तबाही के बाद भी पंजाबियों के हौसले बुलंद
पंजाब इस समय कुदरती आपदा का शिकार हो चुका है और पंजाब के ज्यादातर गांव बाढ़ की चपेट में हैं। खेती पूरी तरह से तबाह हो चुकी है। लोगों के मकान, दुकानें, सामान यहां तक कि पशु भी ज्यादातर पानी में बह चुके हैं या फिर मर गए हैं। बावजूद इसके पंजाबियों के हौसले पूरी तरह से बुलंद देखे जा रहे हैं क्योंकि उनके साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 1947 में देश के बंटवारे में अगर किसी को जान-माल का नुक्सान हुआ तो वह पंजाब के लोग ही थे मगर कुछ ही सालों में अपनी मेहनत और कठिन परिश्रम से उन्होंने अपने आप को इस काबिल बना लिया कि समूचे देश में सबसे अधिक अनाज की पैदावर पंजाब में होने लगी। 80 के दशक मे पंजाब ने काला दौर देखा जिसने पंजाब की युवा पीढ़ी को खेती से दूर कर विदेश भागने के चलन को जन्म दिया। देश के किसी भी राज्य में किसी तरह की आपदा आई तो पंजाबियों ने सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाया। कोरोना काल में तो पंजाबियों ने अपनी सांसों तक के लंगर लगा दिए, पर अफसोस कि आज पंजाब पर आपदा आई तो कोई और राज्य मदद करने के लिए नहीं आया। पंजाब की मदद स्वयं पंजाबियों के द्वारा की जा रही है। दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी, शिरोमणि कमेटी, तख्त पटना साहिब, तख्त हजूर साहिब, मुम्बई से शिरोमणि कमेटी सहित कई बड़ी धार्मिक संस्थाओं से जुड़े गुरविन्दर सिंह बावा के द्वारा हर तरह की मदद पहुंचाई जा रही है। शहीद भगत सिंह सेवादल के जतिन्दर सिंह शन्टी द्वारा एम्बुलेंस भेजी गई हैं ताकि मैिडकल सेवा में किसी प्रकार दिक्कत ना हो। पंजाबी गायक, कलाकार भी मददगार बनकर सामने आ चुके हैं यहां तक कि विदेशों में बैठे ज्यादातर भारतीय जिनके दिलों में आज भी पंजाब बसता है वह अपना काम-धन्धा छोड़कर अपने पंजाब को पुनः खुशहाल बनाने के लिए पहुंचने लगे हैं।
सिखों को भारत के सिवाए और किसी मुल्क में आजादी नहीं : सिख समुदाय को जितनी आजादी भारत में मिली है शायद संसार के किसी और मुल्क मंे नहीं मिल सकती। भारत में सिख समुदाय के लोग गुरु साहिबान द्वारा दी गई मर्यादा, परंपरा के साथ जीवन व्यतीत करते हैं। सिखों के पांच ककारों में से एक कृपाण के संग कहीं भी आ- जा सकते हैं, यहां तक कि संसद और अति संवेदनशील जगहों पर भी सिख कृपाण के साथ प्रवेश कर सकते हैं क्यांेकि भारतीय संविधान सिखों को कृपाण रखने की अनुमति देता है। वहीं दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। भारत के भीतर हवाई जहाज में भी सिख कृपाण पहनकर यात्रा कर सकते हैं जबकि अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों में यात्रा करते समय कृपाण ले जाने की अनुमति नहीं मिलती। गुरुद्वारों या नगर कीर्तनों सिख समुदाय कृपाण के संग गतका के प्रदर्शन करते हैं और अब तो गतका को ओलंपिक खेलों में भी स्थान दिया गया है।
मगर विदेशों में कृपाण लेकर चलने की आजादी नहीं है जिसका ताजा उदारहण उस समय देखने को मिला जब अमेरिका के लॉस एंजेल्स से एक शख्स ने अचानक अपनी कार बीच सड़क पर रोक दी और और ‘गतका’ (सिखों की पारंपरिक युद्धकला) करने लगा।
घटना उस स्थान के पास हुई, जहां अक्सर भीड़ रहती है। वहां मौजूद लोग डर गए और तुरंत पुलिस को कॉल किया। मौके पर पुलिस पहुंची तो उसने बार-बार उस शख्स से कृपाण नीचे रखने को कहा लेकिन वह लगातार कृपाण घुमाता रहा और कभी पुलिस की तरफ तो कभी राह चलते वाहनों की ओर बढ़ने लगा जिसके बाद पुलिस ने उस सिख युवक पर अनगिनत कई गोलियां चला दी जिससे उसकी मौत हो गई। भारत में आज तक किसी सिख के साथ ऐसा व्यवहार नहीं हुआ फिर भी गुरपतवंत ंिसह पन्नू जैसे खालिस्तानी प्रवृति के लोग भारत में सिखों को गुलाम बताते हैं जबकि देखा जाए तो भारत के सिवाए और किसी भी देश में सिखों को अपने धार्मिक चिन्हों के साथ जीवन व्यतीत करने की आजादी हासिल नहीं है।
कैनेडा के हिन्दू सिखों को खालिस्तान के खिलाफ मुहिम चलाने की आवश्यकता : आज से 40 साल पहले कैनेडा की धरती पर बैठकर खालिस्तानियंों के द्वारा बम तैयार किया गया और उसी बम से कैनेडा से भारत आने वाले एयर इन्डिया के एक जहाज को हवा में ही बम से उड़ा दिया जिसमें 329 यात्री मारे गए जिनमें 82 मासूम बच्चे भी थे। उसी समय, टोक्यो के नारिता एयरपोर्ट पर एक और बम विस्फोट हुआ जो एयर इंडिया की एक अन्य उड़ान ए आई-301 के लिए था। यह बम चढ़ाए जाने से पहले ही फट गया, जिसमें दो जापानी बैगेज हैंडलर्स की मौत हो गई। मगर ऐसा लगता है कि कैनेडा के लोगों ने 40 साल पूर्व हुई इस घटना से अब तक कोई सबक नहीं लिया जिसके चलते आज भी खालिस्तानी खुलेआम अपनी गतिविधियों को अन्जाम देते आ रहे हैं। इस घटना के मास्टर माईंड को उल्टा एक हीरो के तौर पर पेश किया जाता है फिर भी ना जाने क्यों कैनेडा की सरकार इन लोगों के खिलाफ आज तक कार्रवाई करना तो दूर उल्टा उन्हें प्रोत्साहन देती आ रही है जिसके परिणाम स्वरूप खालिस्तानियों के हौसले बुलंद हैं और वह खुलकर भारत के खिलाफ गतिविधियांे को अन्जाम देते हैं।
कनिष्क बम काण्ड में अपना पूरा परिवार खाे चुके संजय लाजार नामक शख्स ने जिसकी उम्र उस समय मात्र 17 साल की थी और आज 57 साल का हो चुका है। कैनेडा में रहते हिन्दू-सिख भाईचारे के लोगों से अपील की है कि उन 329 लोगों को श्रद्धांजलि यही होगी कि खुलकर खालिस्तानियों का विरोध करने के लिए आगे आएं जिससे सरकार को भी यह समझ आ जाए कि कोई भी सिख भले ही संसार के किसी भी कोने में क्यों ना बैठा हो ना तो कभी खालिस्तानी समर्थक था और ना हो सकता है। इस हादसे का जिक्र करते हुए तख्त पटना साहिब के प्रवक्ता हरपाल सिंह जौहल का कहना है कि हमें तो आज तक यह समझ नहीं आ रहा कि खालिस्तानी असल में क्या चाहते हैं क्योंकि एक ओर वह सिख समाज के लोगों के लिए अलग देश की मांग करते हैं और दूसरी ओर सिखों पर ही अत्याचार करते हैं, क्योंकि कनिष्क हवाई हादसे में भी मरने वाले ज्यादातर सिख समाज के ही लोग थे जिससे एक बात संसार भर के सिखों को समझ लेनी चाहिए कि खालिस्तानी समर्थकों का मकसद पाकिस्तान के इशारे पर भारत में आतंक का माहौल बनाने से अधिक और कुछ नहीं है।
करतारपुर कोरीडोर खोलने की उठी मांग : बीते समय में जंग के ऐलान के बीच करतारपुर कोरीडोर को सरकार ने पुनः बन्द कर दिया था जिसे खोलने की मांग अब फिर से उठने लगी है। असल में करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के मेन हॉल सहित समूचे परिसर में पानी जमा हो गया था और पानी निकलने के बाद जमा गार की सफाई पाकिस्तान प्रशासन के द्वारा की गई जिसे लेकर सिख संगत में काफी रोष देखा जा रहा है। संगत का मानना है कि अगर संगत को वहां जाने की मंजूरी होती तो संगत द्वारा स्वयं इस सेवा को मर्यादा पूर्वक निभाया जाता। इसी के चलते श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार एवं नए बने शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष ज्ञानी हरप्रीत सिंह के द्वारा देश की मोदी सरकार से अपील की है कि जल्द से जल्द करतार पुर कोरीडोर को संगत के लिए खोला जाना चाहिए। असल में सिख संगत में रोष इसलिए भी है कि एक ओर संगत को दर्शनों से वंचित रखा जा रहा है वहीं क्रिकेट सहित अन्य खेलों के लिए दोनों देशों में सहमति बनी हुई है, इसलिए अब संगत चाहती है कि बिना देरी के कोरीडोर खोला जाए ताकि जो संगत अभी भी दर्शन नहीं कर सकी वह दर्शन कर पाए।