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पाकिस्तान से क्रिकेट निषेध

04:30 AM Jul 30, 2025 IST | Arjun Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट अब सिर्फ खेल नहीं रहा। वह राजनीति, कूटनीति और जनभावनाओं का मिश्रण बन चुका है। परम्परागत प्रतिद्वंद्वी रही भारत-पाकिस्तान की क्रिकेट टीमें जब भी आमने-सामने आती हैं तो सिर्फ रन और विकेट ही नहीं बल्कि आत्मसम्मान और वर्तमान नीतियों की भी परीक्षा होती है। आगामी एशिया कप के क्रिकेट टूर्नामैंट में भारत और पाकिस्तान की टीमें एक बार फिर आमने-सामने होंगी लेकिन इस मामले को लेकर राजनीतिक उबाल आ गया है और देश में विरोध और असंतोष की लहर भी चल पड़ी है। विपक्षी दलों का कहना है कि भारत को यह मैच नहीं खेलना चाहिए। क्योंकि नरेन्द्र मोदी सरकार का स्टैंड है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान से ट्रेड भी बंद है और केन्द्र ने सिंधु जल रोकने का भी ऐलान किया हुआ है। ऐसी तनावपूर्ण स्थितियों में क्रिकेट मैच खेलना उचित नहीं। इस मैच को लेकर देश में विरोध और असंतोष की लहर भी चल पड़ी है। न केवल राजनीतिक क्षेत्रों में बल्कि सोशल मी​डिया पर बहस भी बहुत तेज हो गई है। अनेक स्वर उठ रहे हैं। यद्यपि खेल मंत्रालय का कहना है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड पर केन्द्र सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है। बीसीसीआई फिलहाल खेल मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता क्योंकि राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक अभी पारित नहीं हुआ है। ऐसे में सीधे हस्तक्षेप करना सम्भव नहीं है।
एशिया कप अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अधीन नहीं आता, बल्कि इसका आयोजन एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) करती है। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख मोहसिन नकवी इस समय एसीसी के अध्यक्ष हैं। भारत-पाकिस्तान मुकाबलों पर भारी आर्थिक दांव लगे हैं। सोनी नेटवर्क ने एसीसी से आठ साल के प्रसारण अधिकार 170 मिलियन डॉलर में खरीदे हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबले न होने पर प्रसारकों और एसीसी के राजस्व पर भारी असर पड़ेगा। बीसीसीआई इस नुक्सान को झेलने में सक्षम है लेकिन अन्य छोटे देशों के क्रिकेट बोर्ड, जो क्रिकेट पर निर्भर नहीं हैं, उनकी वित्तीय स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। खेल मंत्रालय ने संसद में राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक प्रस्तुत किया है, जिसमें असाधारण परिस्थितियों और राष्ट्रीय हित में मंत्रालय को अन्तर्राष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भारतीय खिलाड़ियों की भागीदारी पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार मिलेगा। फिलहाल खेल मंत्रालय ने गेंद बीसीसीआई के पाले में डाल दी है।
यह सही है कि क्रिकेट को दोनों देशों के बीच कूटनीति के रूप में भी इस्तेमाल ​िकया गया है। 1987 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जिया-उल-हक ने भारत का दौरा किया था। जहां उन्होंने एक क्रिकेट मैच देखा था। इस दौरे को ‘‘शांति के लिए क्रिकेट’’ पहल के रूप में देखा गया। जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को बेहतर बनाना था। हालांकि इस दौरे के बाद सीमा पर तनाव फिर बढ़ गया। 1999 के कारगिल युद्ध और 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद कूटनीतिक गर्मजोशी के एक दुर्लभ क्षण में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने एक साहसिक शांति प्रक्रिया शुरू की। इसके परिणामस्वरूप, भारत ने 14 वर्षों में पहली बार 2004 में पाकिस्तान का दौरा किया, जिसमें पांच मैचों की एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) शृंखला और तीन मैचों की टेस्ट शृंखला शामिल थी, जिसमें भारत ने दोनों प्रारूपों में जीत हासिल की जो क्रिकेट और द्विपक्षीय संबंधों में एक ऐतिहासिक क्षण था। 2009 में लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हुए आतंकवादी हमले ने पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट की मेज़बानी करने की क्षमता पर गहरा असर डाला। इस घटना के कारण देश में टेस्ट मैचों पर एक दशक तक रोक लगी रही और पाकिस्तान को 2011 क्रिकेट विश्व कप की सह-मेजबानी का अधिकार भी गंवाना पड़ा। इसने भारत की द्विपक्षीय क्रिकेट संबंधों में शामिल होने की अनिच्छा को और गहरा कर दिया जिससे रिश्ते और भी तनावपूर्ण हो गए।
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते 2011 के आईसीसी क्रिकेट विश्व कप के दौरान भी दोनों के बीच सेमीफाइनल मुकाबला हुआ था। भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध और संघर्ष हुए हैं। इसका असर क्रिकेट मैचों पर भी हुआ है। क्रिकेट कूटनीति दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलाने का काम भी करती रही। यह एक ऐसा खेल है जो दोनों देशों के लोगों को एक साथ लाता है लेकिन इसका राजनीतिक और सामाजिक महत्व भी है। पूर्व क्रिकेट कप्तान सौरभ गांगुली का कहना है कि पहलगाम जैसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए। आतंकवाद रुकना चाहिए। भारत हमेशा आतंकवाद के खिलाफ रहा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि खेल रुक जाए। सौरभ गांगुली का यह व्यक्तिगत विचार हो सकता है लेकिन लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब भारत ने जुलाई में वर्ल्ड चैम्पियनशिप ऑफ लीजैंड्स में पाकिस्तान के खिलाफ खेलने से इंकार कर दिया तो अब एशिया कप में कैसे खेलेगा। बीसीसीआई न तो राष्ट्र से बड़ा है और न ही उसे राष्ट्र हितों पर घात करने का अधिकार है। बीसीसीआई विश्व में सबसे अमीर संस्था है लेकिन राष्ट्र सम्मान के सामने पैसे की कोई कीमत नहीं होती। भारत का स्वाभिमान खेल से कहीं अधिक बढ़कर है। पहलगाम हमले के बाद भारत में पाकिस्तान के प्रति आक्रोश का माहौल है। सैन्य संघर्ष के बाद जनभावनाएं यही हैं कि भारत-पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेले। देश के लिए यह एक संवेदनशील एवं भावनात्मक मुद्दा है। भारत की बेटियों का सुहाग उजाड़ने वालों के साथ क्रिकेट क्यों खेला जाना चाहिए। बेहतर यही होगा कि सरकार हस्तक्षेप करे और बीसीसीआई जनभावनाओं का सम्मान करे।

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