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न्यायालय ने सार्वजनिक और सरकारी गाड़ियों को इलेक्ट्रिक में तब्दील करने के मुद्दे पर मांगा जवाब

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय ई-मोबिलिटी मिशन प्लान, 2020 के अमल के लिये जनहित याचिका पर शुक्रवार को केन्द्र से जवाब मांगा। इस मिशन योजना के तहत वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये सभी सार्वजनिक परिवहन और सरकारी वाहनों को धीरे धीरे इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करने की सिफारिश की गयी थी।

02:22 PM Jan 17, 2020 IST | Shera Rajput

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय ई-मोबिलिटी मिशन प्लान, 2020 के अमल के लिये जनहित याचिका पर शुक्रवार को केन्द्र से जवाब मांगा। इस मिशन योजना के तहत वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये सभी सार्वजनिक परिवहन और सरकारी वाहनों को धीरे धीरे इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करने की सिफारिश की गयी थी।

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न्यायालय ने सार्वजनिक और सरकारी गाड़ियों को इलेक्ट्रिक में तब्दील करने के मुद्दे पर मांगा जवाब
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उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय ई-मोबिलिटी मिशन प्लान, 2020 के अमल के लिये जनहित याचिका पर शुक्रवार को केन्द्र से जवाब मांगा। इस मिशन योजना के तहत वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये सभी सार्वजनिक परिवहन और सरकारी वाहनों को धीरे धीरे इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करने की सिफारिश की गयी थी।
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प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने इस याचिका में भूतल परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तथा अन्य संबंधित मंत्रालयों को इस याचिका में पक्षकार बनाने का निश्चय किया और इस मामले को सुनवाई के लिये चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध कर दिया।
गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस और सीता राम जिंदल फाउण्डेशन की जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर कम करने के प्रति सरकार की उदासीनता की वजह से नागरिकों को संविधान में प्रदत्त स्वास्थ और शुद्ध पर्यावरण के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। याचिका में कहा गया है कि वाहनों में जलने वाले ईंधन की वजह से निकलने वाला धुंआ भी वायु प्रदूषण में आंशिक रूप से योगदान करता है।
पीठ ने इस जनहित याचिका में उठाये गये मुद्दों का संज्ञान लेते हुये केन्द्र से इस पर जवाब मांगा है।
इन संगठनों की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार ने 2012 में नेशनल ई-मोबिलिटी मिशन प्लान जारी किया था जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने के लिये अनेक सिफारिशें की गयी थी। इसमें कहा गया था कि सरकारी गाड़ियों और सार्वजनिक परिवहन को अनिवार्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों में तब्दील किया जाना चाहिए।
इस योजना में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिये सब्सीडी के साथ ही कर और नीतिगत प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया था। इसके अलावा इसमें अपार्टमेन्ट इमारतों, पार्किंग स्थ्लों, सरकारी कार्यालयों और मॉल आदि में इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने की व्यवस्था भी उपलबध करायी जायेगी।
भूषण ने कहा कि सरकार अभी तक इस योजना को सफलतापूर्वक लागू नही कर सकी है।
याचिका में कहा गया है कि इस योजना को लागू करने के लिये सरकार ने 2015 और 2019 में फेम-इंडिया योजना लागू की थी जो उपभोक्तओं को सब्सीडी प्रदान करती है। हालांकि, ये प्रयास अपेक्षित नतीजे हासिल करने मे विफल रहे।
याचिका के अनुसार सरकार ने 2012 के मिशन प्लान के तहत 70 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का लक्ष्य रखा था लेकिन जनवरी, 2019 तक दो लाख 63 हजार वाहनों की ही बिक्री हो सकी। इससे योजना की विफलता का पता चलता है।
याचिका में कहा गया है कि इस योजना के तहत ऐसे वाहनों की मांग बढ़ाने और इन्हें चार्ज करने की सुविधाओं के लिये सरकार से 14,500 करोड़ रूपए के निवेश का अनुरोध किया गया था लेकिन दिसंबर, 2018 में संसद को सूचित किया गया कि उसने इस योजना के लिये सात साल की अवधि में 600 करोड़ रूपए से भी कम धन आबंटित किया।
इन संगठनों ने नेशनल ई मोबिलिटी मिशन प्लान-2020 के तहत की गयी सिफारिशों के साथ ही नीति आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करके उन पर अमल करने का निर्देश केन्द्र को देने का अनुरोध किया है।
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Shera Rajput

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