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नशे का ट्रांजिट पॉइंट बनी दिल्ली

04:30 AM Nov 28, 2025 IST | Aakash Chopra
नशे का ट्रांजिट पॉइंट बनी दिल्ली
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आकाश चोपड़ा

किसी समाज और देश को भीतर से खोखला करना हो तो उसकी युवाशक्ति को नशे के गर्त में धकेलना काफी है। हाल के वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों में नशीले पदार्थों की बरामदगी, जब्ती और मादक पदार्थों की आपूर्ति के संजाल के खुलासों पर नजर दौड़ाई जाए, तो कह सकते हैं कि नशे की गिरफ्त में जाती हमारी युवा पीढ़ी ऐसे ही संकट से दो-चार है।
मामला सिर्फ यह नहीं है कि चौकसी बरते जाने के कारण देश में मादक पदार्थों की भारी-भरकम खेपें पकड़ी जा रही हैं, बल्कि गंभीर पहलू यह भी है कि आखिर इस नेटवर्क में कौन लोग शामिल हैं, ये मादक पदार्थ कहां से आ रहे और कहां जा रहे हैं और इतनी भारी खपत हमारे देश के किन इलाकों व समाज के किन वर्गों के बीच हो रही है।इस समस्या का एक सिरा इससे भी जुड़ता है कि दिखावे की परंपरा, अमीरों जैसी रहन-सहन वाली शैली, परिवारों की टूटन, बेरोजगारी या अकेलेपन आदि ने ही तो कहीं हमारी युवा पीढ़ी को जाने-अनजाने नशे की अंधेरी गलियों में नहीं धकेल दिया है! देश के विभिन्न हिस्सों में मादक पदार्थों की धरपकड़ में इधर काफी तेजी आई है।दिल्ली के इतिहास में सबसे बड़ी नशे की खेप 1 अक्टूबर को महिपालपुर से पकड़ी गई। एक गोदाम से 562 किलोग्राम कोकीन और 40 किलोग्राम थाईलैंड के फुकेट से मंगाया गांजा जब्त किया गया। इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत 5640 करोड़ रुपये बताई गई। इससे पहले 360 किग्रा कोकीन पकड़ने का रिकॉर्ड था। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और स्पेशल सेल ने 20 नवंबर को साउथ दिल्ली के छतरपुर स्थित एक फ्लैट से 328 किग्रा मेथामफेटामाइन जब्त किया, जिसकी इंटरनैशनल मार्केट में 262 करोड़ रुपये की कीमत आंकी गई है। कई देशों से कुरियर समेत अन्य माध्यमों से ड्रग्स को दिल्ली भेजा जाता है, जिसके बाद इसे अलग-अलग राज्यों में सप्लाई किया जाता है। यह भी बात निकल कर आ रही है कि दिल्ली नशे के ट्रांजिट पाइंट के रूप में बदलती जा रही है। दिल्ली में ड्रग रैकेट के तार फिल्म जगत से जुड़े होते हुए भी नजर आ रहे हैं, जिनमें पॉपुलर इन्फ्लुएंसर ओरी और कई और फिल्मी हस्तियों के नाम जोड़े जा रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने 'नशा मुक्त भारत' अभियान के तहत इस साल 31 अक्टूबर तक नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सबस्टेंसएक्ट के तहत 1915 केस दर्ज किए। इनमें 2498 नशा तस्करों और सप्लायरों को अरेस्ट किया। पारंपरिक नशे में चरस, अफीम, गांजा, स्मैक-हेरोइन और कोकीन की रिकॉर्ड जब्ती की गई। थाईलैंड, लाओस और म्यांमार की सीमाएं रुआक और मेकांग नदियों के संगम पर मिलती हैं और स्वर्ण त्रिभुज बनाती हैं।
गोल्डन क्रीसेंट में अफ़गानिस्तान के साथ, यह 1950 के दशक से दुनिया के सबसे बड़े अफ़ीम उत्पादक क्षेत्रों में से एक रहा है। 21वीं सदी की शुरुआत तक, दुनिया की ज़्यादातर हेरोइन गोल्डन ट्राइंगल से आती थी, जब अफ़गानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया। गोल्डन ट्राइंगल क्षेत्र से निकटता के कारण, भारत की जनता इस क्षेत्र से होकर गुजरने वाली नशीली दवाओं की भारी मात्रा से बुरी तरह प्रभावित है। यह समस्या छिद्रपूर्ण और अपर्याप्त सुरक्षा वाली सीमा के कारण और भी जटिल हो जाती है, जो नशीली दवाओं के तस्करों के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है।
हेरोइन, जो सत्तर के दशक के मध्य में भारत के पूर्वोत्तर में प्रचलित हुई थी, 1984 के बाद इस क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध हो गई और 1990 तक इस क्षेत्र में हेरोइन की खपत में भारी वृद्धि देखी गई। इस तथ्य का प्रमाण नशेड़ियों की संख्या में भारी वृद्धि से मिलता है, जो 1990 में एक प्रतिशत से भी कम से बढ़कर 1991 में 50 प्रतिशत से अधिक और 1997 में 80.01 प्रतिशत हो गई।
हालांकि, पूर्वोत्तर में तस्करी की जाने वाली हेरोइन बड़े पैमाने पर व्यावसायिक बिक्री के लिए नहीं, बल्कि मुख्य रूप से स्थानीय खपत के लिए होती है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि दक्षिण-पूर्व एशियाई मूल की हेरोइन देश में जब्त की गई कुल हेरोइन का केवल एक से दो प्रतिशत ही है। साथ ही, यह तर्क दिया जा सकता है कि नशीले पदार्थों की कम ज़ब्ती का एक कारण अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर कम निगरानी भी हो सकती है। गुवाहाटी और कोलकाता व दिल्ली जैसे अन्य शहरों में अधिकारियों द्वारा हेरोइन की खेपों को लगातार ज़ब्त करना इस बात का संकेत है कि म्यांमार से हेरोइन की तस्करी में वृद्धि हो रही है। नि:संदेह मादक पदार्थों की खेप बरामद किया जाना यह बताता है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने अपनी चौकसी बढ़ाई है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी सक्रियता के चलते नशे का कारोबार करने वाले हतोत्साहित हो रहे हैं। उनकी सक्रियता पर रोक लगानी होगी और यह तब संभव होगा, जब जिला स्तर पर पुलिस भी नशे के कारोबार के खिलाफ सख्ती का परिचय देगी। वास्तव में पुलिस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के बीच तालमेल बढ़ाने की आवश्यकता है। यह अच्छा है कि केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर कायम तालमेल को जिला स्तर पर भी स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। तस्कर छोटे शहरों के स्कूली बच्चों को भी अपने निशाने पर ले रहे हैं। नशे का बढ़ता चलन केवल युवा पीढ़ी को खोखला ही नहीं कर रहा है, बल्कि वह देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि नशे के तस्कर देश विरोधी तत्वों और आतंकियों के साथ मिल गए हैं। स्पष्ट है कि नशे के कारोबारी देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन गए हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उन क्षेत्रों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो हाल तक नशे के कारोबार से अछूते थे। अभी तक आम तौर पर देश के सीमावर्ती इलाके ही नशे के कारोबार के गढ़ के रूप में जाने जाते थे, लेकिन अब देश के अंदरूनी इलाकों में भी मादक पदार्थ पहुंच रहे हैं। नशे के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए जहां यह आवश्यक है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अपनी चौकसी बढ़ाए, वहीं यह भी जरूरी है कि समाज में भी मादक पदार्थों के खिलाफ जागरूकता पैदा हो। किशोरों और युवाओं के बीच यह संदेश पहुंचाना ही होगा कि मादक पदार्थों का सेवन केवल तबाही की ओर ले जाता है। एक चैलेंज हमारे सामने सबसे बड़ा है डार्क वेब का, डार्क वेब जो अलग-अलग ऐप, सोशल मीडिया साइट्स और सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म के जरिए तस्करी का काम हो रहा है,हाल ही में बहुत बड़े नेक्सस को पकड़ा है जो डार्क वेब के जरिए काम कर रहा था।

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