दबंग दबक गया ?
दबाव बनाने वाला अब पीछे हटता दिखाई दे रहा है, कम से कम ऊपर-ऊपर तो यही तस्वीर है। अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं। करीब आठ माह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतकर पूरी दुनिया को झकझोर देने वाले डोनाल्ड ट्रंप आज भी अपने अप्रत्याशित और सनकी तेवरों, साथ ही चौंकाने वाली नीतिगत घोषणाओं से हलचल मचाए हुए है। कहना गलत न होगा कि उन्होंने वैश्विक व्यवस्था को इस हद तक हिला दिया है, जिसकी कल्पना भी लोगों ने की होगी। सूची में सबसे ऊपर है अवैध प्रवासियों पर नकेल कसना और ‘न्याय संगतता’ के नाम पर आयातित वस्तुओं पर उतना ही शुल्क लगाना जितना अन्य देश अमेरिकी उत्पादों पर लगाते हैं। इसी बहाने ट्रंप ने एक ऐसे व्यापार युद्ध का शंखनाद कर दिया है, जिसके असर दूरगामी और गहरे हैं। यह कदम न केवल दशकों पुरानी व्यापार नीतियों को उलट चुका है, बल्कि बहुराष्ट्रीय व्यवसायों के लिए अराजकता और अस्थिरता भी ले आया है।
ट्रंप के नज़रिए से देखें तो यह महज़ एक चुनावी वादे की पूर्ति है। याद कीजिए उनका शपथ ग्रहण भाषण, जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि ‘विदेशी देशों पर शुल्क और कर लगाकर हम अपने नागरिकों को समृद्ध करेंगे।’ लेकिन अब यही वादा भारी बोझ का रूप ले चुका हैऔर यह बोझ, हल्के शब्दों में भी कहें तो, पूरी दुनिया के लिए ख़तरे की घंटी है।
कट टू 2025 : ट्रंप के नए हमले दो मुद्दों पर- ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान युद्धविराम और भारत को ‘टैरिफ़ किंग’ तथा ‘बड़ा ग़लत इस्तेमाल करने वाला’ करार देना। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों की हत्या के बाद दोनों देशों के बीच भयंकर झड़पें हुईं और अंततः युद्धविराम की स्थिति बनी। लेकिन इससे पहले कि भारत या पाकिस्तान आधिकारिक घोषणा कर पाते, ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिख दिया ‘भारत और पाकिस्तान ने पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमति जताई है।’ कहना गलत न होगा कि ट्रंप ने जल्दबाज़ी दिखाकर भारतीय सरकार, ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शर्मिंदगी में डाल दिया और हमारे सशस्त्र बलों के उस दावे को भी कमजोर कर दिया जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है।
भारतीय सरकार ने ट्रंप के दावों का खंडन तो किया, लेकिन बेहद अप्रत्यक्ष और कमजोर ढंग से। बार-बार यही कहा गया कि युद्धविराम केवल भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ, किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं थी। मगर न एक बार ट्रंप का नाम लिया गया, न अमेरिका का ज़िक्र करके उनके दावे को सिरे से खारिज किया गया। यहां तक कि जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सरकार को चुनौती दी कि वह साफ़ कहे ‘ट्रंप झूठ बोल रहे हैं’ तब भी सरकार चुप्पी साधे रही। निष्कर्ष साफ़ था मोदी ट्रंप का सीधा सामना करने से बच रहे थे।
जहां तक टैरिफ़ का सवाल है, ट्रंप राष्ट्रपति बनने के समय से ही भारत के ऊँचे आयात शुल्क की आलोचना करते आ रहे थे। रिकॉर्ड के लिए बता दें, टैरिफ़ यानी किसी देश से आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर। ट्रंप ने पहले ही चेतावनी दी थी कि ‘अब मैं ज़िम्मेदारी संभाल रहा हूं और आप ऐसा नहीं कर सकते’ स्पष्ट था कि यह धमकी महज़ बयानबाज़ी नहीं थी। पिछले महीने ट्रंप ने भारत से आयात पर शुल्क दोगुना कर दिया, इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक पहुंचा दिया। इसमें रूस से तेल ख़रीद पर लगाया गया 25 प्रतिशत का दंडात्मक शुल्क भी शामिल था जो अमेरिका ने किसी भी देश पर लगाए गए सबसे ऊँचे शुल्कों में से एक है। ट्रंप प्रशासन का संकेत साफ़ था ‘रूस से तेल और हथियार खरीदने की सज़ा।’ लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग रास्ता चुना और मज़बूती से कदम उठाया। उन्होंने ट्रंप और दुनिया को यह संदेश दिया कि राष्ट्रीय हित के मामले में भारत किसी तरह का समझौता नहीं करेगा। और यही हुआ। नतीजा यह रहा कि मोदी के इस क़दम ने न केवल ट्रंप बल्कि पूरे अमेरिकी तंत्र को असहज कर दिया।
संकेत साफ़ हैं भारत अब अमेरिका-केंद्रित नीति से आगे बढ़कर नए वैश्विक समीकरण गढ़ रहा है। हालिया शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की तियानजिन, चीन बैठक में रूस और चीन के साथ भारत की कूटनीतिक नज़दीकियां इसी बदलाव की बानगी हैं। शुरुआत हुई जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हाथों में हाथ डाले बैठक कक्ष में दाख़िल हुए, जहां पहले से ही कई विश्व नेता मौजूद थे। दोनों सीधे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ओर बढ़े, उनसे हाथ मिलाया और तीनों ने मिलकर एक नज़दीकी घेरा बना लिया।
रूसी मीडिया के मुताबिक़, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने शिखर सम्मेलन के इतर होने वाली एक बैठक में साथ गाड़ी साझा की। आधिकारिक बातचीत शुरू होने से पहले दोनों ने पुतिन की लिमोज़ीन में लगभग 50 मिनट तक गहन चर्चा की। शी और पुतिन की आत्मीयता का संदेश साफ़ था अमेरिका की चुनौती के समानांतर एक वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था खड़ी करने का इरादा। मोदी का मक़सद यह दिखाना था कि भारत के पास भी मज़बूत दोस्त हैं, यहां तक कि चीन भी, भले ही सीमा विवाद अब तक सुलझा न हो- अगर ट्रंप प्रशासन टैरिफ़ लगाकर भारत को दूर धकेलना जारी रखता है।
तियानजिन की बैठक में यह तस्वीर पूरी तरह सामने आई। विश्लेषकों ने कहा-इस शिखर सम्मेलन की असली ताक़त प्रतीकों में है, और व्हाइट हाउस को समझना चाहिए कि उसकी नीतियां अन्य देशों को अपने हित साधने के लिए वैकल्पिक साझेदार तलाशने पर मजबूर कर रही हैं। उनका मानना था कि मोदी, पुतिन और शी का हाथ में हाथ डालना और मुस्कुराना उस ‘त्रिमूर्ति’ का जीवंत प्रतीक है, जिसे मास्को लंबे समय से पुनर्जीवित करना चाहता है। संदेश बिल्कुल साफ़ था- पश्चिमी गुट से बाहर की तीन बड़ी ताक़तें, हंसते-मुस्कुराते, दोस्ताना अंदाज़ में दुनिया को यह दिखा रही थीं कि वे एकजुट हैं।
यह केवल प्रतीकात्मकता थी, लेकिन बेहद सशक्त। ट्रंप और अमेरिका को इसका सीधा संदेश गया- ‘अब और दबाव मत डालो।’ यही था प्रधानमंत्री मोदी का इशारा ट्रंप की धौंस भरी राजनीति की ओर। ट्रंप ने अंततः यू-टर्न ले ही लिया। उन्होंने कहा-अमेरिका ने शायद भारत और रूस को चीन के गहरे अंधेरे खेमे में खो दिया है। इतना ही नहीं, आगे बढ़कर उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि ‘मैं हमेशा मोदी का दोस्त रहूंगा, वह एक महान प्रधानमंत्री हैं। यह कदम देर से आया, और शायद थोड़ा कमज़ोर भी। साफ़ है कि ट्रंप घबराए हुए हैं और होना भी चाहिए। उन्हें लगा था कि भारत और प्रधानमंत्री मोदी को अपनी उँगली पर नचाकर दबाव बनाया जा सकता है। मगर वह भूल गए कि मोदी कोई आसान प्रतिद्वंद्वी नहीं। जब बात राष्ट्रीय हित की आती है तो प्रधानमंत्री मोदी समझौते की बजाय सीधा पलटवार करना जानते हैं।
लोग चाहे यह मानते रहे हों कि मोदी ट्रंप के दबाव में हैं और उनके इशारों पर चलते हैं, लेकिन मोदी ने यह धारणा पूरी तरह तोड़ दी। ट्रंप ने जब टैरिफ़ का वार किया तो मोदी ने करारा जवाब दिया। उन्होंने ट्रंप की ‘ब्लफ़’ को उजागर कर यह दिखा दिया कि भारत न तो अमेरिका पर निर्भर है और न ही ट्रंप की मनमानी के आगे झुकने को तैयार। भारत अपने दम पर खड़ा रह सकता है और ऐसे विकल्प तलाश सकता है जो अमेरिका को उससे ज़्यादा चोट पहुंचा सकते हैं जितनी अमेरिका भारत को पहुंचा सकता है।
यह सच है कि भारत-चीन-रूस की त्रिमूर्ति में मतभेद और दरारें भी मौजूद हैं। मगर फिलहाल, कम से कम भारत के लिए, इस हाथ-में-हाथ डालने वाली तस्वीर ने मक़सद पूरा कर दिया है। इससे भी अहम संदेश यह गया है कि भारत अब अमेरिका के साथ या उसके बिना, हर संभव विकल्प तलाशेगा। इसलिए, ट्रंप को समझना होगा कि भारत को खोना उनके लिए ख़ुद एक भारी जोखिम होगा। अगर वह रिश्ते बनाए रखना चाहते हैं तो अब सारी शर्तें केवल वॉशिंगटन से तय नहीं होंगी। प्रधानमंत्री मोदी यह कभी नहीं होने देंगे।