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Delhi HC : दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अनोखे बाल हिरासत मामले में अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे एक नाबालिग बच्चे को अदालत के समक्ष पेश करें। यह मामला तब सामने आया जब एक व्यक्ति ने दावा किया कि उसकी भाभी ने उसके नाबालिग बेटे को उसकी देखभाल से अवैध रूप से ले लिया है। याचिकाकर्ता, जो कि विवाहित है और अपनी पत्नी के साथ कोलकाता में रह रहा है, ने बताया कि उसके दो बच्चे हैं और उसका छोटा बेटा पिछले 12 वर्षों से उसके साथ रह रहा था।
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बता दें कि, याचिकाकर्ता का कहना है कि वह अपने बेटे की कस्टडी चाहता है, जिसे कथित रूप से उसकी भाभी ने बिहार में उसकी देखभाल से ले लिया। याचिकाकर्ता का कहना है कि बच्चे ने खुद यह व्यक्त किया है कि वह अपने पिता के साथ रहना चाहता है। अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बच्चे को शुक्रवार को उसके समक्ष पेश किया जाए। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने यह निर्देश दिया, साथ ही भाभी को भी अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा गया। याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता उमेश चंद्र शर्मा और दिनेश कुमार के माध्यम से यह याचिका दायर की है, जिसमें उसने अपने नाबालिग बेटे की सुरक्षा और कस्टडी की मांग की है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि नाबालिग बच्चे को बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के आदेश के अनुसार अलीपुर स्थित बाल गृह में रखा गया है। याचिकाकर्ता ने यह तर्क भी पेश किया कि बच्चे ने सीडब्ल्यूसी, कोलकाता के समक्ष यह बयान दिया था कि उसे जबरन दिल्ली लाया गया है और वह अपनी भाभी के साथ नहीं रहना चाहता। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में यह जानकारी प्रस्तुत की कि उन्होंने पहले से ही पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें नाबालिग के अवैध हिरासत का जिक्र था। स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे ने कहा कि वह अपने पिता के पास लौटना चाहता है और उसके साथ रहना चाहता है।
अदालत ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित होना होगा, ताकि इस संवेदनशील मामले में आगे की कार्रवाई की जा सके। अदालत ने याचिकाकर्ता को यह भी अनुमति दी कि वह बाल गृह में अपने बेटे से मिल सके, ताकि उसकी भलाई सुनिश्चित की जा सके। हालांकि, न्यायालय का यह निर्देश निश्चित रूप से बच्चे की सुरक्षा और उसकी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण कदम है।
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