Sachin Tendulkar : कैसे बने क्रिकेट के भगवान "सचिन रमेश तेंदुलकर"
अगर विश्व क्रिकेट में कोई आपसे यह पूछे की इस खेल को असली पहचान किस खिलाड़ी ने दी है तो शायद आप भी औरों की तरह कहेंगे Sachin Tendulkar. Sachin Tendulkar को आज किसी भी पहचान की जरूरत नहीं हैं। उन्होंने भारत की तरफ से खेलते हुए कई रिकॉर्ड्स अपने नाम किए और भारत के अलावा उन्हें वर्ल्ड क्रिकेट में नजाने कितने नामों से जाना जाता है। आलम यह है कि इस खिलाड़ी का रूतबा ऐसा है कि इन्हें क्रिकेट के भगवान के नाम से जाना जाता हैं। मास्टर ब्लास्टर आज अपना 51वां जन्मदिन मना रहे हैं। ऐसे में आइए उनके जीवन और करियर के ख़ास पलों को फिर से जीतें हैं।
HIGHLIGHTS
- Sachin Tendulkar आज मना रहे हैं अपना 51वां जन्मदिन
- डेब्यू मैच में टूटा नाक, और करियर ख़त्म ?
- भारत रत्न समेत देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार सचिन के नाम
- Sachin Tendulkar को वर्ल्ड कप जीतने में लगे 22 साल
- एक फ़ोन कॉल ने बनाया सचिन को वर्ल्ड चैंपियन
शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो अपनी ज़िन्दगी में सपने ना देखता हो, और उसे पाने के लिए अपनी तरफ से जी तोड़ कोशिश भी करते हैं। जैसी जिंदगी वह जीना चाहते हैं जिंदगी वैसी ही चले, लेकिन ऐसा कुछ ही लोगों के नसीब में मुमकिन हो पाता है और ऐसा ही कुछ ‘क्रिकेट के भगवान’ सचिन तेंदुलकर के साथ भी हुआ, जिन्होंने अपनी जिंदगी में जो-जो सपना देखा वह पूरा होता चला गया। महज 16 साल की उम्र में सचिन ने क्रिकेट की दुनिया में अपना पहला कदम रखा। 1989 में पाकिस्तान क खिलाफ सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट और वनडे डेब्यू किया था। तेंदुलकर का जन्म 24 अप्रैल 1973 को दादर, बॉम्बे में निर्मल नर्सिंग होम में एक महाराष्ट्रीयन परिवार में हुआ था। उनके पिता रमेश तेंदुलकर , एक मराठी भाषा के उपन्यासकार और कवि थे, जबकि उनकी माँ, रजनी, बीमा उद्योग में काम करती थीं। तेंदुलकर के पिता ने उनका नाम अपने पसंदीदा संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था । तेंदुलकर के तीन बड़े भाई-बहन हैं: दो सौतेले भाई नितिन और अजीत, और एक सौतेली बहन सविता। बचपन में तेंदुलकर को टेनिस और क्रिकेट दोनों में रुचि थी। उनकी बदमाशी पर रोक लगाने के लिए उनके बड़े भाई अजीत ने 1984 में तेंदुलकर के हाथ में बल्ला थमा दिया। अजीत ने सचिन को क्रिकेट कोच रमाकांत आचरेकर से मिलवाया। अपनी पहली मुलाकात में तेंदुलकर अच्छा नहीं खेल पाए। अजीत ने कोच से अनुरोध किया कि उसे खेलने का एक और मौका दिया जाए, लेकिन एक पेड़ के पीछे छिपकर देखते रहें। इस बार तेंदुलकर ने शानदार प्रदर्शन किया और उन्हें आचरेकर की अकादमी में शरण मिल गई। तेंदुलकर मैदान पर घंटों अभ्यास करते थे; यदि वह थक जाते थे, तो आचरेकर स्टंप के ऊपर एक रुपये का सिक्का रख देते थे और जो गेंदबाज तेंदुलकर को आउट करता था, उसे सिक्का मिल जाता था। यदि तेंदुलकर बिना आउट हुए सत्र पूरा कर लेते थे, तो कोच उन्हें सिक्का देते थे। तेंदुलकर अपने जीते हुए 13 सिक्कों को अपनी सबसे बेशकीमती संपत्तियों में से एक मानते हैं।
डेब्यू मैच में टूटा नाक, और करियर ख़त्म ?
डेब्यू मैच में वसीम अकरम ने उन्हें बाउंसर मारकर उनकी नाक से खून तक बहा दिया था, नॉन स्ट्राइकर एंड पर नवजोत सिंह सिद्धू थे वो फटाक से भागते हुए सचिन के पास भागे। सभी ने बोला कि तेरा तो नाक टूट गया है तेरा तो हो गया। उस वक़्त सचिन के नाक पर एक आइस पैक और मुंह ने सिर्फ एक डिस्प्रिन की गोली थी। लेकिन फिर भी उस बच्चे ने हार नहीं मानी और हलकी सी एक आवाज़ में बोला "मैं खेलेगा।" उसके बाद मैदान पर जो हुआ वह किसी करिश्मे से कम नहीं था। सचिन ने वकार यूनिस, वसीम अकरम, इमरान खान की गेंदों के आगे ना सिर्फ टिके बल्कि बेहतरीन शॉट्स लगाए। उस वक्त से ही ये साबित हो गया था कि सचिन की चाहत बहुत बड़ी है और यह खिलाड़ी एक दिन क्रिकेट की दुनिया पर राज करेगा। वह कुछ बड़ा ही करके मानेंगे और ऐसा ही हुआ।
भारत रत्न समेत देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार सचिन के नाम
सचिन तेंदुलकर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 34000 से ज्यादा रन बनाए हैं। इसके साथ ही उनके नाम 100 अंतरराष्ट्रीय शतक का रिकॉर्ड भी दर्ज हैं। जहां वनडे क्रिकेट में सचिन के नाम 49 शतक हैं वहीं टेस्ट में सचिन ने 51 शतक जड़े हैं। सचिन को देश के सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। सचिन ने 14 नवम्बर 2013 को वेस्टइंडीज के खिलाफ अपनी आखिरी पारी खेली। उनके संन्यास के समय भारत और विश्व के हर क्रिकेट फैन ने नम आँखों के साथ उन्हें विदाई दी थी।
वर्ल्ड कप जीतने के लिए सचिन को करना पड़ा 22 साल इंतजार
हर क्रिकेटर का सपना होता है कि वह अपनी जिंदगी में वर्ल्ड कप जरूर जीते। सचिन ने क्रिकेट खेलना तो बचपन में शुरू किया लेकिन 1983 में भारत ने जब वर्ल्ड कप जीता उस समय सचिन ने भी नन्ही आँखों से इस ट्रॉफी को जीतने की ठानी। लेकिन इसके लिए उन्हें 22 साल, 6 और वर्ल्ड कप तक इंतजार करना पड़ा। अपने पहले वर्ल्ड कप में सचिन काफी छोटे थे, और भारत का प्रदर्शन भी कुछ ख़ास नहीं था। ऐसे में अपने पहले ही वर्ल्ड कप में जीतने का सपना लिए ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड गए सचिन को हार का मुंह देखना पड़ा। 1996 विश्वकप भारत में खेला जा रहा था भारत का सामना सेमीफाइनल में श्रीलंका से हुआ लेकिन सचिन के स्टंप आउट होने के बाद जो हुआ उसे आज भी भारत में क्रिकेट के काले दिन के रूप में देखा जाता है। 1999 में भारतीय टीम का प्रदर्शन कुछ ख़ास नहीं रहा। 2003 वर्ल्ड कप में सचिन वर्ल्ड कप जीतने के सबसे ज्यादा पास आये और टीम फाइनल तक पहुंची सचिन ने पूरे विश्वकप में सबसे ज्यादा 673 रन बनाए लेकिन फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के सामने टीम को हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद 2007 वर्ल्ड कप में भारत के इतिहास में सबसे खराब विश्वकप हुआ और भारत ग्रुप स्टेज से ही बांग्लादेश और श्रीलंका से हारकर बाहर हो गया था। यहां पर सचिन ने सोचा था कि शायद वर्ल्ड कप उनके नसीब में नहीं है और उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए।
एक फ़ोन कॉल ने बनाया सचिन को वर्ल्ड चैंपियन
सचिन संन्यास का मन बना चुके थे लेकिन उसी समय उनके पास एक कॉल आया और वह फोन किसी और का नहीं बल्कि क्रिकेट के लीजेंड विव रिचर्ड्स का था उन्होंने सचिन को समझाया कि सचिन को एक और वर्ल्ड कप खेलना चाहिए और सचिन ने उनकी बात मान ली। सचिन ने 2011 वर्ल्ड कप में भारत की तरफ से सबसे ज्यादा रन बनाए और आखिर में भारत को वर्ल्ड चैंपियन बना कर ही माने। जीत के बाद जब भारतीय खिलाड़ियों ने सचिन को अपने कंधो पर उठाया उस समय ना सिर्फ सचिन रोये रहे थे बल्कि जीत के जश्न में पूरा देश रोया रहा था।