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उपभोक्ताओं के हाथ हुए मजबूत

चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक देश का उपभोक्ता है और इन सब नागरिकों के उपभोक्ता अधिकारों को संरक्षित करना सरकार की जिम्मेदारी है।

07:51 AM Jul 31, 2019 IST | Desk Team

चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक देश का उपभोक्ता है और इन सब नागरिकों के उपभोक्ता अधिकारों को संरक्षित करना सरकार की जिम्मेदारी है।

नई दिल्ली : भ्रामक विज्ञापनों पर नकेल कसने, उपभोक्ता अदालतों में लम्बित मामलों को जल्द निपटाने तथा शिकायतों के एक दिन में स्वत: दर्ज होने के प्रावधानों के साथ उपभोक्ता के अधिकारों को और मजबूत बनाने वाले विधेयक को लोकसभा ने मंगलवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया। उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने ‘उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019’ पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक के माध्यम से उपभोक्ता वस्तुओं के नये आयामों के अनुरूप उपभोक्ता के अधिकारों को मजबूत बनाया गया है और उसके अधिकारों को संरक्षित किया गया है। 
उन्होंने कहा कि चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक देश का उपभोक्ता है और इन सब नागरिकों के उपभोक्ता अधिकारों को संरक्षित करना सरकार की जिम्मेदारी है। विधेयक में उपभोक्ता के अधिकारों को मजबूत बनाने के लिए जो भी सुझाव आए हैं उनको इसमें शामिल किया गया है और जिन मुद्दों पर पहले विधेयक में आपत्ति दर्ज की गयी थी उनमें से कई को गहन विचार के बाद हटाया गया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विधेयक का सबसे अहम पहलू सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथारिटी यानी सीसीपीए है। 
इस व्यवस्था से उपभोक्ता के अधिकारों को मजबूती मिलती है और इस कारगर प्रावधान का इस्तेमाल कर वह अपने अधिकारों को संरक्षित रख सकता है। सीसीपीए को उपभोक्ता की शिकायत पर तत्काल कार्रवाई करने का अधिकार है लेकिन इसके लिए शिकायत दर्ज होनी आवश्यक है। विधेयक में हेल्थ केयर को शामिल नहीं किए जाने पर पासवान ने कहा कि 2018 के विधेयक में यह व्यवस्था थी लेकिन राज्यसभा में कुछ सदस्यों ने इस पर आपत्ति की थी। इन आपत्तियों को लेकर उनकी सदस्यों के साथ चर्चा हुई और उन्हें भी लगा कि हेल्थ केयर सचमुच उपभोक्ता के लिए दिक्कत पैदा कर सकता है, इसलिए इस विधेयक में इस बिंदु को शामिल नहीं किया गया है। 
पासवान ने कहा कि भ्रामक विज्ञापनों को लेकर विज्ञापन देने वाले को जिम्मेदार बनाया गया है। सेलेब्रिटी यदि गलत विज्ञापन में आता है तो उसके लिए जुर्माने की व्यवस्था की गयी है और उसके लिए सजा वाले प्रावधान को हटा दिया गया है। अखबार और मीडिया के लिए उसी स्थिति में सजा का प्रावधान किया गया है यदि वह मूल तथ्य से हटकर अपने विचार रखता है।
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