Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कच्चा तेल व भारत-अमेरिका

04:45 AM Oct 25, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रूस की दो बड़ी पेट्रोलियम तेल कम्पनी पर जिस तरीके से आर्थिक प्रतिबन्धों को लागू किया है उससे विश्व के विभिन्न देशों को होने वाली कच्चे तेल की सप्लाई पर विपरीत असर पड़ना लाजिमी माना जा रहा है। अमेरिका की देखा देखी यूरोपीय संघ के देशों ने भी रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये हैं। अमेरिका भारत पर भी लगातार दबाव बना रहा है कि वह रूस से तेल आयात समाप्त करे। अमेरिका का मानना है कि तेल के व्यापार से रूस जो कमाई करता है उसका खर्चा वह यूक्रेन से चल रहे अपने युद्ध पर करता है। डोनाल्ड ट्रम्प चाहते हैं कि रूस से तेल कारोबार पूरी तरह बन्द किया जाना चाहिए जिससे रूस यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध का वित्तीय पोषण न कर सके। जबकि भारत का स्पष्ट मानना है कि किसी एक देश द्वारा किसी दूसरे देश पर लगाये जाने वाले आर्थिक इकतरफा प्रतिबन्धों को राष्ट्र संघ की मान्यता प्राप्त नहीं होती है अतः वह रूस से व्यापार करने के लिए स्वतन्त्र है। फिलहाल रूस से सबसे ज्यादा तेल चीन खरीदता है और उसके बाद भारत का नम्बर आता है।
भारत पर इसी वजह से अमेरिका ने 25 प्रतिशत अतिरिक्त आयात शुल्क लगा कर इसे कुल 50 प्रतिशत कर दिया था जबकि इसने चीन को धमकी दे रखी है कि वह उसके आयात पर 150 प्रतिशत शुल्क दर कर देगा। राष्ट्रपति ट्रम्प रूसी तेल कारोबार को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक अस्त्र की तरह उपयोग कर रहे हैं और दुनिया के अन्य देशों को डरा रहे हैं कि यदि उन्होंने उनकी बात न मानी तो इसके नतीजे उन्हें भुगतने होंगे। भारत के सन्दर्भ में वह अभी तक तीन बार घोषणा कर चुके हैं कि प्रधानमन्त्री मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि भारत रूस से कच्चा तेल निकट भविष्य में नहीं खरीदेगा जबकि भारत की ओर से एेसा कुछ नहीं कहा गया है। एेसा लगता है कि श्री ट्रम्प जब किसी बात की जिद पकड़ लेते हैं तो उसे बार- बार दोहराते हैं। ऐसा ही उन्होंने भारत- पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम को लेकर किया और कम से कम 51 बार दोहराया कि उन्हीं के हस्तक्षेप की वजह से भारत-पाक में संघर्ष विराम हुआ। भारत ने ट्रम्प के इस कथन को अभी तक स्वीकार नहीं किया है और लगातार कहा है कि युद्ध विराम पाकिस्तान की अनुनय के बाद किया गया। मगर ट्रम्प हैं कि मानते ही नहीं। अब एेसा ही व्यवहार वह रूस के साथ भारत के तेल कारोबार को लेकर कर रहे हैं। रूस की दो बड़ी तेल कम्पनियों रोजनेफ्ट व लुकआयल का रूस के कुल विश्व तेल निर्यात में हालांकि 5 प्रतिशत ही हिस्सा है मगर इनका उत्पादन इतना है कि भारत की तेल आयात जरूरतें इनसे काफी हद तक पूरी होती हैं। रूस से सर्वाधिक आयात भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज करती है।
यह भारत के कुल रूसी तेल आयात का आधा हिस्सा खरीदती है और सशका रोजनेफ्ट कम्पनी से लम्बी अवधि का तेल खरीद अनुबन्ध है। भारत की सरकारी तेल क्षेत्र की कम्पनियां भी रूस से तेल की खरीदारी करती हैं। यदि ये कम्पनियां रूस से तेल खरीदना बन्द कर दें तो इन्हें भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ सकती है। दूसरी तरफ ट्रम्प का कहना है कि तेल कारोबार की मार्फत रूस धन कमाकर यूक्रेन युद्ध को लगातार चालू रखे हुए है और इसे बन्द करने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसी प्रकार यूरोपीय देश भी अमेरिका के पिछलग्गू बने हुए हैं और वे भी रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये हुए हैं। श्री ट्रम्प ने पिछले सप्ताह ही कहा था कि वह इस बाबत रूसी राष्ट्रपति पुतिन से पूर्वी यूरोपीय शहर बुडापेस्ट में वार्तालाप करेंगे और रूस – यूक्रेन युद्ध को रोकने की तजवीज पेश करेंगे मगर वह अपनी बात से इस सप्ताह पलट गये और उन्होंने कहा कि इस बातचीत का कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि रूस- यूक्रेन युद्ध समाप्त करने को लेकर उनकी अभी तक श्री पुतिन से कई बार बातचीत हो चुकी है मगर उसका कोई नतीजा नहीं निकला है अतः नई बातचीत का भी कोई लाभ नजर नहीं आ रहा है इसलिए वह दो रूसी तेल कम्पनियों पर प्रतिबन्ध लगा रहे हैं। दूसरी तरफ पुतिन ने भी नहले पर दहला मारते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि कोई भी आत्मसम्मानी देश कभी भी दबाव के भीतर कोई फैसला नहीं करता है। श्री पुतिन ने बीते गुरुवार को ही कहा कि उनका देश कभी भी अमेरिका या अन्य किसी भी देश के दबाव के आगे कभी नहीं झुकेगा इसलिए रूस यूक्रेन युद्ध के चलते यदि रूस के भीतरी भागों पर हमला किया गया तो उसका माकूल मुंहतोह जवाब दिया जायेगा। श्री पुतिन के अनुसार अमेरिकी व यूरोपीय प्रतिबन्धों से उनके देश की अर्थ व्यवस्था पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। तीसरी तरफ चीन का भी कहना है कि इकतरफा आर्थिक प्रतिबन्ध अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के विरुद्ध हैं। जाहिर है कि श्री ट्रम्प दुनिया के कारोबार में अपनी दादागिरी चलाना चाहते हैं । जहां तक भारत का सम्बन्ध है तो यह देश 1974 व 1998 मे अमेरिकी आर्थिक प्रतिबन्धों को झेल चुका है । इन दोनों वर्षों में भारत ने परमाणु परीक्षण किये थे जिनके बाद अमेरिका ने विविध प्रतिबन्ध लगाये थे। मगर भारत इसके बावजूद अपनी आर्थिक प्रगति करता रहा और विश्व व्यापार मे अपनी जगह बनाता रहा।

Advertisement
Advertisement
Next Article