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खाली हाथ आए, खाली हाथ जाएंगे!

अमीरी की क्या पहचान है या जिसके पास बहुत ज्यादा प्रोपर्टी है, क्या वह बहुत बड़ा अमीर है? कोई कितना भी बड़ा किंग क्यों न बन जाए लेकिन एक दिन तो उसे भी दुनिया से जाना है और जमीनी हकीकत यही है कि उसे खाली हाथ जाना है।

03:46 AM Jul 21, 2019 IST | Kiran Chopra

अमीरी की क्या पहचान है या जिसके पास बहुत ज्यादा प्रोपर्टी है, क्या वह बहुत बड़ा अमीर है? कोई कितना भी बड़ा किंग क्यों न बन जाए लेकिन एक दिन तो उसे भी दुनिया से जाना है और जमीनी हकीकत यही है कि उसे खाली हाथ जाना है।

अमीरी की क्या पहचान है या जिसके पास बहुत ज्यादा प्रोपर्टी है, क्या वह बहुत बड़ा अमीर है? कोई कितना भी बड़ा किंग क्यों न बन जाए लेकिन एक दिन तो उसे भी दुनिया से जाना है और जमीनी हकीकत यही है कि उसे खाली हाथ जाना है। यह जानते हुए भी इंसान दौलत के पीछे भाग रहा है। अपनी जमीन-जायदाद बढ़ाने के लिए वह नैतिकता और रिश्तों की तमाम हदें हर रोज तोड़ रहा है।
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कहीं बेटे ने बाप को तो कहीं बेटे ने मां को प्रोपर्टी के लिए मार डाला। ऐसी सुर्खियां रोज अखबारों में छा रही हैं। पिछले दिनों सोनभद्र में जमीन पर कब्जा करने को लेकर हुए संघर्ष में नौ लोगों की हत्या कर दी गई और मारे गए परिवार के एक आठ वर्षीय बच्चे को भी गोली लगी। कहीं मां ने बेटे को बेदखल किया, कहीं भाई-भाई खून के प्यासे बने। हकीकत यह है कि समाज में जो लोग नैतिकता निभाते हैं उनसे कभी-कभी प्रशासन को भी दिक्कतें आती हैं।
सामाजिक जीवन में मैंने व्यक्तिगत तौर पर जब कई लोगों की समस्याएं प्रोपर्टी से जुड़े मामले में हल करने की कोशिश की तो मुझे भी कई नेताओं ने चतुराई से इन मामलों में दूर रहने को कहा लेकिन आज भी इंसानियत की खातिर हम कभी कमजोर पक्ष के लिए आवाज उठाने से पीछे नहीं हटते। मेरे पति श्री अश्विनी कुमार जो लाखों लोगों की दुआओं और प्रभु की कृपा से स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, ने मुझे यही कहा है कि सच के साथ हमेशा खड़े रहना है और कमजोर पक्ष के साथ अगर अन्याय होगा तो हम लोगों को आवाज उठानी है, यह बात गांठ बांध लो इसीलिए मैं अपनी आवाज कमजोर पक्ष के लिए हमेशा उठाती हूं।  
सच बात यह है कि देश की अदालतो में 26 लाख से ज्यादा केस केवल प्रोपर्टी विवाद को लेकर ही पेंडिंग चल रहे हैं। क्या पंजाब, क्या हरियाणा, क्या उत्तर प्रदेश और क्या बिहार, क्या महाराष्ट्र हर तरफ प्रोपर्टी विवाद को लेकर ​िरश्तों का आए दिन कत्ल होता हुआ देख रहे हैं और  इंसानियत आंसू बहा रही है। जो लोग दुनिया से गए वो अपने साथ क्या ले गए। कबीर, रहीम और तुलसीदास ने इस दौलत से ऊपर उठकर इंसान को इस जीवन में प्रभु चरणों में ध्यान लगाने काे ही सच्ची दौलत माना है। 
इंसान को यही उपदेश भी ​दिया। कितने ही बड़े-बड़े शायरों ने उदाहरण देते हुए कहा कि- ‘‘क्या था सिकंदर-उसके हौंसले तो आली थे, पर जब गया दुनिया से दोनों हाथ खाली थे।’’चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा, सर को उठाके चलने वाला एक दिन धोखा खाएगा।’’ कहने का मतलब यह है कि इंसान जिस प्रोपर्टी को हथियाने के लिए या जमीन को कब्जा करने के लिए अपने आपको बाहुबली जैसे शब्दों से कुख्यात करवा रहा है उन सबके उदाहरण देख लो कि झगड़ा करने वाले तो आखिरकार आपसी ​हिंसा का शिकार हुए, मामले कोर्ट-कचहरी में पड़े रह गए। पोंटी चड्ढा का उदाहरण सबके सामने है, वहीं आपसी विवाद  तो अंबानी भाइयों में भी हुए हैं लेकिन हमारा मानना यह है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हमारी भावनाओं का शुद्धिकरण होना जरूरी है। 
किसी भी पार्टी के अगर आप नेता हैं तो हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना कोई बुरी बात नहीं है। किसी की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। हमारे लोकतंत्र में संविधान हमें यही अधिकार देता है अंग्रेजों के खिलाफ किस प्रकार भारतीयों ने आवाज उठाई तो यह कोई गुनाह नहीं था। लोग  किस प्रकार अमीर बनने के लिए क्या कुछ नहीं कर रहे। हमारे शास्त्र, हमारे बुजुर्ग हमें कितना कुछ सिखाते हैं कि साथ कुछ नहीं जाना, खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाएंगे लेकिन फिर भी हम जोड़ते चले जाते हैं। जमीन प्रोपर्टी इकट्ठा करने के लिए दौड़ते चले जाते हैं लेकिन हासिल कुछ नहीं होता। सामान सौ बरस का और पल की खबर नहीं, ऐसी धारणा को याद रखने की बजाय इस पर अमल करना चाहिए। 
समाज में जिस तरह से नरसंहार हो रहे हैं वह न तो समाज के लिए बेहतर है और न ही देश के लिए। बेहतर यही होगा कि सत्ता और पुलिस प्रशासन नरसंहार के दो​िषयों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के लिए काम करें ताकि यह संदेश जा सके कि समाज में ऐसी हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है और हिंसक प्रकृति के लोगों की असली जगह जेल है।अभी पिछले सप्ताह ही दिल्ली की बड़ी प्यारी सीएम रही श्रीमती शीला दीक्षित का मेरे पास फोन आया और कहा -‘‘किरण मुझे अश्विनी का हाल-चाल पूछने आना है कब आऊं’’ मैंने कहा जब चाहे आइये आपका अपना घर है लेकिन कालम लिखते-लिखते उनके निधन की खबर आयी तो कानों पर विश्वास नहीं हुआ। खुद ही दुनिया से उनका जाना हो गया। 
एक पल की भी खबर नहीं है उनकी वह अच्छी बातें और अपनापन ही अब मेरे पास सबसे बड़ी याद के तौर पर सुरक्षित है।  ऐसे ही प्रियंका गांधी अगर सोनभद्र हिंसा पीडि़तों का हालचाल पूछना चाहती हैं तो यूपी की महासचिव होने के नाते उनकी नैतिक जिम्मेदारी है और यूपी की सरकार और पुलिस को रोकना उनका राजनीतिक धर्म है और राजनीति भी है। 
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