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काशी में क्यों मनाया जाता है देव दिवाली? सभी देवी-देवता भगवान शिव का करते हैं आभार प्रकट; जानें इसके पीछे की पूरी कहानी

01:31 PM Nov 04, 2025 IST | Shivangi Shandilya
Dev Deepawali in Kashi 2025

Dev Deepawali in Kashi 2025: कल यानी बुधवार, 5 नवंबर 2025 को देशभर में देव दिवाली मनाई जाएगी लेकिन उत्तर प्रदेश के काशी में इसे भव्य और विशेष तरीके से मनाई जाती है। इस पर्व की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई हैं। इस दिन लाखों की संख्या में भक्त काशी में गंगा में डुबकी लगाते हैं और दीपदान करते हैं।

देव दिवाली के दिन भगवान शिव की नगरी काशी दीपों से जगमगा उठती है। लाखों दीये काशी की सुंदरता को और बढ़ा देते हैं। बाबा की नगरी काशी, देव दिवाली के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। हालांकि, लोग यह जानने के लिए उत्सुक होते है कि हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में क्यों मनाए जाते हैं देव दिवाली?

Dev Deepawali 2025: क्यों मनाते हैं देव दिवाली?

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Dev Deepawali in Kashi 2025 (credit-sm)

हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर काशी में देव दिवाली मनाई जाती है। पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार धरती पर त्रिपुरा सुर नामक राक्षस का आंतक लोगों के प्रति अधिक बढ़ गया था। जिससे हर कोई काफी डर गए थे और त्रिपुरा सुर के स्वभाव से परेशान भी रह रहे थे। तब बाकी देवी-देवताओं ने भगवान शिव से त्रिपुरा सुर का वध करने के लिए निवेदन किया। जिसे स्वीकार करते हुए भगवान शिव ने त्रिपुरा सुर का वध कर दिया। यह देखकर सभी देवी देवता खुश हुए और भोलेनाथ का आभार व्यक्त करने के लिए काशी पहुंचे।

Kashi Mein Dev Deepawali: देव दिवाली पर देवताओं का समूह पहुंचता है काशी

Kashi Mein Dev Deepawali (credit-sm)

कथा के अनुसार, जिस दिन त्रिपुरासुर राक्षस का वध हुआ और देवता काशी पधारे, वह दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा का था। उस अवसर पर देवताओं ने काशी नगरी में असंख्य दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया। इसी घटना की स्मृति में हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में दीपों का यह पर्व मनाया जाता है। चूंकि यह दीपावली स्वयं देवताओं द्वारा मनाई गई थी, इसलिए इसे देव दिवाली या देव दीपावली कहा जाता है।

देव दिवाली मनाने का महत्व

Kashi Mein Dev Deepawali (credit-sm)

उत्तर प्रदेश की पावन नगरी काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है। जब भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया, तो सभी देवी-देवता उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए काशी में अवतरित हुए। उन्होंने सबसे पहले गंगा में स्नान किया, फिर दीप जलाए और राक्षस त्रिपुरासुर के वध का उत्सव मनाया। तब से, काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है।

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