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विकास या विध्वंस

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09:47 AM Mar 20, 2018 IST | Desk Team

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आज चारों तरफ एक ही बात की जा रही है ‘सबका ​साथ, सबका विकास।’ यह सही है कि आम आदमी की जरूरतें चरम अवस्था में पहुंच चुकी हैं। हम उन जरूरतों को पूरा करने के लिए विकास की कीमत प्रकृति के विनाश से चुकाने जा रहे हैं। धरती का पर्यावरण नष्ट हो रहा है आैर हम जलवायु परिवर्तन के खतरों से पूरी दुनिया को सचेत कर रहे हैं। खेत और खलिहान शॉपिंग मॉल हो गए, गलियां संकरी हो गईं, घर दुकान हो गए फिर भी हम पर्यावरण की बातें करते हैं। विकास आैर पर्यावरण साथ-साथ चलने चाहिएं लेकिन यह चल ही नहीं रहे हैं। हर कोई संगमरमरी फर्श चाहता है इसलिए न जाने अब तक कितनी खानें खुल गईं। हरियाली उजड़ती जा रही है और पहाड़ नग्न हो चुके हैं। दिल्ली का हश्र आप देख चुके हैं। अगर अनियोजित विकास ऐसे ही होता रहा तो दिल्ली का फेफड़ा समझे जाने वाले रिज क्षेत्र को भी लोग तहस-नहस कर डालेंगे। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि भविष्य में रिज क्षेत्र के पेड़ काटकर वहां बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो जाएं।

आज देश में कोई नदी नहीं बची है जिसका पानी पीने के लिए सुरक्षित हो। बाढ़ आैर भूस्खलन हमारे यहां रोजमर्रा की बात हो गई है आैर जब-तब पड़ने वाला सूखा आैर अतिवृष्टि अर्थशास्त्रियों के भ्रामक आकलनों का मजाक उड़ाता है। अब तक तीन करोड़ से भी अधिक लोग बांधों, खदानों आैर बड़ी परियोजनाओं के कारण उजड़ चुके हैं और वे अब शहर की गंदी बस्तियों में जीवन बसर करने के ​लिए मजबूर हैं। कभी कहा जाता है कि हम फिर वन विकसित करेंगे आैर कृत्रिम नदियां बहाएंगे। अब वे विकास के नाम पर देश की पा​रि​िस्थतिकी की चिन्ता को ताक पर रख चुके हैं। इस देश में विकास के नाम पर वनवासियों, आदिवासियों के हितों की बलि देकर व्यावसायिक हितों को बढ़ावा दिया गया। खनन के नाम पर जगह-जगह आदिवासियों से जल, जंगल और जमीन को छीना गया। कौन नहीं जानता कि ओडिशा का नियमागिरी पर्वत उजाड़ने का प्रयास ​किया गया। इस बात का पता सरकार को तब चला था जब लन्दन की अखबारों में आदिवासियों के लिए पूजा का स्थान माने गए नियमागिरी पर्वत को बचाने की मांग के सम्बन्ध में लेख प्रकाशित हुए। मुम्बई की आरे मिल्क कालोनी को दिल्ली के रिज क्षेत्र की तरह महानगर का फेफड़ा माना जाता है। इस कालोनी में अब महाराष्ट्र सरकार द्वारा मैट्रो परियोजना के लिए कार शेडों का निर्माण किया जा रहा है।

पिछले वर्ष जब कार शेड बनाने के लिए भूमि सीमांकन का काम शुरू किया गया तो आरे संरक्षण समूह के कार्यकर्ताओं और कई लोगों ने स्कूलों के बच्चों के साथ आरे कालोनी के पेड़ों को गले लगाते हुए शांतिपूर्ण विरोध किया था और सरकार से अपील की थी कि वह शहर के पारिस्थितिकी संतुलन को नष्ट किए बिना शहर के 7 अन्य खाली पड़े भूखंडों पर कार शेड का निर्माण करे लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। अब वहां पेड़ों को काटा जा रहा है। एमएमआरसी ने यद्यपि हाईकोर्ट में कहा था कि वह केवल 250 पेड़ काटेगा जबकि एनजीटी में यह कहा गया कि केवल 500 पेड़ काटे जाएंगे।

हालांकि आश्चर्यजनक रूप से मुम्बई में 3,500 पेड़ों को हुक करने के लिए एक निविदा जारी की गई है। मुम्बई के अभिनेताओं, गीतकारों आैर बुद्धिजीवियाें ने आरे कालोनी को बचाने की अपील की थी लेकिन विकास के नाम पर विध्वंस का खेल जारी है। मुम्बई जिस क्षेत्र के कारण सांस लेती है, उसे ही तबाह किया जा रहा है। आरे कालोनी में कार शेड निर्माण क्षेत्र जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न कर देगा। शिवसेना, कांग्रेस आैर अन्य दलों का आरोप है कि अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को गुमराह किया है कि मिल्क कालोनी के क्षेत्र में केवल चूहे पाए जाते हैं। इस कार शेड के निर्माण के लिए 329 करोड़ का ठेका दिया गया है, जिसे 25 हैक्टेयर जमीन पर बनाया जाएगा।

इस डिपो में 8 डिब्बों की 31 रैक बनाई जाएंगी। सरकार कहती है कि आरे कालोनी में आदिवासी अवैध रूप से भूमि पर कब्जा कर रहे हैं। आदिवासियों का कहना है कि वह कई वर्षों से यहां रह रहे हैं। विस्थापित आदिवासियों को जिस एक-एक कमरे में रहने को कहा गया है वहां न ताे कोई पानी सप्लाई की व्यवस्था है आैर न ही ​बिजली है। आदिवासी इन कालोनियों में रहने को तैयार नहीं हैं। उनकी जीवनशैली काफी भिन्न है। अगर उन्हें विस्थापित किया जाता है तो उनके पुनर्वास की व्यवस्था भी सरकारों को करनी होगी। आदिवासियों के प्रति सरकार तथा मुख्यधारा के समाज के लोगों का नजरिया कभी संतोषजनक नहीं रहा। आदिवासियों को सरकार द्वारा पुनर्वासित करने का प्रयास भी पूर्ण रूप से सार्थक नहीं रहा।

अंततः अपनी ही जमीनों और संसाधनों से विलग हुए आदिवासियों का जीवन मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया है। 21वीं सदी में पहुंचकर भी आदिवासी समाज विकास की बाट जोह रहा है। हम विकास के विरोधी नहीं लेकिन विकास, पर्यावरण अाैर आम लोगों का विकास साथ-साथ चलने चाहिएं। विकास के नाम पर विनाश भी होता जाए तो उसके सकारात्मक परिणाम कभी नहीं मिलेंगे।

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