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प्रवासी भारतीयों पर गहराता

कोरोना काल में हर देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए कदम उठा रहे हैं। अमेरिका तो पहले से ही संरक्षणवादी नीतियां अपना रहा है। अमेरिका ने पहले अपने वीजा नियमों में बदलाव किया था

12:07 AM Jul 09, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना काल में हर देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए कदम उठा रहे हैं। अमेरिका तो पहले से ही संरक्षणवादी नीतियां अपना रहा है। अमेरिका ने पहले अपने वीजा नियमों में बदलाव किया था

प्रवासी भारतीयों पर गहराता
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कोरोना काल में हर देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए कदम उठा रहे हैं। अमेरिका तो पहले से ही संरक्षणवादी नीतियां अपना रहा है। अमेरिका ने पहले अपने वीजा नियमों में बदलाव किया था, जिसके चलते वहां काम कर रहे प्रवासी भारतीयों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब अमेरिका में शिक्षा प्रदान कर रहे भारतीय छात्रों के लिए भी मुसीबतें खड़ी कर दी गई हैं। अमेरिका में सभी अन्तर्राष्ट्रीय छात्रों को वापिस भेजने की योजना पर विचार किया जा रहा है। अमेरिका का मानना है कि जिन अन्तर्राष्ट्रीय छात्रोें की आनलाइन क्लासेज चल रही हैं तो ऐसे में उनके पास अमेरिका में रुके रहने की कोई ठोस वजह नहीं। अमेरिका प्रशासन कोरोना संक्रमण के दृष्टिगत अमेरिका की कई बड़ी यूनिवर्सिटीज ने पहले ही आनलाइन पढ़ाई शुरू कर दी है। हार्वर्ड ने भी अपने सभी कोर्स आनलाइन कर दिए हैं और कैम्पस में रह रहे छात्रों को भी अब क्लास में जाने की जरूरत नहीं। ऐसा होते ही हार्वर्ड में पढ़ रहे विदेशी छात्रों को वापिस भेजने का रास्ता खुल गया है। इस फैसले से हजारों भारतीय छात्र सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। अमेरिका में बड़ी संख्या में विदेशी छात्र यूनिवर्सिटीज में ट्रेनिंग प्रोग्राम्स में नॉन अकेडमिक-वोकेशनल प्रोग्राम की पढ़ाई कर रहे हैं। छात्रों को जबरदस्ती वापस भेजने का फैसला बेहद परेशान करने वाला है।
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अभिभावकों ने  अपने बच्चों को अमेरिका में पढ़ाने के लिए भारी-भरकम धन खर्च किया है और फिर वहां रहने, खाने-पीने का खर्च भी कोई कम नहीं होता। कई छात्र ऐसे देशों से हैं जहां उनके कोर्सेज के मुताबिक पढ़ाई का माहौल नहीं है और आनलाइन शिक्षा से पर्याप्त मदद नहीं मिलती। इमीग्रेशन विभाग ने भी कह दिया है कि अब छात्रों को अमेरिका में रहने की जरूरत नहीं क्योंकि वह अब हर सेमेस्टर का वीजा उपलब्ध नहीं कराएगा। कोरोना महामारी के चलते अमेरिका में सबसे अधिक मौतें हो रही हैं। मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। बेरोजगारी का महासंकट ट्रम्प सरकार के सामने आ खड़ा हुआ है। कोरोना प्रभावित देशों में तो आर्थिक संकट गहरा चुका है।
अब खाड़ी देश कुवैत से विदेशी कामगारों को बाहर निकालने के लिए कानून बनाने की तैयारी चल रही है। कुवैत में करीब 70 फीसदी विदेशी नागरिक रहते हैं, जो जहां के सरकारी और निजी उपक्रमों में काम करते हैं। नए कानून में विदेशी नागरिकों की संख्या घटा कर तीस फीसद तक करने का प्रस्ताव है। कानून के मुताबिक कुवैत में भारतीयों की संख्या कुल आबादी के 15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि यह विधेयक कानून का रूप लेता है तो 8 लाख भारतीयों को कुवैत से वापिस आना पड़ सकता है। भारतीय समुदाय कुवैत में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है, जिसकी कुल आबादी 14.5 लाख है। कुवैत की कुल आबादी 43 लाख है। कोरोना महामारी के दौरान विदेशियों की संख्या घटाने को लेकर वहां के सांसद और गैर सरकारी अफसरों की बयानबाजी जोर पकड़ती जा रही है। 19वीं सदी के अंत तक 1961 तक ब्रिटेन के संरक्षण में रहे कुवैत में भारतीयों का जाना लम्बे समय से शुरू हो गया था। इस समय व्यापार से लेकर लगभग हर क्षेत्र में भारतीयों की मौजूदगी है। कुवैती घरों में ड्राइवर, बावर्ची से लेकर आया तक का काम भारतीय कर रहे हैं। इनकी जगह भर पाना कुवैत के लिए आसान नहीं होगा। भारतीय जिस देश में भी जाते हैं, वह वहां की संस्कृति और संविधान को आत्मसात कर लेते हैं। अमेरिका ही नहीं खाड़ी देशों में भारतीयों ने वहां के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुवैत में इंजीनियर, डाक्टर्स और नर्सें भी इलैक्ट्रीशियन, खेतीबाड़ी करने वाले भी अधिकांश भारतीय हैं। नए प्रवासी कानून जैसे नियमों की सुगबुगाहट 2008 की आर्थिक मंदी के बाद बार-बार होती रही है। यह 2016 में और तेज हुई जब सऊदी अरब ने निताकत कानून लागू किया था। निताकत कानून के मुताबिक सऊदी अरब के सरकारी विभागों और कम्पनियों में स्थानीय लोगों को नौकरी की दर को ऊपर ले जाना था। आर्थिक मंदी के दौर में भारतीय इंजीनियरों  की नौकरियां चली गई थीं तब तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज ने इंजीनियरों का मामला कुवैत सरकार के साथ उठाया था।
कुवैत में रह रहे विदेशियों में 13 लाख अनपढ़ या कम पढ़ना-लिखना जानते हैं। अगर इनकी छंटनी होती है तो भारतीयों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जाएगा। कोरोना काल में हर देश अपना खर्च कम करने की कोशिशें कर रहा है। नए रोजगार सृजन की कोई सम्भावनाएं फिलहाल नजर नहीं आ रही हैं। ऐसे में दूसरे देश में देखा-देखी विदेशियों को वापिस भेजने का फैसला कर सकते हैं। अगर लाखों भारतीय स्वदेश लौटते हैं तो यहां भी उन्हें रोजगार की तलाश करना आसान नहीं होगा। कोरोना ने मानव के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। अमेरिका और कुवैत मामले में केन्द्र सरकार को वहां की सरकारों से बातचीत करनी चाहिए और समस्या का समाधान निकालना चाहिए।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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