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धनखड़ का धमाल...

04:20 AM Aug 01, 2025 IST | Kumkum Chaddha

यह दूसरी बार है जब निवर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष की मांग मानी है। शायद कुछ महीनों की देरी से लेकिन अंततः उन्होंने वही किया जिसकी मांग विपक्षी सांसद पिछले साल से कर रहे थे। पिछले साल दिसंबर में ‘इंडिया गठबंधन’ के 60 सांसदों ने धनखड़ को हटाने की मांग की थी। उन्होंने एक प्रस्ताव का नोटिस सौंपा था, जिसमें कहा गया था कि धनखड़ ने ‘स्पष्ट रूप से पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है और विपक्षी सदस्यों के प्रति अनुचित व्यवहार किया है।’
स्वाभाविक रूप से यह नोटिस राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश द्वारा खारिज कर दिया गया। उनका तर्क था कि यह प्रस्ताव जल्दबाज़ी में लाया गया था और इसका उद्देश्य उपराष्ट्रपति की छवि खराब करना था। कुछ महीनों बाद, वही विपक्ष जो कभी उनके इस्तीफ़े की मांग कर रहा था, अब उनके समर्थन में खड़ा है। और धनखड़ जो पहले अपने पद पर अड़े हुए थे, अब वही कर गए जिसकी उम्मीद विपक्ष उनसे पिछले साल कर रहा था। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। धनखड़ ने अपने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य बताया है। जिस गति से उन्होंने इस्तीफा दिया उसने सभी को चौंका दिया है। वही विपक्ष जो पहले उनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए था, अब उन्हें किसान पुत्र कहकर उनकी प्रशंसा कर रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम में आया पलटा वह बेहद दिलचस्प हैं। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि धनखड़ को ‘राष्ट्र हित’ में अपना इस्तीफा वापस लेना चाहिए। यह वही रमेश हैं जिन्होंने पहले आरोप लगाया था कि धनखड़ ‘सरकार के प्रचारक की तरह’ व्यवहार करते हैं, न कि एक निष्पक्ष मध्यस्थ की तरह। वे विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का नेतृत्व करने वालों में भी शामिल थे लेकिन अब रमेश उनकी ​िनर्भीकता की सराहना कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी धनखड़ के समर्थन में बयान दिया है। यह वही खड़गे हैं जो कई बार उन पर संसद में बोलने से रोकने का आरोप लगाते रहे हैं।
उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ राज्यसभा के पदेन सभापति भी थे। यह दूसरी बार है जब निवर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष की मांग पर सहमति जताई है। हालांकि इसमें कुछ महीनों की देरी जरूर हुई लेकिन अंततः उन्होंने वह कदम उठाया जिसकी मांग विपक्षी सांसद लगातार कर रहे थे। दिसंबर 2023 में ‘इंडिया गठबंधन’ के 60 सांसदों ने उपराष्ट्रपति धनखड़ को उनके पद से हटाने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव का नोटिस दिया था। विपक्ष का आरोप था कि धनखड़ ने ‘खुले तौर पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है और विपक्षी सांसदों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार किया है।’ राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने यह नोटिस खारिज कर दिया था। उनका कहना था कि यह प्रस्ताव जल्दबाजी में लाया गया है और उपराष्ट्रपति की छवि को धूमिल करने का प्रयास है।
जगदीप धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला था। उन्होंने तय समय से दो साल पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनका कार्यकाल वर्ष 2027 में समाप्त होना था। धनखड़ और विपक्ष के बीच जो आज समीकरण दिखाई दे रहे हैं, वह हाल ही में बने हैं। इस्तीफे से पहले तक उनका विपक्ष के साथ टकराव का रिश्ता रहा है। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने उन्हें मंच से नकल उतारकर निशाना बनाया था, साथ ही उनके महंगे सूट पर भी टिप्पणी की थी कि वह ‘लाखों का सूट पहनते हैं।’
सपा सांसद जया बच्चन की धनखड़ से बहस तब हुई जब उन्होंने सदन में उनकी आवाज के ‘अस्वीकार्य लहजे’ को लेकर आपत्ति जताई थी। उन्होंने करीब एक साल पहले सदन में गरजते हुए कहा था, ‘मुझे माफी चाहिए।’ इसके अलावा उनका यह भी आरोप था कि जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बोलने के लिए खड़े हुए तब उपराष्ट्रपति ने उनका माइक बंद करवा दिया। अब तस्वीर बदल चुकी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के महाभियोग प्रस्ताव के संदर्भ में विपक्ष का समर्थन करने के कारण धनखड़ को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
सरकार ने लोकसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत की थी और 153 सांसदों ने प्रस्ताव के पक्ष में हस्ताक्षर किए थे। इसी तरह राज्यसभा में 63 सांसदों ने उपराष्ट्रपति को नोटिस भेजा। ध्यान देने वाली बात यह है कि राज्यसभा के सभी हस्ताक्षरकर्ता विपक्षी दलों से थे। तो सवाल उठता है कि राज्यसभा के भाजपा सांसद इस प्रक्रिया से बाहर क्यों रहे? जवाब स्पष्ट है उन्हें राज्यसभा में दिए गए नोटिस की जानकारी ही नहीं थी। यह घटनाक्रम न केवल सरकार की लोकसभा में चलाई जा रही कार्रवाई को बाधित करता है, बल्कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार की नैतिक बढ़त को भी कमजोर करता है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि सरकार न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को आम सहमति के आधार पर हटाना चाहती थी। इसी के तहत लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए आवश्यक 100 हस्ताक्षरों के मुकाबले 145 सांसदों ने समर्थन किया जिनमें विपक्ष के सदस्य भी शामिल थे लेकिन जानकारों के अनुसार उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जल्दबाजी में राज्यसभा को सूचित कर दिया कि न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने का नोटिस प्राप्त हो गया है, यह उस समय हुआ जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने निचले सदन को इस बारे में कोई औपचारिक सूचना नहीं दी थी।
मोदी सरकार के कार्यकाल में ही उन्हें राजभवन से लेकर उपराष्ट्रपति पद तक अभूतपूर्व शक्ति और सम्मान मिला था। ऐसे में अपने ही राजनीतिक संरक्षक के खिलाफ कदम उठाना उनके लिए तार्किक नहीं लगता। साथ ही उपराष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद उनके पास विपक्ष के साथ खड़े होने का कोई राजनीतिक लाभ भी नहीं था।
एक अन्य दृष्टिकोण यह भी है कि धनखड़ का इस्तीफा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति पद पर बैठाने की योजना का हिस्सा हो सकता है। यह संभावना पूरी तरह नकारी नहीं जा सकती लेकिन जिस जल्दबाजी में धनखड़ ने इस्तीफा दिया या उन्हें देने के लिए मजबूर किया गया वह भाजपा सरकार की कार्यशैली के विपरीत है।
सरकार न तो किसी फैसले में जल्दबाजी करती है, न ही यूं फिसलती है। अगर वास्तव में धनखड़ को हटाकर नीतीश कुमार को जगह देनी होती तो यह इस्तीफा संसद के मानसून सत्र से पहले हो सकता था न कि सुबह पद पर और दोपहर में बाहर जैसी स्थिति में। इसके अलावा सरकार को खुद को ऐसे असमंजस में डालने की कोई आवश्यकता नहीं थी जहां उसे ऐसे सवालों का सामना करना पड़े जिनके स्पष्ट जवाब उसके पास नहीं हैं। जैसे-जैसे घटनाएं सामने आ रही हैं, असली मुद्दा धनखड़ का जाना नहीं, बल्कि जिस तेजी से यह सब हुआ वही है जिसने सभी को चौंका दिया है।

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