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सीआर नी-रिप्लेसमेन्ट देता है अपने घुटने होने का अहसास : डॉ निशिकांत

सीआर नी सर्जरी में कम से कम काट-छांट किया जाता है जिससे सर्जरी के दौरान कम से कम ब्लड लॉस होता है और रिकवरी में भी कम समय लगता है।

08:54 PM Nov 13, 2018 IST | Desk Team

सीआर नी सर्जरी में कम से कम काट-छांट किया जाता है जिससे सर्जरी के दौरान कम से कम ब्लड लॉस होता है और रिकवरी में भी कम समय लगता है।

पटना : पारस एचएमआरआई के आर्थोपेडिक एंड नी रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ निशिकांत कुमार ने कहा कि टोटल नी-रिप्लेसमेन्ट इस सदी की सबंसे सफल सर्जरी में आंकी जाती हैं। टोटल नी-आर्थोप्लास्टी के भी बेहद अच्छे परिणाम आए हैं। कई अघ्ययन बताते हैं कि इसमें सर्वाइवल रेट 90 प्रतिशत से अधिक है और फॉलो अप टाइम 20 वर्षों से भी अधिक है।

इन सारी प्रक्रियाओं में डयुरेबलिटी और फंक्शन को और बेहतर करने के लिए कई उपाय लगातार किए जा रहे हैं हालांकि एक विवाद जरूर है कि इस प्रक्रिया में पोजटेरियर क्रुसियेट लिगामेन्ट रहने दिया जाये या हटा दिया जाये। मौजूदा समय में नी-रिप्लेसमेन्ट में इंप्लांट का विकल्प सर्जन के प्रीफरेन्स और ट्रेनिंग पर निर्भर करता है। क्रुसियेट रिटेनिंग डिजाइन पोजटेरियर क्रुसियेट लिगामेन्ट को बचाए रखता है और इसे काटा नहीं जाता है जैसा कि पोजटेरियर स्टैबलाइज्ड डिजाइन में होता था।

क्रुसियेट रिटेनिंग प्रोस्थेटिक डिजाइन में कुछ फायदे हैं जैसे कि प्रिजर्वेशन आफ बोन, नोर्मल नी काइनेमेटिक्स, बेहतर प्रोप्रियोसेप्सन, ऐसे में आजकल क्रुसियेटीव रिटेनिंग डिजाइन का प्रचलन काफी जोर पकड़ रहा है। इस तकनीक में धुटनों को अधिक काटने छांटने की जरूरत नहीं पड़ती है इसका फायदा यह होता है कि मरीज अपने घुटनों को रॉल बैक कर सकता है। सीआर नी सर्जरी में कम से कम काट-छांट किया जाता है जिससे सर्जरी के दौरान कम से कम ब्लड लॉस होता है और रिकवरी में भी कम समय लगता है।

डा.निशिकांत ने कहा कि ऐसे भी एशियाई लोगों के घुटने छोटे होते हैं, इससे पोस्ट ऑपरेटिव फै्रक्चर की संभावना कम होती है। ऐसे में नी-रिप्लेसमेन्ट के लिए किसी अन्य तकनीक में अगर घुटनों को थोड़ा भी काटा जाएगा तो परेशानी बढ़ सकती है। इस तकनीक का सक्सेस रेट काफी बढिय़ा है और पूरी दुनिया में एक्सपर्ट डाक्टर सीआर नी-रिप्लेसमेन्ट को तरजीह देते हैं। सीआर नी रिप्लेसमेन्ट के लिए तकनीकी रूप से दक्ष एवं अनुभवी चिकित्सकों का होना आवश्यक है। इस तकनीक में मरीजों को चिकित्सा के बाद भी अपना घुटना होने का एहसास होता है।

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