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3 ऐसे भारतीय स्टार क्रिकेटर्स जिनका संन्यास पड़ा टीम इंडिया को भारी

01:57 PM Dec 25, 2023 IST
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एक कहावत है जो भी दुनिया में आया है वो एक न एक दिन ज़रूर जाएगा, उसी तरह क्रिकेट में भी कुछ ऐसे खिलाड़ी आते हैं जिनकी जगह कभी भी कोई नहीं ले सकता लेकिन जब यह खिलाड़ी संन्यास लेते है तो उनके नियमित स्थान और उनके किये गए प्रदर्शन को बार बार याद किया जाता है। वैसे तो हर खिलाड़ी जो भी अपने देश के लिए खेलता है उसके अन्दर कुछ अलग होता है और वह अपनी पहचान भी दूसरे से अलग ही बनाता है ऐसे में नए खिलाड़ियों से भी उनकी ही जैसी अपेक्षा की जाती है। इस आर्टिकल में 3 ऐसे भारतीय स्टार क्रिकेटर्स की बात करने वाले हैं जिनके संन्यास के बाद आज तक उनका उत्तराधिकारी नहीं मिल पाया है।

HIGHLIGHTS

3. ज़हीर खान - बाएं हाथ के इस तेज़ गेंदबाज़ को अपनी स्विंग और अंतिम ओवर में यॉर्कर्स के लिए जाना जाता था। 2003 वर्ल्ड कप फाइनल में जिस गेंदबाज़ से पूरा देश नाराज था 2011 वर्ल्ड कप में इसी गेंदबाज़ का नाम सबसे ज्यादा विकेट थे। ज़हीर खान के नाम वनडे क्रिकेट में 282 विकेट टेस्ट क्रिकेट में 311 विकेट दर्ज हैं। वर्ल्ड कप 2011 में ज़हीर खान पाकिस्तान के शाहिद आफरीदी के साथ संयुक्त रूप से सबसे ज्यादा 21 विकेट झटकने वाले गेंदबाज़ थे। ज़हीर खान ने सन 2000 में बांग्लादेश के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू किया था जबकि उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट फरवरी 2014 में न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला था वहीं ज़हीर ने अपना वनडे डेब्यू टेस्ट क्रिकेट डेब्यू से ठीक एक महीने पहले केन्या के खिलाफ नैरोबी में किया था वहीँ इन्होने आखिरी वनडे मैच 2012 में श्रीलंका के खिलाफ पल्लेकेले में खेला था। इसके अलावा इनके नाम 17 टी20 मुकाबलों 17 विकेट भी शामिल हैं।
ज़हीर खान के संन्यास लेने के बाद से ही भारतीय टीम को बाएं हाथ के तेज़ गेंदबाज़ की समस्या बनी ही हुई है। युवा अर्शदीप सिंह, टी नटराजन जैसे गेंदबाज़ भी टीम में शामिल हुए लेकिन ज़हीर खान की तरह अपनी जगह पक्की नहीं कर पायें हैं।

2. युवराज सिंह - जब से युवराज सिंह ने संन्यास लिया है तभी से भारत के लिए नंबर 4 की समस्या बनी हुई है अब जाके शायद श्रेयस अय्यर अपनी जगह फिक्स कर पायें हैं लेकिन उनका भी अन्दर बाहर चलता रहता है। युवराज सिंह नंबर 4 के एक भरोसेमंद बल्लेबाज़ थे। वह टीम शुरुआती झटकों से उबारना भी बखूबी जानते थे और एक अच्छी शुरुआत को बुलेट ट्रेन की तरह चलाना भी। 2007 टी20 वर्ल्ड कप में युवराज सिंह के योगदान को कौन ही भूल पाया होगा। इंग्लैंड के खिलाफ स्टुअर्ट ब्रॉड को लगाए गए 6 छक्के और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में युवराज की 30 गेंदों में 70 रन की पारी से भारत पहले टी20 वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचा और फिर फाइनल भी जीता।
2011 वर्ल्ड कप में मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट रहे युवराज सिंह ने भारत को 28 साल बाद वर्ल्ड कप जीतने के लिए अद्भुत प्रदर्शन ही किया था, वर्ल्ड कप 2011 के दौरान युवराज हर मैच में बल्ले,गेंद और फील्डिंग से सभी को हैरान कर दिया उनका प्रदर्शन वास्तव में काफी ज़बरदस्त था उनके बल्ले से 362 रन निकले और उनकी गेंद ने 15 शिकार किये। वेस्टइंडीज के खिलाफ उनकी 113 रन की शतकीय पारी और क्वार्टर फाइनल में महतवपूर्ण 57 रन की अर्धशतकीय पारी के दम पर भारत सेमीफाइनल में पहुँच पाया था और 2 अप्रैल 2011 को जब धोनी ने वो ऐतिहासिक छक्का लगाया उस वक़्त युवराज सिंह दूसरे छोर पर ही खड़े थे। युवराज ने अपना टेस्ट डेब्यू उनके घरेलु मैदान मोहाली में न्यूजीलैंड के खिलाफ 2003 में किया था जबकि उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट 2012 में कोलकाता के ऐतिहासिक ग्राउंड ईडन गार्डन पर इंग्लैंड के खिलाफ खेला था। जबकि युवराज ने अपना वनडे डेब्यू सन 2000 में केन्या के खिलाफ नैरोबी में किया था। युवराज ने 2007-2017 तक टी20 क्रिकेट में भी भारतीय टीम को अपनी सेवाए प्रदान की हैं। बाएं हाथ के इस ऑलराउंडर के नाम टेस्ट में 1900 रन, वनडे क्रिकेट में 8701 रन और टी20 क्रिकेट में 1177 रन थे। इस खिलाड़ी के जाने के बाद से ही नंबर 4 पर भारतीय टीम के लिए समस्या बन गया था।

1. महेंद्र सिंह धोनी - एक ऐसा खिलाड़ी जो जब तक क्रीज़ पर होता था भारतीय टीम की जीत की उम्मीद बंधी रहती थी, और विपक्षी गेंदबाज़ अच्छे से जानते थे की अगर यह खिलाड़ी क्रीज़ पर रह गया तो मैच हमारे हाथ से चला ही जाएगा इस लिस्ट में नंबर 1 पर नाम आता है भारत के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का। धोनी की कप्तानी में ही भारत ने 2007 का टी20 वर्ल्ड कप, 2011 का वर्ल्ड कप और 2013 की चैंपियंस ट्राफी का खिताब अपने नाम किया था। इसके अलावा धोनी ने 2009-10 के समय भारत को पहली बार न्यूजीलैंड की धरती पर टेस्ट सीरीज जीतायी और टेस्ट क्रिकेट में नंबर 1 भी बनाया। महेंद्र सिंह धोनी हमेशा कूल रहते थे चाहे परिस्तिथि कैसी भी हो धोनी के चेहरे पर कभी भी टेंशन नहीं दिखती थी। धोनी की सबसे बड़ी खासियत यह थी की दबाव को सोखने का जो हुनर इस खिलाड़ी में था वह वर्ल्ड क्रिकेट के शायद ही किसी और खिलाड़ी के पास होगा। चाहे 2007 वर्ल्ड कप के पाकिस्तान वाले ग्रुप मैच में बॉल-आउट के दौरान बल्लेबाजों को गेंद देने का फैसला हो या फाइनल में जोगिन्दर शर्मा को आखिरी ओवर में बचा कर रखने वाला, 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में परिस्तिथि के अनुसार खुद नंबर 5 पर आये वो भी उस खिलाड़ी को रोककर जो वर्ल्ड कप 2011 में मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट था, 2013 चैंपियंस ट्राफी फाइनल जडेजा और आश्विन के ओवर बचा कर रखने का दाव, न जाने ऐसे ही कितने मुकाबले थे जो धोनी ने विपक्षी टीम के मुंह से छीन ली थी। महेंद्र सिंह धोनी के करियर की शुरुआत उस समय के कप्तान सौरव गांगुली के नेतृत्व में शुरू हुई उन्होंने चटगाँव में अपना वनडे डेब्यू बांग्लादेश के खिलाफ खेला और 2019 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ अपना आखिरी वनडे और इंटरनेशनल मुकाबला खेला। टेस्ट क्रिकेट में श्रीलंका के खिलाफ 2005 में धोनी ने डेब्यू किया जबकि 2014 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्होंने संन्यास की घोषणा की। धोनी ने 13 साल(2006-2019) टी20 क्रिकेट भी खेला। धोनी के नाम टेस्ट क्रिकेट में 4876 रन, वनडे क्रिकेट में 10773 रन और टी20 क्रिकेट में 1617 रन थे। वह आज भी आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स टीम के कप्तान हैं और हर साल उस लीग में खेलते हुए नज़र आते हैं।

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