। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक खाद्य कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। दुनिया की नजरें भारत पर लगी हुई हैं। 
यदि भारत में धान समेत खरीफ की फसलों का उत्पादन कम होता है तो वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न की कीमतें बढ़ जाएंगी। उत्पादन कम होने की स्थिति में भारत को निर्यात प्रतिबंध लगाने पड़ेंगे। इसका अर्थ कीमतों में वृद्धि ही होगा। जीडीपी आंकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था ने महामारी के पहले के स्तर को पार कर लिया है, अब दारोमदार अच्छी मानसून पर निर्भर करता है। एक सामान्य मानसून भी अस्थायी रूप से विषम वर्षा पैटर्न के कारण खरीफ सीजन में फसल उत्पादन को प्रभावित कर सकता है। आइये ईश्वर और प्रकृति से प्रार्थना करें कि आओ मेघा आओ जरा जमकर बरसो लेकिन संतुलित होकर बरसो।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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