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राजनीतिक हिंसा का षड्यंत्रकारी खेल-3 केरल में विकराल हुआ लाल आतंक

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10:52 PM Aug 09, 2017 IST | Desk Team

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दुनिया के इतिहास में यह सर्वविदित है कि जहां भी कम्युनिस्ट शासन रहा है वहां विरोधी विचार को खत्म करने के लिए माक्र्सवादी कार्यकर्ताओं ने सड़कों को खून से रंगा है। वामपंथी विचार के मूल में तानाशाही और हिंसा है। कम्युनिस्ट पार्टियों का इतिहास जानें तो रूस से लेकर चीन, पूर्वी यूरोपीय देशों कोरिया और क्यूबा से लेकर भारत के लाल गलियारों में खूनी हिंसा देखने को मिली है। देश में असहिष्णुता को लेकर बवाल मचाने वाले वामपंथियों द्वारा की जा रही राजनीतिक हत्याओं पर खामोश क्यों हैं। वामपंथी सियासत में वर्चस्व कायम करने के लिए अपने विचारों को थोपने के लिए अन्य विचारों के लोगों की राजनीतिक हत्याएं करने में कुख्यात रहे हैं।

पश्चिम बंगाल तो उनकी इस प्रवृत्ति का गवाह रहा है। अब प्राकृतिक संपदा से सम्पन्न केरल में लगातार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है। हिंसक घटनाओं का सिलसिला चिंता पैदा कर देने वाला है। केरल में जब से माकपा की सरकार है तब से निर्दोष लोगों और उनके परिवारों को सुनियोजित ढंग से निशाना बनाया जा रहा है। अब तक की घटनाओं में स्पष्ट तौर पर माकपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की संलिप्तता उजागर हुई है लेकिन मुख्यमंत्री पी. विजयन उन्हें परोक्ष रूप से संरक्षण दे रहे हैं। हर घटना पर सरकार केवल लीपापोती कर रही है। केरल में लाल आतंक का लम्बा इतिहास है।

स्वतंत्रता के बाद अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी ने संघ पर सबसे पहला बड़ा हमला 1948 में किया था। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी जब स्वयंसेवकों की एक बैठक को संबोधित कर रहे थे तब माक्र्सवादी उपद्रवियों ने हमला कर दिया था। इसके बाद 1952 में भी श्रीगुरुजी जब अलप्पुझा में एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, तब भी वामपंथी गुंडों ने उनको चोट पहुंचाने के लिए हमला बोला था। वर्ष 1969 में त्रिशूर के श्री केरल वर्मा कॉलेज में स्वामी चिन्मयानंदजी युवाओं के बीच उद्बोधन के लिए आमंत्रित किए गए थे। उनको भाषण देने से रोकने के लिए माक्र्सवादी बदमाशों ने सुनियोजित हमला बोला था, जिसमें से स्वयंसेवकों ने बड़ी मुश्किल से स्वामीजी को सुरक्षित निकाला था।

1970 में एर्नाकुलम जिले के परूर में माकपा हमलावरों ने संघ के पूर्व प्रचारक वेलियाथनादु चंद्रन की हत्या की। 1973 में त्रिशूर जिले के नलेन्करा में मंडल कार्यवाह शंकर नारायण को मार डाला। 1974 में कोच्चि में संघ के मंडल कार्यवाह सुधींद्रन की हत्या की। 1978 में कन्नूर जिले के तलासेरी में एक शाखा के मुख्य शिक्षक चंद्रन और एक किशोर छात्र सहित अनेक कार्यकर्ताओं की हत्या माकपा के गुंडों ने की। 1980 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता गंगाधरन और भाजपा के गोपालकृष्णन की हत्या की गई। 1981 में खंड कार्यवाह करिमबिल सतीशन, 1982 में कुट्टनाडु में खंड कार्यवाह विश्वम्भरम् और 1986 में कन्नूर जिले के भाजपा सचिव पन्नयनूर चंद्रन की हत्या की गई। इसी तरह 1984 में कन्नूर के जिला सह कार्यवाह सदानंद मास्टर की घुटनों के नीचे दोनों टांगें काट दी गईं। ऐसी अनेक निर्मम हत्याओं को वामपंथी गुंडों द्वारा अंजाम दिया गया है।

केरल के वर्तमान मुख्यमंत्री पिनराई विजयन स्वयं भी संघ के कार्यकर्ता की हत्या के आरोपी हैं। विजयन और कोडियरी बालकृष्णन के नेतृत्व में पोलित ब्यूरो के सदस्यों ने संघ के स्वयंसेवक वडिक्कल रामकृष्णन की हत्या 28 अप्रैल 1969 को की थी। कन्नूर जिला केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन का गृह जिला है। पुलिस अधीक्षक के मुताबिक 1 मई 2016 से 16 सितंबर के बीच केवल कन्नूर जिले में राजनीतिक हिंसा की कुल 301 वारदातें घटित हुईं। इस प्रकार देखा जा सकता है कि केरल में लाल आतंक कितना विकराल रूप ले चुका है। (क्रमश:)

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