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आपदा प्रबंधन तंत्र को और मजबूत करना होगा

06:23 AM Jul 15, 2025 IST | Rohit Maheshwari

इस सदी के पहले दो दशकों के दौरान तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनियाभर में बाढ़, तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल असर से आज भारत के साथ-साथ समूचा विश्व ही दो-चार हो रहा है। इसकी वजह से उपजी आपदाओं के कारण न सिर्फ जान-माल की व्यापक क्षति हो रही है, अपितु बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित होने के लिए भी विवश होना पड़ रहा है। भारत में भी प्राकृतिक आपदाओं का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। साल 2024 में भारत में 400 से ज्यादा प्राकृतिक आपदाएं आईं जो पिछले दो दशकों में सबसे अधिक हैं और इस आपदाओं का सबसे बड़ा नुक्सान लोगों के घरों को हुआ है। साथ ही ये आपदाएं लोगों को अस्थायी और स्थायी रूप से विस्थापित कर रही हैं। जेनेवा स्थित इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर यानी आईडीएमसी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत में 1.18 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। ये आंकड़ा पिछले सालों की तुलना में 30 फीसदी अधिक है। साल 2022 में लगभग 32,000 और 2021 में 22,000 लोग बेघर हुए थे।

प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या भी चिंताजनक है, साल 2019 से 2023 के बीच भारत में कुल 281 प्राकृतिक आपदाएं दर्ज की गईं थी, लेकिन केवल 2024 में ही 400 से अधिक घटनाएं सामने आईं हैं। वहीं, पिछले छह सालों में बाढ़ के कारण 55 फीसदी लोग आंतरिक रूप विस्थापन हुए, जबकि आंधी-तूफान के कारण 44 फीसदी लोग विस्थापित हुए। इसके अलावा भूस्खलन, भूकंप और सूखे जैसी अन्य जलवायु-संबंधी आपदाओं ने भी हजारों लोगों को बेघर कर दिया। इसके इतर साल 2024 चिंताजनक था तो साल 2025 में हालात और भी बदतर हैं। इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर के अनुसार, 2025 के छह महीनों में ही पूरे भारत में 1.6 लाख से ज्यादा लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण बेघर हुए हैं।

ताजा आंकड़ों के अनुसार, इस प्राकृतिक आपदा में पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, जहां 20 मई को मालदा के मथनाशिपुर में में मिट्टी के कटाव के कारण लगभग 80,000 लोग विस्थापित हुए। जबकि राज्य में सिर्फ एक बड़ी बाढ़ की घटना दर्ज की गई थी। वहीं, असम दूसरा सबसे अधिक प्रभावित राज्य है, जहां छह बाढ़ की घटनाओं में 42,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। इसी तरह त्रिपुरा में भी हालत गंभीर रहे, जहां 10 बाढ़ की घटनाओं में 21,000 से ज्यादा लोगों बेघर हो गए। भारत अपनी विशिष्ट भू-जलवायु परिस्थितियों के कारण प्राकृतिक आपदाओं के प्रति पारंपरिक रूप से संवेदनशील रहा है। बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप और भूस्खलन यहां बार-बार होने वाली घटनाएं रही हैं। लगभग 60 फीसदी भूभाग विभिन्न तीव्रता के भूकंपों से ग्रस्त है। 40 मिलियन हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र बाढ़ से ग्रस्त है, कुल क्षेत्रफल का लगभग 8 फीसदी चक्रवातों से ग्रस्त है और 68 फीसदी क्षेत्र सूखे की चपेट में है।

1990-2000 के दशक में हर साल औसतन लगभग 4344 लोगों ने अपनी जान गंवाई और लगभग 30 मिलियन लोग आपदाओं से प्रभावित हुए। निजी, सामुदायिक और सार्वजनिक संपत्तियों का नुक्सान बहुत बड़ा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव लाया है। सरकार ने राष्ट्रीय आपदा ढांचे को एक रोडमैप में तब्दील किया है, जिसमें केंद्र सरकार ने सम्पूर्ण आपदा प्रबंधन चक्र में तैयारी, प्रतिक्रिया, क्षमता निर्माण, पुनर्प्राप्ति एवं पुनर्निर्माण तथा नवीन पद्धतियों, प्रौद्योगिकी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रयोग द्वारा न्यूनीकरण जैसे सभी मुद्दों के समाधान के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है। पिछले दशक के दौरान भारत ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण में महत्वपूर्ण प्रगति की है।

वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई विनाशकारी सुनामी के लगभग 2 दशक बाद, जिसमें 230,000 से अधिक लोगों की जान चली गई थी, भारत ने अपने आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण को बदल दिया है। आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 के माध्यम से, इसने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल की स्थापना की। 2004 की सुनामी के कहर से बुरी तरह प्रभावित भारत ने वैज्ञानिक प्रगति, पूर्व चेतावनी प्रणाली और समुदाय-नेतृत्व वाले कार्यक्रमों और योजनाओं के ज़रिए अपनी आपदा तैयारियों को काफी मजबूत किया है। यूएनडीआरआर द्वारा भारत को विश्व के उन पांच देशों में से एक माना गया है जो तटीय क्षेत्रों के लिए खतरे, वहां आने वाली लहरों की ऊंचाई का पूर्वानुमान लगा सकता है तथा भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (आईटीईडब्ल्यूसी) के माध्यम से ’वास्तविक समय’ में संवेदनशील इमारतों की पहचान कर सकता है, ताकि सम्पूर्ण हिंद महासागर क्षेत्र को पूर्व चेतावनी दी जा सके।

इस समय भारत की पूर्व चेतावनी प्रणाली दुनिया की सर्वाधिक विश्वसनीय प्रणालियों में से एक है, जो न केवल देश के भीतर, बल्कि श्रीलंका, बंगलादेश, म्यांमार और थाईलैंड समेत एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के कई देशों को सहायता प्रदान करती है। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की 16 बटालियनें और 28 क्षेत्रीय प्रतिक्रिया केन्द्र विभिन्न आपदाओं से निपटने के लिए अच्छी तरह सुसज्जित और प्रशिक्षित हैं। वैश्विक स्तर पर भारत आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डीआरआर) में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक आपदा प्रबंधन को मजबूत करने के लिए पहचान (रिकग्निशन) और सुधार (रिफॉर्म) बहुत जरूरी है। ‘पहचान’ का मतलब ये समझना है कि आपदा की आशंका कहां है और वह भविष्य में कैसे घटित हो सकती है तथा सुधार का मतलब है कि ऐसा तंत्र विकसित किया जाए, जिसमें आपदा की आशंका कम हो जाए। इसके लिए हमें दो स्तर पर काम करना होगा। पहला, आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों को स्थानीय भागीदारी पर सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए और दूसरा, हमें आपदाओं से जुड़ें खतरों से लोगों को जागरूक करना होगा।

आपदा नियोजन के बेहतर प्रबंधन के लिए पारंपरिक आवास और नगर नियोजन प्रक्रिया को भविष्य की प्रौद्योगिकी से समृद्ध किया जाना चाहिए। वहीं स्थानीय अवसंरचना की प्रतिरोधी क्षमताओं का आकलन वक्त की मांग है। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि यहां सब एक दूसरे पर जिम्मेवारी डालते रहे हैं। राज्य सरकार को भी अपना आपदा प्रबन्धन तंत्र मजबूत और प्रभावी बनाना चाहिए। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक चरम मौसम और प्राकृतिक आपदाओं के कारण विश्व भर में, एक अरब से अधिक लोग विस्थापित हो सकते हैं। इस वजह से इन जोखिमों से निपटने के लिए समय पूर्व तैयारी, चेतावनी व कार्रवाई को अहम माना गया है। इन्हीं चुनौतियों के मद्देनजर भारत में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय पिछले दो वर्षों से रिलायंस फाउंडेशन के साथ मिलकर आपदाओं से बचाव के लिए आरम्भिक चेतावनी व समय-पूर्व तैयारियों पर काम कर रहा है, ताकि आपदा जोखिम प्रबंधन को मजबूती दी जा सके।

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