शहीदी शताब्दी पर दिल्ली इतिहास रचने को तैयार
इतिहास इस बात की गवाही भरता है कि आज से 350 वर्ष पूर्व सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी ने अगर अपना बलिदान न दिया होता तो इस देश का मंजर कुछ और ही होना था। उस समय का बादशाह औरंगजेब इस देश में केवल एक ही धर्म रखने की हिमायत करते हुए सभी को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कह रहा था, जो इससे इन्कार करता उसका कत्ल कर दिया जाता। न जाने कितने हिन्दुओं को उसने मौत के घाट उतार दिया होगा, क्योंकि औरंगजेब रात्रि का भोजन तभी लेता जब उसके सैनिक उसके सामने सवा मण जनेऊ रख देते। जनेऊ भाव हिन्दू धर्म का धार्मिक चिन्ह धागा जिसका वजन मात्र कुछ ग्राम ही रहता है। पण्डित कृपा राम की अगुवाई में कश्मीरी पण्डितों ने गुरु जी से गुहार लगाई और उनकी फरियाद पर गुरु जी ने स्वयं आकर अपनी शहादत दी। गुरु जी से पहले उनके सेवक भाई मतिदास, भाई सतिदास और भाई दयाला जी को भी क्रूरता के साथ शहीद किया गया और उनकी शहादत के बाद औरंगजेब के अत्याचार से देशवासियों को निजात मिली और आज हर देशवासी धार्मिक आजादी के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है। आज से पूर्व जितनी भी शताब्दियां आई उसमें पहले तो मुगलों और फिर अंग्रेजों का राज रहा जिसके चलते शताब्दी समारोह का होना असंभव ही था। 1975 में जब शहादत की 300वीं वर्षगांव मनाई गई उस समय देश में आपातकाल लगा हुआ था, बावजूद इसके देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने पंजाब से आए नगर कीर्तन का दिल्ली के रामलीला मैदान में भव्य स्वागत तो किया मगर उस अन्दाज में शहीदी पर्व नहीं मनाए गए जिससे समूचे देशवासियों को गुरु जी की शहादत की जानकारी मिल पाती। आज तक स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में भी क्रूरता करने वाले औरंगजेब से लेकर अन्य मुगल शासकों के इतिहास को पढ़ाया जाता रहा मगर गुरु तेग बहादुर जिन्होंने अपना बलिदान देकर धर्म और मानवता की रक्षा की उनके इतिहास का कहीं जिक्र तक नहीं किया। सिखों ने 19 बार दिल्ली को फतेह किया और 1783 में दिल्ली जीतने के पश्चात लाल किले पर केसरिया निशान साहिब भी झुलाया गया शायद उसी की बदौलत ही आज तिरंगा झूल रहा है और सौभाग्यवश आज केन्द्र और दिल्ली में ऐसी सरकारें हैं जो गुरु तेग बहादुर जी की शहादत को नमन करती हैं और मानती हैं कि उनकी बदौलत ही हिन्दू धर्म कायम है, मन्दिरों में पूजा-अर्चना होती है। तिलक और जनेऊ के रक्षक गुरु जी को इसीलिए ‘‘हिन्द की चादर’’ के खिताब से जाना जाता है।
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा गुरु जी के शहीदी शताब्दी पर्व को सरकारी स्तर पर मनाने के ऐलान के बाद से सभी राज्य सरकारों के द्वारा भी बढ़-चढ़कर शहीदी शताब्दी राज्यों में सिख संगतों और कमेटियों के सहयोग से मनाई जा रही है। बिहार की नितिश सरकार ने तख्त पटना साहिब कमेटी के सहयोग से शहीदी जागृति यात्रा निकाली जो कि 42 दिन तक देश के अलग-अलग राज्यों में से होकर श्री आनंदपुर साहिब में समाप्ति हुई, पटना की धरती पर सर्व धर्म सम्मलेन करवाया गया, जिसमें देशभर से धार्मिक शख्सीयतों ने गुरु जी के इतिहास की गाथा का वर्णनन अपने अन्दाज में किया। हरियाणा और पंजाब की सरकारों के द्वारा भी अनेक कार्यक्रम किए जा रहे हैं, वहीं दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार भी इन पलों को एेतिहासिक बनाने के लिए पिछले कई दिनों से तैयारियां कर रही है। स्वयं मुख्यमंत्री पूरी दिलचस्पी लेकर मंत्री मनजिन्दर सिंह सिरसा के साथ तैयारियों पर नजर बनाए हुए हैं। सरकार के द्वारा लाल किले पर अस्थाई आडीटोरियम बनाया जा रहा है जिसमें समय-समय पर कई तरह के धार्मिक कार्यक्रम, गतका मुकाबले आदि होंगे। 19 तारीख से लाईट एंड साऊड के शौ करवाए जायेंगे। इसी प्रकार एक आडियो वीडीयो म्यूजियम बनाया गया है जिसमें गुरु जी की शहादत की गाथा को चित्रों के रूप में दर्शाया जाएगा। 22 तारीख की शाम को गुरुद्वारा शीश गंज साहिब से लाल किले तक पूरी सड़क की धुलाई की जाएगी। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा 23 से 25 तारीख तक लाल किला मैदान में धार्मिक समागम करवाए जा रहे हैं जिसमें देश विदेश से लाखों श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर सभी राजनीतिक दलों के नुमाईदें कार्यक्रमों का हिस्सा बन सकते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो दिल्ली इतिहास रचने जा रही है जिसे सदियों तक याद रखा जाएगा।
गुरु तेग बहादुर जी की स्थाई यादगार : सिख संगतों द्वारा दिल्ली और केन्द्र की सरकार से मांग की जा रही है कि गुरु तेग बहादुर जी और उनके साथ शहीद हुए सिखों की एक स्थाई यादगार दिल्ली के अन्दर बनाई जानी चाहिए जिससे देश ही नहीं विदेशों से आने वाले सैनानी भी गुरु साहिब की शहादत की जानकारी प्राप्त कर सकें। शीला दीक्षित सरकार के द्वारा हालांकि एक मैमोरियल बीते समय में दिल्ली के सिन्धु बार्डर पर बनाया गया था मगर उसका कोई लाभ तो क्या ही मिलना था वह तो आज की तारीख में युवा प्रमियों के मिलन का स्थल बनकर रह गया है। सिख बु़िद्धजीवियों का मानना है कि इसके लिय सही स्थान नहीं चुना गया अगर इसे सैन्टर दिल्ली में कहीं बनाया जाता तो शायद आज यह वाक्य ही एक यादगार के रुप में स्थापित होता मगर उस समय सरकार ने सिखों को खुश करने के लिए इसका निर्माण तो करवा दिया मगर ऐसा स्थान जहां कोई जाकर नहीं देखता यहां तक कि वहां से गुजरने वालों को भी पता ही नही ंचल पाता कि यहां कोई मैमोरियल भी है। शुरुआत में स्कूलों के बच्चों को यहां लेजाया जाता, लाईट एंड साउंड शौ भी होते मगर धीरे-धीरे सब बंद हो गए। रेखा गुप्ता सरकार ने आते ही ही मैमोरियल के कायाकलप की सोच के साथ मनजिन्दर सिंह सिरसा और कपिल मिश्रा का दौरा भी करवाया, पर शायद इसका कोई लाभ नहीं होने वाला। सरकार को चाहिए कि दिल्ली के सैन्टर में कोई स्थान देखकर एक स्थाई यादगार गुरु तेग बहादुर जी की बनाई जानी चाहिए।