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षड्यंत्र, षड्यंत्र, षड्यंत्र

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09:40 AM Dec 29, 2018 IST | Desk Team

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राष्ट्रीय जांच एजैंसी, दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस ने जिस ढंग से देश को दहलाने की साजिश को नाकाम किया है, उसकी सराहना की ही जानी चाहिए। दुनिया के सबसे दुर्दांत आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट यानि आईएस की विचारधारा से प्रभावित होकर देश के ही मुस्लिम युवाओं द्वारा माड्यूल बनाकर बड़े नेताओं और संस्थानों को निशाना बनाए जाने की साजिश रचना भी चिन्ता का विषय है। देश के मुस्लिम युवाओं द्वारा आतंक की राह पकड़ना बहुत से सवाल खड़े करता है। अगर एनआईए सतर्क नहीं होती तो यह माड्यूल गणतंत्र दिवस समारोह और कुंभ मेले के दौरान अपनी साजिश काे अंजाम दे सकता था और कई बेगुनाहों की जान ले सकता था। यह माड्यूल कुछ समय से एनआईए के राडार पर था, तभी इसे समय रहते दबोच लिया गया। हैरानी की बात तो यह है कि राजधानी दिल्ली के यमुनानगर इलाके की कालोनी जाफराबाद में ही इस माड्यूल का ठिकाना था। आतंकवाद को लेकर पहले यह कहा जाता था कि अशिक्षा और गरीबी के चलते ही युवा आतंकवादी बनते हैं।

आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवाद को किसी देश या उस देश की धार्मिक मान्यताओं के आधार पर चिन्हित नहीं किया जा सकता। विशेषकर अमेरिका और विकसित यूरोपीय देशों के प्रगतिवादी राजनीतिज्ञों, विचारकों, पत्रकारों और विद्वानों का आतंकवाद को लेकर ऐसा दृष्टिकोण बना रहा। अफ्रीकी और एशियाई महाद्वीपों में जो गैर इस्लामिक देश थे, जैसे कि भारत जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से हमेशा पीड़ित रहा उसके बारे में अमेरिका और अन्य देशों के प्रगतिवादियों ने भी यूरोपी प्रगतिवादियों का दृष्टिकोण अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस वर्ग को आतंकवाद के कारण शहीद सैनिकों, निर्दोष नागरिकों से कोई सहानुभूति और घायल पीड़ित लोगों से कोई सरोकार नहीं था। अब यह बात गलत साबित हो चुकी है कि मुस्लिम युवक अशिक्षा और गरीबी के कारण बंदूकें उठाते हैं। अब तो पकड़े गए लोगों में इंजीनियर और आईटी विशेषज्ञ से लेकर इस्लाम की शिक्षा देने वाला मौलवी भी शामिल है। दिल्ली के जाफराबाद का युवक इंजीनिय​रिंग का छात्र है, यह बम बनाने में माहिर था, दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र माड्यूल के लिए पैसे जुटाता था।

एक आटाे ड्राइवर ने बम बनाने का सामान छिपा कर रखा था। अमरोहा की मस्जिद का इमाम हथियार जुटाता था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार एक महिला और उसके बेटे ने अपने सोने के आभूषण बेचकर माड्यूल के लिए धन उपलब्ध कराया था। गिरफ्तार युवकों से पूछताछ में अभी किसी बड़े गुट से उनके संबंधों का खुलासा नहीं हुआ है लेकिन पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा आतंकी संगठन बना लेना समाज आैर देश के लिए खतरे की घंटी है। शिक्षित युवा आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं। आईएस, लश्कर, जैश और पाकिस्तान समर्थित जेहादी संगठन तो कश्मीर और भारत के कई मुस्लिम इलाकाें में पैसे का लालच देकर आतंक की जड़ें जमाने की साजिशों में लगे रहते हैं। मदरसे और मस्जिदें इनका बड़ा माध्यम हैं।

हाल ही में ऐसी रिपोर्ट सामने आई है कि भारत में कुछ मस्जिदें विदेशी फंडिंग से बन रही हैं जो मस्जिदें और मदरसे इस्लामी देशों की फंडिंग से बनी हैं, वह युवाओं को आतंक का पाठ पढ़ाएंगी ही, ऐसे में सुरक्षा एजैंसियों को और अधिक सतर्क रहना होगा। युवाओं के आतंकवादी बनने के पीछे कोई बड़ा कारण है तो वह है कट्टरपंथी विचारधारा। धार्मिक युद्ध (जेहादी) का मुखौटा ओढ़कर आतंकवाद में कदम रखने वाले युवा देश में अशांति और अस्थिरता का माहौल फैलाना चाहते हैं। वास्तविक रूप में धर्मों का मूल एक है। सभी ईश्वर पर आस्था रखते हैं तथा मानव कल्याण को प्राथमिकता देते हैं परन्तु इस्लाम को मानने वाले संगठन अपने निहित स्वार्थों के लिए धर्म का गलत इस्तेमाल करते हैं।

धर्म की आड़ में वे समाज को इस हद तक भ्रमित कर देते हैं कि उनमें किसी एक धर्म के प्रति घृणा का भाव समावेशित हो जाता है। उनमें ईर्ष्या, द्वेष और परस्पर अलगाव इस सीमा तक फैल जाता है कि वे एक पक्ष का खून बहाने से भी नहीं चूकते। देश में आतंकवाद के चलते पिछले पांच दशकों में हजारों परिवार प्रभावित हुए हैं। कितनी ही महिलाओं का सुहाग उजड़ गया। कितने ही माता-पिता बे-औलाद हो चुके हैं तथा कितने ही भाई और उनकी बहनें अपने भाइयों से बिछुड़ चुके हैं। आतंकवाद के लिए जिम्मेदार हैं कट्टरपंथी जेहादी विचारधारा। जब तक इस विचारधारा को खत्म करने के लिए खुद मुस्लिम समाज खड़ा नहीं होता तब तक उनके परिवारों के बच्चे आतंकवादी बनते रहेंगे। मुस्लिम समाज को अपने बच्चों को जेहादी मानसिकता से दूर रखने की जिम्मेदारी भी है।

आतंकवाद का जिस ढंग से विस्तार हो रहा है यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो भारत के लिए एक विकट समस्या बन जाएगा। आईएस की जेहादी विचारधारा को रोकना ही होगा। इसे रोकने का अभियान स्वयं मुस्लिम समाज को ही करना होगा। आतंकवादी कभी नायक नहीं बनता, अंततः उसे सुरक्षा बलों की गोलियों का निशाना बनना ही पड़ता है क्योंकि यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसके भीतर घुसना आसान है और बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है।

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