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नशे में डुबाने की खतरनाक साजिश

06:04 AM Jul 08, 2025 IST | विजय दर्डा

कनाडा के विभिन्न इलाकों में घूमते हुए मैं आश्चर्यचकित था कि यह देश किस तरह नशे के सौदागरों की गिरफ्त में फंस चुका है। गांजा, अफीम और कोकीन से लेकर हेरोइन तक बाजार में बड़ी सहजता से मिल रहा है, आप वहां से गुजरेंगे तो नशे की दुर्गंध से परेशान हो जाएंगे। यहां तक कि घर विहीन लोगों को शेल्टर होम में ले जाया जाता है तो वहां भी उन्हें ड्रग्स उपलब्ध होता है। नशे की सामग्री का कोड नेम ग्रास, व्हीट और न जाने क्या-क्या है। वैसे यूरोप के कई शहरों में ड्रग्स के मेनू कार्ड होते हैं, जो चाहिए सब कुछ उपलब्ध है। वहां के हालात देख कर मुझे देवानंद की फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का गाना याद आ रहा था...दम मारो दम...! कनाडा और उन यूरोपीय देशों की इस दुर्दशा को लेकर मेरे मन में मंथन चल ही रहा था कि मैंने अपने अखबार के इंटरनेट संस्करण में खबर पढ़ी कि पंजाब और राजस्थान में ड्रग्स की बड़ी खेप पकड़ी गई है और ड्रग्स की तस्करी करने वाले इस अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का एक सरगना तनवीर सिंह पाकिस्तान में बैठा है तो दूसरा सरगना जोबन कालेर कनाडा में है।

ये दोनों तस्कर भारत में गुरसाहिब सिंह नाम के स्थानीय ड्रग्स तस्कर के माध्यम से भारत में ड्रग्स पहुंचा रहे थे। गुरसाहिब सिंह पंजाब की एक जेल में बंद है लेकिन मोबाइल के माध्यम से वह अपने भतीजे जशनप्रीत सिंह और साथी गगनदीप सिंह को निर्देश देता था और वे दोनों गिरोह को चला रहे थे। स्वाभाविक रूप से मेरे मन में यह सवाल पैदा हुआ और निश्चय ही आपके मन में यही सवाल उठा होगा कि गुरसाहिब सिंह के पास जेल में मोबाइल कैसे पहुंचा? निश्चित रूप से जेल के पुलिसकर्मी इसमें शामिल होंगे। बिना मिलीभगत के यह संभव ही नहीं है। ड्रग्स की तस्करी में इतना पैसा है कि किसी अधिकारी की झोली में सौ-पचास करोड़ डालने में तस्कर क्या हिचकेंगे?

नशे के कारोबार को लेकर मैंने अपने आलेखों में कई बार आगाह किया है कि यह भारत के खिलाफ एक तरह की अंतर्राष्ट्रीय साजिश है। ड्रग्स कारोबार के रिश्ते आतंकवाद से भी जुड़े हुए हैं, महान विचारक चाणक्य ने कहा था कि जो लोग नशा करते हैं, वो अपना भविष्य तो समाप्त करते ही हैं, समाज के लिए भी वे घातक साबित होते हैं। हमारे दुश्मन मुल्क की कोशिश है कि हमारे रचनात्मक युवा नशे के शिकार हो जाएं। यही कारण है कि हर तरफ से भारत में ड्रग्स भेजे जा रहे हैं, पिछले साल दिल्ली के महिपालपुर में 562 किलोग्राम कोकीन व 40 किलो हाइड्रोपोनिक मारिजुआना तथा दिल्ली के ही रमेश नगर से 208 किलो कोकीन बरामद की गई। उस मामले को लेकर थोड़ा हल्ला मचा क्योंकि उसमें एक राजनेता का नाम आ गया था।

इधर गुजरात के अंकलेश्वर में सात हजार करोड़ रुपए की ड्रग्स जब्त हुई थी, मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाके झाबुआ में भी 168 करोड़ की ड्रग्स मिली थी। थोड़ा पीछे लौटें तो 2021 में गुजरात के मुंद्रा पोर्ट में 21 हजार करोड़ रुपए मूल्य की 3 हजार किलो हेरोइन जब्त की गई थी, जब्ती की ऐसी लंबी सूची है लेकिन यह समंदर की एक बूंद जैसा है क्योंकि दुनिया में ड्रग्स माफिया समानांतर अर्थव्यवस्था चला रहे हैं और भारत में ड्रग्स का कारोबार लाखों-लाख करोड़ का है। पहले केवल फिल्म इंडस्ट्री और बड़े बाप की बिगड़ी औलादों की रेव पार्टी का ही जिक्र होता था लेकिन अब ड्रग्स का कारोबार हर जगह फैल चुका है। दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों के साथ ही महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के गांव, कस्बे भी नशे का शिकार हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि नशे के सौदागर सातवीं-आठवीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं। ये बच्चे ड्रग्स लेते भी हैं और पहुंचाने का काम भी करते हैं।

जब नशे के शिकार होते हैं तो स्वाभाविक रूप से इनसे विभिन्न तरह के अपराध भी करवा लिए जाते हैं। चूंकि वे वयस्क नहीं होते हैं इसलिए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती। गोवा में नशे के कारोबार के बारे में तो लोगों को पता ही है। पूर्वोत्तर के राज्यों को भी नशे ने खोखला कर दिया है। पंजाब की स्थिति को लेकर तो उड़ता पंजाब नाम की एक फिल्म भी बनी थी, अब जनसुराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर कह रहे हैं कि जल्दी ही उड़ता बिहार फिल्म भी बनानी पड़ेगी। अब सवाल है कि ड्रग्स भारत में आ कैसे रहा है? भारत के कुछ पहाड़ी इलाकों में चोरी-छुपे गांजे की खेती होती होगी लेकिन अफीम, कोकीन और अन्य सिंथेटिक ड्रग्स तो बाहर से ही आ रहे हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सरहदी इलाकों में अफीम की खेती और उसे प्रोसेस करने का काम होता है। पाकिस्तानी तस्कर और आतंकी संगठन ड्रग्स को राजस्थान, पंजाब और गुजरात के इलाके से भारत में भेजते हैं। राजस्थान और पंजाब सीमा पर ड्रोन से लगातार ड्रग्स भेजे जा रहे हैं।

हमारे सुरक्षाकर्मी ड्रोन पकड़ भी रहे हैं और मार भी रहे हैं। इन राज्यों में ड्रग्स भेजने में पाकिस्तानी हैंडलर्स प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कनाडा में बैठे हैंडलर्स ने पंजाब में पहले से नेटवर्क खड़ा कर रखा है जो मददगार होते हैं, ड्रग्स का एक प्रमुख मार्ग नेपाल सीमा भी है जिस पर चीनी हैंडलर्स का होल्ड है और म्यांमार में सक्रिय उग्रवादी संगठन भी ड्रग्स तस्करी में शामिल हैं। तस्करों को इस बात का फायदा मिलता है कि बॉर्डर के दोनों ओर एक जैसी शक्ल वाले लोग रहते हैं। ऐसे में तस्करों को पहचानने का तरीका यही है कि हमारे पास बेहतरीन खुफिया तंत्र हो, अत्यंत सजग सुरक्षाकर्मी हों और नशे के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति हो अन्यथा हम सफल नहीं हो सकते। एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि बॉर्डर से ड्रग्स तस्करी रोकने का पुख्ता मैकेनिज्म अभी तक हम विकसित नहीं कर पाए हैं, सिस्टम में इतने छेद हैं कि कितनी जगह पैच चिपकाएंगे? इसलिए शीर्ष पर बैठे विभाग प्रमुखों के खिलाफ भी जब कार्रवाई होगी तभी सिस्टम सुधरेगा। चलिए, मैंने तो ये सारी बातें लिख दीं लेकिन क्या हमारे प्रबुद्ध सांसद इस खतरनाक साजिश को लेकर संसद में चर्चा करेंगे?

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