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Dev Uthani Ekadashi Kab Hai: 1 या 2 नवंबर? पंडितों का क्या है कहना और जानें शुभ मुहूर्त और विधि

11:56 AM Oct 26, 2025 IST | Khushi Srivastava
dev uthani ekadashi kab hai  1 या 2 नवंबर  पंडितों का क्या है कहना और जानें शुभ मुहूर्त और विधि
Dev Uthani Ekadashi kab hai (Photo: AI Generated)
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Dev Uthani Ekadashi kab hai: सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। हर महीने दो बार एकादशी आती है, दोनों ही भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘देवउठनी एकादशी’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं, और इसी के साथ सभी शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस अवसर पर तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है, जिसे घर में सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

Dev Uthani Ekadashi kab hai: देवउठनी एकादशी 2025 की तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में देवउठनी एकादशी की तिथि 1 नवंबर को सुबह 9:12 से शुरू होकर 2 नवंबर की रात 7: 32 तक रहेगी। सूर्योदय के समय एकादशी तिथि होने के कारण व्रत 2 नवंबर 2025 को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस दिन सूर्योदय के समय एकादशी तिथि होती है, उसी दिन व्रत का पालन करना शुभ माना जाता है।
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Dev Uthani Ekadashi 2025: मांगलिक कार्यों की शुरुआत

Dev Uthani Ekadashi kab hai
Dev Uthani Ekadashi kab hai (Photo: AI Generated)
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भगवान विष्णु के चार महीने की निद्रा पूरी कर जागने के बाद से मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है। देवउठनी एकादशी को ‘देवोत्थान एकादशी’ या ‘प्रबोधिनी एकादशी’ भी कहा जाता है। इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इस दिन व्रत रखता है और पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही मां लक्ष्मी की कृपा से जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है।

Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi: देवउठनी एकादशी की पूजा विधि

Dev Uthani Ekadashi kab hai
Dev Uthani Ekadashi kab hai (Photo: AI Generated)

देवउठनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को साफ करके भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और उनका ध्यान करें। अब इन्हें गंगाजल से स्नान कराएं और पीला चंदन, पीले फूल तथा पंचामृत का भोग लगाएं। घी का दीप जलाकर व्रत कथा सुनें और अंत में आरती कर पूजा पूर्ण करें।

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