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बाउंसर तैनात करना मानसिक उत्पीड़न : दिल्ली हाईकोर्ट

मानसिक उत्पीड़न के मामले में कोर्ट का बाउंसर पर सख्त रुख

07:31 AM Jun 05, 2025 IST | Aishwarya Raj

मानसिक उत्पीड़न के मामले में कोर्ट का बाउंसर पर सख्त रुख

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्कूलों द्वारा फीस विवाद में बाउंसर तैनात करने को मानसिक उत्पीड़न करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण और सामाजिक कल्याण होना चाहिए, न कि केवल व्यावसायिक लाभ। DPS द्वारका द्वारा छात्रों को सस्पेंड करने का फैसला वापस लिया गया है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने फीस विवाद को लेकर स्कूलों द्वारा छात्रों और अभिभावकों पर दबाव बनाने के लिए बाउंसर तैनात करने की घटना को मानसिक उत्पीड़न और बच्चों की गरिमा के खिलाफ बताया है। कोर्ट ने इस रवैये की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि शिक्षा संस्थानों का उद्देश्य केवल व्यावसायिक लाभ नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण और सामाजिक कल्याण है। दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS), द्वारका द्वारा 31 छात्रों को फीस न भरने के कारण सस्पेंड करने का फैसला वापस लिए जाने की जानकारी कोर्ट को दी गई। हालांकि, जस्टिस सचिन दत्ता ने दो टूक कहा कि स्कूल फीस वसूल सकते हैं, लेकिन उन्हें व्यवसायिक संस्थान की तरह नहीं चलाया जा सकता।

फीस के नाम पर भय और बहिष्कार का माहौल अस्वीकार्य

दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS), द्वारका द्वारा 31 छात्रों को फीस न भरने के कारण सस्पेंड करने का फैसला वापस लिए जाने की जानकारी कोर्ट को दी गई। हालांकि, जस्टिस सचिन दत्ता ने दो टूक कहा कि स्कूल फीस वसूल सकते हैं, लेकिन उन्हें व्यवसायिक संस्थान की तरह नहीं चलाया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की गतिविधियां छात्रों में भय, अपमान और असुरक्षा की भावना पैदा करती हैं, जो शिक्षा के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने दोनों पक्षों — स्कूल प्रशासन और अभिभावकों — से अपील की कि वे मिल-बैठकर छात्रों के हित में समाधान निकालें।

अभिभावकों का आरोप: छात्रों को बस में बंद किया गया, मदद नहीं दी गई

अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन पर मनमानी, भेदभाव और अमानवीय व्यवहार के गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि बिना पूर्व सूचना के छात्रों को निष्कासित कर दिया गया, जिससे कक्षा 10वीं के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पर भारी असर पड़ा। कुछ मामलों में छात्रों को दो घंटे तक बस में बंद रखा गया और एक छात्रा को मासिक धर्म के दौरान सहायता नहीं दी गई। स्कूल प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए बाउंसर तैनात करने की बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार चेतावनी देने के बावजूद अभिभावकों ने बकाया फीस नहीं भरी और स्कूल को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।

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हाईकोर्ट की सख्ती
दिल्ली हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने इस मामले में छात्रों को राहत देते हुए निर्देश दिया कि उन्हें फिर से स्कूल में दाखिला दिया जाए, बशर्ते वे संशोधित फीस का 50% जमा करें। कोर्ट ने साफ किया कि स्कूल अपने मूलभूत ढांचे और कर्मचारियों के वेतन के लिए फीस वसूल सकते हैं, लेकिन बच्चों के अधिकारों का हनन नहीं कर सकते। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यदि छात्रों के साथ की गई कथित अमानवीय हरकतें साबित होती हैं, तो स्कूल प्राचार्य के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।

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