बंगलादेश की विरासत के विनाशक
पिछले वर्ष 5 अगस्त को बड़े पैमाने पर उग्र विरोध-प्रदर्शनों के कारण बंगलादेश…
पिछले वर्ष 5 अगस्त को बड़े पैमाने पर उग्र विरोध-प्रदर्शनों के कारण बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत आने के बाद से ही देश में लगातार हालात बिगड़ रहे हैं। तख्ता पलट के बाद बंगलादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हमलों के बाद से ही तनाव लगातार बढ़ रहा है। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि बंगलादेश एक विफल राष्ट्र की ओर बढ़ गया है। बंगलादेश में एक बार फिर हिंसा भड़क उठी और हजारों प्रदर्शनकारियों ने बंगलादेश के संस्थापक नेता बंगबंधु मुजीबुर रहमान के घर में तोड़फोड़ कर आग लगा दी। यह िहंसा भारत में शरण लिए बैठीं शेख हसीना द्वारा सोशल मीडिया पर दिए गए आक्रामक भाषण के बाद भड़की, जिसमें उन्होंने अपने समर्थकों से अंतरिम सरकार के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया था। हजारों प्रदर्शनकारियों ने बंगबंधु के ऐतिहासिक घर को तोड़ने के िलए क्रेन तक का इस्तेमाल किया। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार मूकदर्शक बनकर बैठी रही। बंगबंधु का घर बंगलादेश की आजादी का प्रतीक रहा है। यहीं पर उन्होंने 1971 में पाकिस्तान से बंगलादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी। जिसके बाद यह घर बंगलादेश के लिए ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीक बन गया था। इस घर को संग्रहालय बना दिया गया था।
शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट के बाद से ही बंगलादेश जेहादी कट्टरपंथियों के हाथों में पहुंच चुका है। आखिर वे कौन लोग हैं जो अपने ही देश की िवरासत को मिटा देना चाहते हैं। पहले बंगलादेश के सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी थी जिसमें बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय (जॉय बांग्ला) को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था। हाल ही में देश के केन्द्रीय बैंक ने करैंसी नोटों से बंगबंधु की तस्वीर हटाने का फैसला किया। वर्ष 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बना यह देश धार्मिक कट्टरता के जाल में उलझ कर अपनी पहचान को ही खत्म करने को आमादा नजर आ रहा है। यह स्पष्ट दिखाई देता है कि बंगलादेश अब पाकिस्तान की साजिशों का शिकार हो चुका है। बंगलादेश की इस्लािमक पहचान को फिर से स्थापित करने की कोशिशों को जमात-ए-इस्लामी राजनीतिक दल लगातार लगा हुआ है। कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान का वरदहस्त प्राप्त है। शेख मुजीबुर के घर पर हमला करने वाले वे लोग हैं जो कभी स्वतंत्र बंगलादेश नहीं चाहते थे, जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता को खारिज कर दिया था, जो पाकिस्तान जैसे आतंकवादी देश के साथ गठबंधन करना चाहते थे। आज वे और उनके वंशज हर चीज को आग लगा रहे हैं।
प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन ने विरासत को नष्ट करने को आतंकवादी कृत्य करार दिया है। तस्लीमा नसरीन ने कहा, ‘वे जो कट्टरपंथी मुसलमान हैं, जो गैर-काफिरों से घृणा करते हैं, जो महिलाओं से नफरत करते हैं और वे ही आज सत्ता में हैं। वे यूनुस सरकार है। इसलिए कानून लागू करने वाली संस्थाएं चुप रहती हैं, जबकि वे विनाश करते हैं, इतिहास से शेख मुजीब का नाम मिटा देते हैं और मुक्ति संग्राम के इतिहास को मिटा देते हैं। यह उनके लिए कोई नया सपना नहीं है। 5 अगस्त से वे उस सपने को हकीकत बना रहे हैं।’ बंगलादेश में जमात-ए-इस्लामी का बड़ा प्रभाव है जो राजनीतिक, सामाजिक और सैन्य स्तर पर दिखाई पड़ता है। पाकिस्तान की खुफिया और सैन्य इकाइयों से जमात के गहरे संबंध हैं। ऐसा प्रतीत होता है की पाकिस्तान बांग्ला पहचान को मिटाकर इसे धार्मिक रंग में रंगना चाहता है। इस कार्य में बंगलादेश के कई राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक कट्टरपंथी संगठन उसकी मदद कर रहे हैं। अब बंगलादेश की अंतरिम सरकार भी देश में कट्टरपंथियों का समर्थन कर रही है। कई चरमपंथियों को जेल से आजाद कर दिया गया है। यह समूची स्थितियां भारत के पूर्वोत्तर में स्थित आंतरिक संकट बढ़ा सकती हैं। साथ ही यदि इसे बंगलादेश की सेना का भी समर्थन हासिल हुआ तो भारत के लिए सुरक्षा संकट बढ़ सकता है।
बंगलादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया भारत के खिलाफ खुले तौर पर बयानबाजी कर रहे हैं। उन्होंने भारत के दुश्मन देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक के बाद एक कदम उठाए हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ उनकी कई मुलाकातों ने इस बात को पुष्ट किया है कि बंगलादेश और पाकिस्तान में रक्षा सहयोग बढ़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स कह रही हैं कि पाकिस्तान ने समुद्री रास्ते से बंगलादेश को हथियार और गोला बारूद मुहैय्या करवाया है। पाकिस्तान की रणनीति बंगलादेश से दोस्ती मजबूत कर भारत को घेरना है। पाकिस्तान बंगलादेश से दोस्ती बढ़ाकर बंगाल की खाड़ी में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है, जो भारत के हिसाब से खतरनाक है। बंगलादेश इस समय जेहादी ताकतों के हाथों में पहुंच चुका है। भारत को काफी सतर्क होकर चलना होगा। बंगलादेश से कोई उम्मीद रखना अब अर्थहीन हो चुका है। क्योंकि कट्टरपंथी ताकतें अब शेख मुजीबुर रहमान के शासन के समय 1972 में लागू संविधान को खत्म करने पर तुले हुए हैं। इससे साफ है िक बंगलादेश इस्लामी राज्य के तौर पर ही उभरेगा।