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क्या राहुल ने राहुल को पीछे छोड़ दिया ?

05:11 AM Jul 02, 2024 IST | Shivam Kumar Jha

आलिया भट्ट और राहुल गांधी को मजाक का पात्र बना देने के लिए सोशल मीडिया पर जितना लंबा अभियान चला, उतना शायद ही किसी और के लिए चला होगा। यह सब किसने किया और क्यों किया, इसके बारे में चर्चाएं तो बहुत होती हैं लेकिन पुख्ता तौर पर किसी का नाम लेना ठीक नहीं है। मुद्दे की बात यह है कि आलिया ने अपने बेहतरीन अभिनय से वर्षों पहले उस भ्रम को तोड़ दिया और अब राहुल गांधी को ऐसा मौका मिला है लेकिन उनके लिए चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं।

बड़े तरीके से राहुल गांधी की यह छवि बना दी गई कि वे जिम्मेदारियों से भागने वाले व्यक्ति हैं। उनकी कार्यप्रणाली में निरंतरता की कमी की भी बातें की जाती रही हैं। उन्होंने 2004 में अमेठी से चुनाव लड़ा और संसद में पहुंचे, उसके बाद 10 साल तक उनकी सरकार रही लेकिन उन्होंने मंत्री पद नहीं लिया। कई मौकों पर अपनी ही सरकार की नीतियों की आलोचना करने से भी नहीं हिचके। अंतत: 2017 में वे पार्टी के अध्यक्ष बने लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी पराजय के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कहा कि किसी नए व्यक्ति को यह जिम्मेदारी देनी चाहिए। जहां तक संसद में पद लेने का सवाल है तो 2014 के बाद कांग्रेस के पास कोई विकल्प उपलब्ध ही नहीं था। नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी भी पार्टी के पास संसद का कम से कम 10 प्रतिशत सीट शेयर यानी 54 सीटें होना अनिवार्य है। 2014 में कांग्रेस को केवल 44 और 2019 में केवल 52 सीटें मिली थीं, नेता प्रतिपक्ष की पात्रता ही नहीं थी।

2024 के चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिलीं तो लोगों के मन में एक ही सवाल था कि क्या राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार करेंगे या पद से दूरी बनाए रखेंगे? राहुल ने न केवल पद स्वीकार किया बल्कि उन्होंने जिस अंदाज में अपनी बात कही उससे उनकी नई छवि का एहसास होता है। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को कहा कि सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है लेकिन विपक्ष भी भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। संसद चलाने में विपक्ष मदद करेगा लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सहयोग भरोसे के साथ होना चाहिए। सवाल यह नहीं है कि संसद कितनी शांति से चल रही है बल्कि सवाल यह है कि आम आदमी की आवाज उठाने के लिए कितनी अनुमति मिलती है, विपक्ष की आवाज दबाकर संसद शांति से चला सकते हैं लेकिन यह नजरिया अलोकतांत्रिक होगा। अध्यक्ष की जिम्मेदारी है कि वे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें।

राहुल के इस स्पष्टवादी तेवर ने संकेत दे दिया है कि भविष्य के लिए उनका रुख क्या होगा। महत्वपूर्ण यह है कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी ऐसी जगह पहुंच गए हैं जहां टेबल के आर-पार वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमने-सामने होंगे। नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट रैंक मिलता है, वह पूरे विपक्ष का नेतृत्व तो करता ही है, वह पब्लिक अकाउंट, पब्लिक अंडरटेकिंग और एस्टिमेट कमेटी जैसी महत्वपूर्ण समितियों का हिस्सा भी होता है। नेता प्रतिपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका संयुक्त संसदीय समितियों और चयन समितियों में होती है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग, लोकपाल, चुनाव आयुक्तों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जैसे पदों की नियुक्तियां ये चयन समितियां ही करती हैं।

अभी तक नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों ही एक-दूसरे पर तीखे शब्द बाण चलाते रहे हैं लेकिन यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि टेबल पर दोनों जब एक साथ बैठेंगे तो एक-दूसरे के प्रति उनका रुख किस तरह का रहेगा? हालांकि अध्यक्ष ओम बिरला को जिस तरह से मिलकर वे आसंदी तक ले गए उससे एक उम्मीद जगी लेकिन इमरजेंसी के जिक्र ने रिश्तों में खटास डाल दी है। इमरजेंसी के लिए जनता ने इंदिरा गांधी को सजा दे दी थी और फिर सत्ता में वापस भी ले आई थी, यह विवाद रिश्तों में आग लगाने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी को शासकीय प्रबंधन का लंबा अनुभव है और वे कूटनीति में भी माहिर व्यक्ति हैं। ऐसे में राहुल गांधी के समक्ष ज्यादा बड़ी चुनौती रहेगी। यदि वे इसमें सफल होते हैं तो निश्चय ही एक परिपक्व नेता के रूप में उनकी नई पहचान कायम होगी और जो लोग उनकी छवि को तबाह करने की हर संभव कोशिश करते रहे हैं उन्हें करारा जवाब भी मिलेगा।

मैंने यह महसूस किया है कि राहुल गांधी बहुत समझदार नेता हैं। देश की नब्ज को समझने के लिए उन्होंने पूरे देश की यात्रा की है, जिस तरह से गांधी जी और विनोबा जी ने की थी। वे विशेषज्ञों से चीजें समझते हैं, फालतू बातों में उनकी कोई रुचि नहीं रहती और झूठ का वे सहारा नहीं लेते। हां, उनके किचन कैबिनेट को लेकर जानकार सवाल खड़े करते रहे हैं लेकिन वक्त के साथ वे चीजों को जरूर सुधारेंगे। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से उनका व्यक्तित्व बदला है। यात्रा के दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि ‘मैंने राहुल गांधी को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अब मैं वो राहुल गांधी नहीं हूं।’ ...देखना है, क्या सचमुच राहुल गांधी ने राहुल को पीछे छोड़ दिया है?

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