टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलSarkari Yojanaहेल्थ & लाइफस्टाइलtravelवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

सर्वसम्मति ही जीएसटी का मूल

2017 में जिस उत्साह और उमंग से पूरे देश में जीएसटी (वस्तु व माल कर) प्रणाली लागू की गई थी वह 2020 के आते-आते ही ठंडा पड़ने लगी है और राज्यों को लग रहा है कि अपने वित्तीय अधिकार केन्द्र के सुपुर्द करने के बाद वे ‘लुटे हुए नवाब’ की मानिन्द हो गये हैं।

12:07 AM Aug 29, 2020 IST | Aditya Chopra

2017 में जिस उत्साह और उमंग से पूरे देश में जीएसटी (वस्तु व माल कर) प्रणाली लागू की गई थी वह 2020 के आते-आते ही ठंडा पड़ने लगी है और राज्यों को लग रहा है कि अपने वित्तीय अधिकार केन्द्र के सुपुर्द करने के बाद वे ‘लुटे हुए नवाब’ की मानिन्द हो गये हैं।

2017 में जिस उत्साह और उमंग से पूरे देश में जीएसटी (वस्तु व माल कर) प्रणाली लागू की गई थी वह 2020 के आते-आते ही ठंडा पड़ने लगी है और राज्यों को लग रहा है कि अपने वित्तीय अधिकार केन्द्र के सुपुर्द करने के बाद वे ‘लुटे हुए नवाब’ की मानिन्द हो गये हैं।  एक समान कर प्रणाली लागू करने का आधारभूत कार्य आजकल गंभीर बीमारी से जूझ रहे पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न श्री प्रणव मुखर्जी ने किया था और इसका ढांचा इस तरह बनाया था कि बिना राज्यों की रजामन्दी के यह कोई भी फैसला केवल केन्द्र के जोर से न कर सके। इसके लिए परिषद में राज्यों को दो-तिहाई मत दिये गये थे और केन्द्र को एक तिहाई।  साथ ही यह शर्त भी थी कि परिषद का हर फैसला सर्वसम्मति से ही होगा। प्रणवदा जैसे दूरदर्शी राजनेता (स्टेट्समैन) ने भारत के बहुदलीय राजनीतिक चरित्र और इससे उपजने वाली  चुनौतियों को अपनी दृष्टि में रखते हुए ही परिषद में मत विभाजन का यह सिद्धान्त लागू किया था जिससे हर सूरत में राज्यों के जायज अधिकारों की रक्षा हो सके। इसकी एक वजह और भी थी कि स्वतन्त्र भारत में पहली बार किसी ऐसी संवैधानिक संस्था का गठन हो रहा था जो भारत की संसद के दायरे से बाहर थी। हालांकि इसका गठन करने की इजाजत संसद ने ही एक संविधान संशोधन विधेयक को पारित करके दी थी। यह भारत का सबसे बड़ा शुल्कगत सुधार माना गया।
Advertisement
एक नजर से देखें तो संसद ने भी अपने वे सभी शुल्क प्रणालीगत अधिकार इस परिषद को सौंप दिये। जीएसटी लागू करने का कार्य वित्त मन्त्री की हैसियत से स्व. श्री अरुण जेतली ने किया। इसका मूल उद्देश्य यह था कि पूरे देश में एक समान शुल्क प्रणाली होने से विकसित व अविकसित राज्यों के बीच का अन्तर समाप्त होगा और पूरे देश में माल व वस्तुओं का आवागमन बिना रोक-टोक के सुविधापूर्वक होगा। इसके प्रभाव से निर्यात कारोबार में वृद्धि होगी  और औसतन भारत की सकल विकास वृद्धि दर 10 प्रतिशत के करीब रहेगी। परिषद को यह आशंका थी कि शुरू के पांच वर्षों में उन राज्यों को दिक्कतें आ सकती हैं जो विकसित या उत्पादक राज्य हैं और उनकी राजस्व उगाही कम हो सकती है, इसी वजह से जीएसटी का विरोध शुरू से ही तमिलनाडु कर रहा था क्योंकि वह उत्पादक राज्य माना जाता है। इसका हल यह खोजा गया कि शुरू के पांच साल केन्द्र सरकार उन राज्यों की राजस्व हानि की भरपाई करेगी जिन्हें जीएसटी लागू करने से नुक्सान होगा। अतः इस पर सभी राज्यों ने सहमति व्यक्त कर दी और जीएसटी लागू हो गया क्योंकि अनुमान यह लगाया गया था कि इस प्रणाली के असर से हर साल राज्यों का साल-दर-साल हिसाब से 14 प्रतिशत राजस्व हिस्सा बढे़गा मगर इस वर्ष कोरोना प्रकोप के चलते अर्थव्यवस्था जिस प्रकार बैठी और इससे पूर्व के वर्ष में भी जिस तरह यह सुस्ती की तरफ चली उसने सभी अनुमानों को गलत साबित कर दिया। नतीजा यह हुआ कि इस महामारी के चलते राज्यों को कुल आलोच्य अवधि में तीन लाख करोड़ रुपए की राजस्व हानि का अनुमान है जिसमें से केवल 65 हजार करोड़ रुपए ही शुल्क के रूप मंे चालू वित्त वर्ष में वसूल होंगे।  अतः इस धनराशि की भरपाई राज्य सीधे रिजर्व बैंक से ऋण लेकर पूरा करें। दूसरा विकल्प यह है कि कुल मुआवजा राशि इस अवधि में 97 हजार करोड़ रुपए की रहेगी। राज्य चाहें तो जोखिम लेकर केवल इतनी धनराशि रिजर्व बैंक से उधार ले लें। केन्द्र सरकार इस कार्य में उनकी मदद करेगी और उनकी ऋण लेने की क्षमता में सुधार करेगी, यह कार्य वह वित्तीय व बजट उत्तरदायित्व प्रबन्धन कानून (एफआरबीएम) के तहत आधा प्रतिशत की छूट मुहैया करा कर करेगी।
 गौर से देखें तो केन्द्र राजस्व में कमी की भरपाई की सारी जिम्मेदारी राज्यों पर ही छोड़ना चाहता है जबकि राज्यों का सुझाव यह था कि केन्द्र स्वयं रिजर्व बैंक से जरूरी कर्जा लेकर उसे राज्यों में बांट दे और एफआरबीएम की छूट भी स्वयं ले ले किन्तु यह भी ध्यान रखा जाना जरूरी है कि इस मुद्दे पर राज्यों और केन्द्र के बीच टकराव की स्थिति नहीं आनी चाहिए।  केन्द्र का प्रस्ताव है कि वह रिजर्व बैंक से ऋण लेने में इस तरह मददगार हो सकता है कि प्रत्येक राज्य को ऋण लेने के लिए रिजर्व बैंक से अलग-अलग वार्ता न करनी पड़े और वे जो भी ऋण लेंगे उसकी अदायगी आलोच्य अवधि पांच वर्ष अर्थात 2022 के बाद से हो और इस पर ब्याज का भुगतान अगले वर्षों में मिलने वाले शुल्क से कट जाये।
हकीकत यह है कि अर्थव्यवस्था के गड़बड़ाने के असर से केन्द्र सरकार की राजस्व हानि भी हो रही है जिसे वह अन्य तरीकों से भरने का प्रयास कर रही है। इनमें सबसे कारगर तरीका पेट्रोल व डीजल पर शुल्क वृद्धि का उसने ढूंढा है और उत्पाद शुल्क में बेतहाशा वृद्धि की है जिसकी वजह से भारत में पेट्रोल के दाम अब दुनिया में  सबसे ऊंचे हैं। राज्यों की यह मांग उचित और तार्किक नहीं है कि केन्द्र पेट्रोल व डीजल के मूल्यों मंे की गई वृद्धि से प्राप्त धनराशि का बंटवारा उनके साथ करे क्योंकि पेट्रोल, डीजल व अल्कोहल जीएसटी के दायरे से बाहर रखे गये हैं और राज्यों को अधिकार है कि वे इन उत्पादों पर मनमाना मूल्य वृद्धि कर (वैट) लगा सकें। यह उन्हें देखना होगा कि उनके राज्य की जनता कितना शुल्क वहन करने योग्य है, परन्तु हकीकत यही है कि केवल ये दो उत्पाद ही ऐसे हैं जिन पर राज्यों का वित्तीय व शुल्कीय अधिकार है। कुल मिलाकर समस्या का हल इस प्रकार निकलना चाहिए जिस पर सर्वानुमति हो क्योंकि तथ्य यही है कि केन्द्र की भी सारी परियोजनाएं राज्य सरकारें ही लागू करती हैं। हमारी संघीय व्यवस्था का यह अद्भुत गुण है जो विविधता पूर्ण राजनीतिक प्रणाली के बीच सर्वानुमति का पथ प्रदर्शक है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article