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कोरोना कहर : मास्क न मिलने पर आदिवासियों ने पत्तों को बनाया मुंह ढकने का सहारा

इस समय आलम यह है कि कोरोना वायरस से खुद का बचाव करने के लिए कोई सबसे जरूरी चीज हैं तो वह कुछ और नहीं बल्कि माउथ मास्क है।

05:47 PM Mar 27, 2020 IST | Desk Team

इस समय आलम यह है कि कोरोना वायरस से खुद का बचाव करने के लिए कोई सबसे जरूरी चीज हैं तो वह कुछ और नहीं बल्कि माउथ मास्क है।

इस समय आलम यह है कि कोरोना वायरस से खुद का बचाव करने के लिए कोई सबसे जरूरी चीज हैं तो वह कुछ और नहीं बल्कि माउथ मास्क है। इसलिए सरकार से लेकर डॉक्टर सभी लोग मुंह पर मास्क लगाने की सलाह दे रहे हैं,जिससे खांसने या छींकने पर वायरस दूसरे इंसान तक न पहुंच पाए। लेकिन देश के कई ऐसे लोग जिनके पास मास्क खरीदने के पैसे नहीं है। इसलिए उन्होंने पत्तों से ही अपना माउथ मास्क तैयार कर लिया है। 
जी हां यहां हम बात कर रहे हैं बस्तर के कुछ इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के बारे में। दरअसल कांकेर जिले के अंतागढ़ में रहने वाले आदिवासियों ने संक्रमण से खुद का बचाव करने के लिए पत्तों का ही मास्क बना लिया है। वहीं भर्रीटोला गांव के एक शख्स ने बताया है कि कोरोना के बारे में सुनने के बाद गांव में रहने वाले लोग काफी ज्यादा डरे हुए है। उनके पास कोई दूसरा विकल्प न होने के चलते उन्होंने इस तरह पत्तों का सहारा लेकर मास्क तैयार कर लिया है। 
अब यहां पर ज्यादातर लोग घरों से बाहर निकलते वक्त सरई के पत्तों से तैयार मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं। गांव के पटेल मेघनाथ हिडको ने बताया है कि गांव से आसपास वाली जगहें थोड़ी दूर है। इसके अलावा ये क्षेत्र माओवाद प्रभावित है इसलिए कहीं आना-जाना बहुत मुश्किल है। 
इस मामले पर जब राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को मालूम हुआ तब उनका कहना था कि वो इस मामले पर जिले के कलेक्टर से बातचीत करेंगे,जिससे इन सभी आदिवासी लोगों को कपड़े से तैयार मास्क दिए जाएंगे। 
बता दें कि बस्तर जिले के आदिवासियों की जिंदगियों  में पत्तों का काफी ज्यादा महत्व है। खाना खाने से लेकर वो इन पत्तों का इस्तेमाल साल,सियाड़ी और पलाश के पत्ते की थाली और दोने का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के आदिवासी परिवार तेंदूपत्ता और बीड़ी पत्ता भी बटोरते हैं। इन्हीं पत्तों के जरिए वो अपनी दो वक्त की रोजी-रोटी का गुजारा चला पाते हैं। 
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