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भारतीय छात्राें का कनाडा के प्रति कम होता रुझान

पिछले लम्बे समय से भारतीय छात्रों खासकर पंजाब में रहने वाले युवाओं का रुझान…

10:52 AM Jan 15, 2025 IST | Sudeep Singh

पिछले लम्बे समय से भारतीय छात्रों खासकर पंजाब में रहने वाले युवाओं का रुझान…

पिछले लम्बे समय से भारतीय छात्रों खासकर पंजाब में रहने वाले युवाओं का रुझान कनाडा की ओर बढ़ता चला जा रहा था, मगर अब देखने में आ रहा है कि यह रुझान धीरे-धीरे कम होने लगा है। इसके पीछे कई कारण देखे जा सकते हैं मगर उनमें से सबसे अधिक प्रभाव कनाडा में सुरक्षा को लेकर पड़ा है। आए दिन जिस तरह से खालिस्तानी समर्थकों के द्वारा गतिविधियों को अन्जाम दिया जा रहा है, भारत के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया जाता है, बावजूद इसके सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई उन लोगों के खिलाफ नहीं की जाती, जिसके चलते उन लोगों के हौंसले बुलंद होते चले जा रहे हैं। उससे आम युवा वर्ग स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगा है और ऐसे में कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को वहां भेजने से डरते हैं। इसके साथ ही अब कनाडा में रोजगार के साधन भी उतने दिखाई नहीं पड़ते, वहां जाकर भारतीय युवाओं को कई-कई महीनों तक बिना काम के रहना पड़ता है हालांकि अभी भी बहुत बड़ी गिनती कनाडा में भारतीय मूल के लोगों खासकर पंजाबियों की है पर अगर यही हाल रहा और सरकार के द्वारा कट्टरपंथियों पर लगाम नहीं लगाई तो वह दिन दूर नहीं जब भारतीय छात्राें का पूरी तरह से कनाडा से मोह भंग हो जाए। पिछले कुछ समय में नक्सली हमलों का शिकार भी पंजाबी युवक अधिक हुए हैं और कनाडा सरकार के द्वारा भारतीय छात्रों के प्रति नीतियों में किया गया बदलाव भी इसका कारण हो सकते हैं, क्योंकि पिछले कुछ समय से सरकार द्वारा छात्रों को दिए जाने वाले परमिट पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी गई हैं। सिख बुद्धिजीवी प्रकाश सिंह गिल का मानना है कि यह भारत के लिए और खासकर पंजाब के लिए एक अच्छा संकेत है कि पंजाब का युवा वर्ग विदेशों में जाकर भविष्य खोजने के बजाए अपने देश में रहकर रोजगार की तलाश करें। इससे देश भी तरक्की की राह पर अग्रसर होगा।

हरियाणा के गुरुद्वारों की सेवा संभाल किसे करनी चाहिए? : पंजाब और दिल्ली की तर्ज पर हरियाणा के सिख भी यही चाहते हैं कि हरियाणा में स्थित गुरुद्वारों की सेवा संभाल का जिम्मा हरियाणा के सिख संभालें और जो भी कमेटी बने उसमें केवल हरियाणा के धार्मिक प्रवृत्ति वाली श​िख्सयतों को जिम्मेवारी मिले जिससे धर्म का प्रचार-प्रसार का दायरा बढ़े और जिस प्रकार से सिखों का धर्म परिवर्तन बढ़ता चला जा रहा है, सिख युवा वर्ग सिखी से दूर होता चला जा रहा है। उसे किसी तरह से रोका जा सके। 19 जनवरी को हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव होने जा रहे हैं और इसमें दिलचस्प बात यह है कि इस बार चुनाव निदेशक के द्वारा दी गई सख्त हिदायत के चलते 104 साल पुराने शिरोमणि अकाली दल को नए नाम से पार्टी बनाकर चुनाव लड़ना पड़ रहा है, क्यांेकि मौजूदा समय में अकाली दल के नुमाईंदे धर्म के बजाए राजनीति को तवज्जो देते हैं जिसके चलते उनकी पार्टी आज राजनीतिक पार्टियों की श्रेणी में गिनी जाती है अभी तक हरियाणा के गुरुद्वारों का प्रबन्ध भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी करती आ रही थी, मगर हरियाणा के सिखों की मांग पर हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी का जब गठन हुआ तो उस समय शिरोम​िण अकाली दल बादल के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया और मामला कोर्ट में चला गया और कोर्ट के फैसले के बाद करीब 10 साल बाद हरियाणा में गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव होने जा रहे हैं जिसमें दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा की अलग गुरुद्वारा कमेटी होने का जो शिरोमणि अकाली दल विरोध कर रहा था आज बादल दल के द्वारा नए नाम से पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा जा रहा है वहीं हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी के सरकार की ओर से पिछली कमेटी में प्रधान और धर्म प्रचार चेयरमैन की सेवा निभा चुके संत बलजीत सिंह दादूवाल ने शिरोम​िण अकाली दल आजाद पार्टी का गठन कर उम्मीदवार उतारे हैं तो पूर्व अध्यक्ष झींडा ने भी अपनी अलग पार्टी बनाई है। श्याम सिंह अटारी का सिख इतिहास में खासा स्थान है उनकी वंशज गगनदीप कौर भी गुरुग्राम से चुनाव लड़ रही है जिनका पूरा परिवार लम्बे समय से गुरुग्राम के गुरुद्वारांे की सेवा संभाल रहा है। गगनदीप कौर स्वयं पूरी तरह से सक्रिय हैं जिसे देखकर ही उन्हें उम्मीदवार बनाया गया है। इसी तरह से और भी कई ऐसे चेहरे हैं जो कि लम्बे समय से धार्मिक सेवाएं निभाते आ रहे हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के सलाहकार परमजीत सिंह चंडोक का कहना है कि यह एक अच्छा संकेत है और इसी प्रकार शिरोम​िण कमेटी, दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में भी इसे लागू करना चाहिए ताकि राजनीतिक पार्टियों का धर्म के मामले में हस्तक्षेप बंद किया जा सके। पूर्व सांसद तरलोचन सिंह ने भी इस बात की प्रशंसा की है कि विपक्षी दल भले ही भाजपा पर कोई भी इल्जाम लगाए पर असलीयत यह है कि हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव में अभी तक किसी भी भाजपा नेता ने कोई दखलअंदाजी नहीं की है। प्रभजोत सिंह चंडोक का मानना है कि महिला जिस प्रकार घर को जोड़कर रखती है उसी प्रकार अगर उन्हें कमेटी में सेवा का मौका मिलेगा तो निश्चित तौर पर वहां भी वह इस दायित्व को निभाएंगी साथ ही महिला सदस्यों के रहते कमेटी के अन्य सदस्यों को भी कुछ हद तक स्वयं की बोलवाणी मंे संयम से काम लेना पड़ता है जिससे एक-दूसरे सदस्यांे से मनमुटाव की गुंजाईश में भी कमी आती है।

गुरलाड सिंह काहलो के राजनीति में वापसी के संकेत : दिल्ली की सिख राजनीति में गुरलाड सिंह काहलो एक ऐसा नाम है जिन्होंने बहुत कम समय में अपनी अलग पहचान बना ली थी। उनके निकटवर्ती एक अकाली नेता ने हालांकि पूरी कोशिश की कि वह किसी तरह से भी सिख राजनीति में अपनी पहचान ना बना पाएं जिसके चलते उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार के सामने मैदान में यह सोचकर उतारा गया था कि वह उससे मात खा जायेंगे, मगर मात्र 10 दिनों के प्रचार में उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से विजयी हासिल की मगर फिर भी उन्हें कोई अहम पद कमेटी में नही ंदिया गया जिसके बाद उन्होंने कनाडा का रुख कर लिया और अब लम्बे अंतराल के बाद पुनः भारत वापिस पर कई सिख नेताओं की नींद उड़ा दी है। बीते दिनांे उन्होंने 1984 सिख कत्लेआम पीड़ितों की आवाज बनकर पीड़ित परिवारों के साथ मिलकर प्रदर्शन भी किया गया और कोर्ट में पटीशनर बनकर पीड़ितों के केसों की पैरवी भी कर रहे हैं ताकि उन्हें इन्साफ दिलाया जा सके। इसी के चलतेे उन्हांेने एक दिग्गज नेता से कई सवाल भी पूछे कि 40 साल बीतने के पश्चात् भी सिख पीड़ितों का दर्द राजनेताओं को दिखाई क्यों नहीं देता। इस मुद्दे को उठाकर गुरलाड सिंह काहलो ने सिख नेताओं को भी इस बात का अहसास करवाने की कोशिश की है कि वह भले ही कनाडा मंे जा बसे हैं पर दिल्ली की राजनीति भी उन्होंने छोड़ी नहीं है और हो सकता है कि आने वाले दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों में भी वह कोई अहम भूमिका अदा करें।

पंजाबियों का त्यौहार ‘‘लोहड़ी’’: लोहड़ी पंजाबियांे का त्यौहार है और उत्तर भारत में इसे विशेषकर मनाया जाता है। इसका महत्व इसलिए भी अधिक रहता है क्यांेकि अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से यह पहला पर्व होता है। खासकर जिन घरों मंे बच्चों की शादी हो या फिर किसी नन्हें बच्चे का जन्म हो वहां इसे अवश्य मनाया जाता है। लकड़ियों में आग लगाकर उसमें मूंगफली, रेवड़ी, मक्की दाने की आहूती दी जाती है और आग के चारों ओर चक्कर लगाते हुए रस्म अदा की जाती है। हालांकि कुछ समय पूर्व तक केवल लड़के के पैदा होने पर भी इस पर्व को मनाया जाता था अब लोग लड़कियों की लोहड़ी भी मनाने लगे हैं। नोएडा पंजाबी सोसायटी के द्वारा भी लोहड़ी पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाते हुए 500 परिवारों को एकत्र किया और लड़कियों की लोहड़ी को खास तौर पर मनाया गया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा और पूर्व निगम पार्षद मनदीप कौर बख्शी ने कहा वैसे देखा जाए तो लड़के और लड़की में किसी तरह का मतभेद होना भी नहीं चाहिए। इस मौके पर लोहड़ी पर्व से जुड़ा इतिहास भी बताया गया जो कि शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। असल मंे बादशाह अकबर के समय दुल्ला भाटी पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था! उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बलपूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था। जिसे दुल्ला भाटी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लड़कों से करवाई और उनकी शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई।

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