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वैष्णो देवी रोपवे पर विवाद

भारत ईश्वर में आस्थावान लोगों का देश है। लाखों लोग अपनी मनोकामनाएं…

10:54 AM Dec 26, 2024 IST | Aditya Chopra

भारत ईश्वर में आस्थावान लोगों का देश है। लाखों लोग अपनी मनोकामनाएं…

भारत ईश्वर में आस्थावान लोगों का देश है। लाखों लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए या अपने ईष्ट देवी-देवताओं के दर्शन करने के लिए धार्मिक स्थलों की यात्रा करते हैं। तीर्थ स्थलों में सम्बन्धित धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियां प्रतिष्ठापित हैं और उनके पीछे धार्मिक इतिहास है। हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थस्थल जम्मू की त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित ​वैष्णो देवी, बाबा अमरनाथ की गुफा, कैलाश मानसरोवर, केदारनाथ, बदरीनाथ, तिरुपति बाला जी और अन्य कई शक्तिपीठ हैं। आस्थावान श्रद्धालु देवी-देवताओं के दर्शन करने के​ लिए कठिन से कठिन यात्राएं भी करते हैं। यह उनकी श्रद्धा का प्रमाण है। विडम्बना यह है कि आज के दौर में धार्मिक स्थलों को भी टूरिस्ट प्लेस का स्वरूप दिया जाने लगा है। पर्यटन स्थल तो कोई भी सरंचना या इमारत हो सकती है अथवा कोई ऐसी जगह हो सकती है जिसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया हो। लोग वहां मौज-मस्ती के लिए ही जाते हैं। तीर्थ संस्कृत का शब्द है। जिसका अर्थ है पाप से तारने या पार उतारने वाला पुण्य यानि ऐसा पुण्य स्थान जो पवित्र हो और आने वालों में भी पवित्रता का संचार कर सके। ऐसे शक्ति पीठ दैवीय आस्था और भरोसे का केन्द्र होते हैं। तीर्थ स्थल पर जाते हुए श्रद्धालु तन-मन आैर आचरण को शुद्ध रखता है, इसलिए बहुत सारे धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए नियमों और शर्तों का पालन करना भी जरूरी है।

धार्मिक स्थलों पर ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए कि उस जगह की आस्था और धार्मिकता पर कोई आंच आए इस​िलए नैतिक अनुशासन पर भी जोर दिया जाता है। धार्मिक स्थलों की पवित्रता को बनाए रखने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए लेकिन समस्याएं तब खड़ी होती हैं जब धार्मिक स्थलों को टूरिस्ट प्लेस बना दिया जाता है आैर वहां आचरण संबंधी पाबंदियां खत्म हो जाती हैं। मैं धार्मिक स्थलों के विकास का विरोधी नहीं हूं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विकास तो होना ही चाहिए लेकिन ऐसे कदम नहीं उठाए जाने चाहिए जिससे धार्मिक स्थलों की आस्था प्रभावित हो। क्योंकि आस्था स्थल मौज-मस्ती के लिए नहीं होते। श्री माता वैष्णो देवी में प्रस्तावित रोपवे परियोजना के खिलाफ लगातार विरोध-प्रदर्शन चल रहे हैं। माता वैष्णो देवी संघर्ष समिति के आह्वान पर बंद बुलाया गया है। कटरा के बाजार बंद रहे आैर वाहन भी नहीं चले। प्रदर्शनकारियों को रोकने के​ लिए पुलिस ने बल प्रयोग भी किया और कई लोगों को ​िहरासत में भी लिया।

परियोजना का विरोध करने वाले दुकानदारों, पिट्ठू, घोड़े, पालकी वाले और स्थानीय हित धारकों का कहना है कि रोपवे कटरा के बाजार को बाईपास कर देगा जिससे तीर्थयात्रियों के आवागमन पर निर्भर हजारों दुकानदारों पर असर पड़ेगा और टट्टू सेवा प्रदान करने वाले लोगों आैर मजदूरों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा। रोपवे विरोधियों का यह भी कहना है कि रोपवे परियोजना पारम्परिक मार्ग को पूरी तरह से दरकिनार कर देगी और यह परियोजना उनकी आजीविका को पूरी तरह तबाह कर देगी। रोपवे का विरोध पिछले तीन साल से चल रहा है, जबकि श्राइन बोर्ड का कहना है कि रोपवे परियोजना एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम साबित होगा। रोपवे से यात्रा की दूरी केवल 6 मिनट रह जाएगी, जिसका उद्देश्य तीर्थयात्रियों विशेषकर बुजुर्गों और चलने में असमर्थ लोगों को लाभ पहुंचाना है। इससे श्रद्धालुओं को वैष्णो देवी की यात्रा के दौरान 12 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई से छुटकारा मिलेगा और उनकी यात्रा आसान हो जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाण गंगा और अर्द्धकुवारी के पड़ाव के बिना वैष्णो देवी यात्रा अधूरी मानी जाती है। रोपवे परियोजना के विरोध को देखते हुए आंदोलनकारियों की बातचीत श्राइन बोर्ड तथा उपराज्यपाल द्वारा गठित कमेटी के साथ होगी। बेहतर यही होगा कि व्यापारियों, दुकानदारों और स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी से सम्बन्धित चिंताओं का निवारण किया जाए। कुछ वर्ष पहले जब वैष्णो देवी जाने के ​िलए नया मार्ग बनाया गया था तब भी इसी तरह का विरोध देखने को मिला था। सवाल रोजी-रोटी का भी है, क्योंकि यह परियोजना दुकानदारों और मजदूरों को बेरोजगार कर देगी।

तीर्थस्थलों को पर्यटन स्थलों में परिवर्तित किए जाने को लेकर अलग-अलग विचार सामने आ रहे हैं। एक वर्ग का मानना है कि ऐसा करने से तीर्थस्थल व्यवसाय का केन्द्र बन जाते हैं। आज देश में अनेक प्राचीन ​िवशाल मंदिर हैं जिनमें कुछ दशकों पहले जाने पर एक आधात्मिक अनुभूति महसूस होती थी, स्पंदन महसूस होता था जो आजकल नहीं होता। केवल राजस्व बढ़ौतरी के लिए तीर्थस्थलों को पर्यटन स्थलों में परिवर्तित करना ठीक नहीं है। बेशक इससे आर्थिक पक्ष मजबूत होता है लेकिन इससे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। तीर्थस्थल तप​स्वियों की तपोभूमि हैं। जिस जगह पर मौज-मस्ती शुरू हो जाए वह जगह तीर्थ नहीं रहती। सरकारों को यह बात ध्यान में रखनी होगी कि उनके कदमों से लोगों की आस्था को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। तीर्थाटन आैर पर्यटन में अंतर को महसूस किया जाना चाहिए।

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