दिसानायके की संतुलित दिशा
भारत और श्रीलंका के बीच बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी सम्पर्क…
भारत और श्रीलंका के बीच बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी सम्पर्क की विरासत है। दोनों देशों के मध्य 2500 वर्षों से अधिक पुराना संबंध है। श्रीलंका रणनीतिक रूप से हिन्द महासागर में स्थित है। इसलिए भारत के िलए भी यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। श्रीलंका की प्रजातियां भारतीय मूल की हैं, फिर भी स्वतंत्रता के बाद जातियता को लेकर जो मतभेद उपजे उससे दोनों के मध्य तनाव की स्थिति कायम हो गई। श्रीलंका में पीढ़ियों से रहते आए तमिल नागरिकों ने अपने अधिकारों के लिए तमिल ईलम राज्य की मांग को लेकर संघर्ष शुरू किया, जिसके परिणाम स्वरूप 1976 से 2008 तक संघर्ष चलता रहा। तमिल और सिंहली दोनों पक्षों का नरसंहार हुआ। इसी संघर्ष के चलते भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को शहादत देनी पड़ी। लिट्टे नेता प्रभाकरण के मारे जाने के बाद संघर्ष शांत हुआ और श्रीलंका सरकार तमिलों को समान अधिकार देने को तैयार हो गई। हालांकि तमिल नागरिकों को पूरी तरह अधिकार दिए जाने को लेकर अभी भी बहुत कुछ अधूरा है। तब से लेकर न जाने कितना पानी नदियों में बह चुका है। उतार-चढ़ाव वाले संबंधों के बावजूद भारत ने हमेशा श्रीलंका की हर समय मदद की।
श्रीलंका में उपजे आर्थिक संकट के बाद हुए सत्ता परिवर्तन में अनुरा कुमारा दिसानायके राष्ट्रपति बने। दिसानायके वामपंथी नेता हैं और उन्हें चीन समर्थक माना जाता है। ऐसी आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि दिसानायके के सत्ता में आने से भारत के संबंध बिगड़ सकते हैं। यह भारत के लिए राहत की बात है कि राष्ट्रपति चुने जाने के बाद दिसानायके ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना। राष्ट्रपति दिसानायके ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की। इससे दोनों देशों के संबंधों में नई गति और ऊर्जा का सृजन हुआ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दिसानायके ने आश्वासन दिया कि उनका देश अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने देगा। श्रीलंका अपने यहां ऐसा कोई काम नहीं होने देगा जो भारत के हितों के लिए हानिकारक हो।
पीएम मोदी ने घोषणा की कि भारत और श्रीलंका के बीच इलेक्ट्रिक ग्रिड कनेक्टिविटी और मल्टी प्रोडक्ट पैट्रोलियम पाइप लाइन स्थापित करने पर काम किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत श्रीलंका के बिजली संयंत्रों को एलएनजी सप्लाई करेगा। पीएम मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि भारत ने श्रीलंका को 5 अरब डॉलर का ऋण और अनुदान दिया है। उन्होंने ऐलान किया कि श्रीलंका में रेलवे सिस्टम को बढ़ावा देने और इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने के लिए भारत आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा। साथ ही उन्होंने बताया कि श्रीलंका के 1500 सिविल सर्वेंट्स की ट्रेनिंग भारत में होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमने भारत और श्रीलंका के बीच रक्षा समझौते को अंतिम रूप देने का फैसला किया था। अब हम भारत और श्रीलंका के बीच एक नई फेरी सर्विस शुरू करेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि श्रीलंका सरकार तमिल लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेगी। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि अगले साल से जाफना और पूर्वी प्रांत के विश्वविद्यालयों में भारत सरकार की तरफ से 200 छात्रों को मासिक छात्रवृत्ति दी जाएगी। इतना ही नहीं भारत श्रीलंका में आधार कार्ड बनाने के प्रोजैक्ट में भी मदद करेगा। दोनों नेताओं ने मछुआरों के मुद्दों पर भी चर्चा की और तय किया कि इस मुद्दे को मानवीय नजरिये से हल किया जाए। भारत के लिए श्रीलंका के राष्ट्रपति का यह आश्वासन कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत की सुरक्षा के खिलाफ किसी को नहीं करने देंगे, काफी महत्वपूर्ण है। यह वक्तव्य उस समय आया है जब चीन भारत के खिलाफ अपने मिशन हिन्द महासागर को आक्रामक ढंग से आगे बढ़ा रहा है।
दरअसल श्रीलंका में चीन के बढ़ते दखल से भारत की चिंता बढ़ी हुई है। दो साल पहले जब श्रीलंका कर्ज चुकाने में विफल रहा था तो चीन ने उसके हम्बनटोटा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया था। चीन ने यहां पर अपने नौसैनिक निगरानी और जासूसी जहाज को खड़ा किया। अगस्त 2022 में चीनी नौसेना के जहाज युआन वांग 5 ने दक्षिणी श्रीलंका के हम्बनटोटा में डॉक किया। इसके बाद दो चीनी जासूसी जहाजों को नवंबर 2023 तक 14 महीने के भीतर श्रीलंका के बंदरगाहों में डॉक करने की अनुमति दी गई थी। चीनी शोध जहाज 6 अक्तूबर, 2023 में श्रीलंका पहुंचा और उसने कोलंबो बंदरगाह पर डॉक किया। इस जहाज के डॉक करने का उद्देश्य समुद्री पर्यावरण पर रिसर्च था। मगर भारत और अमेरिका ने इसे लेकर चिंता जताई थी। नई दिल्ली ने आशंका जताई थी कि चीनी जहाज जासूसी जहाज हो सकते हैं और कोलंबो से ऐसे जहाजों को अपने बंदरगाहों पर डॉक करने की अनुमति न देने का आग्रह किया था। भारत द्वारा चिंता जताए जाने के बाद श्रीलंका ने जनवरी में अपने बंदरगाह पर विदेशी शोध जहाजों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब श्रीलंका और भारत के बीच हुए रक्षा समझौते के बाद श्रीलंका ने अपना रुख साफ किया है।
दिसानायके जानते हैं कि श्रीलंका को आर्थिक संकट से बाहर निकालने में भारत ने न केवल 4 अरब डॉलर की मदद की थी बल्कि श्रीलंका को खाद्य सामग्री भी पहुंचाई थी। दिसानायके चाहकर भी भारत से संबंध नहीं बिगड़ सकते क्योंकि इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंच सकती है। दिसानायके को श्रीलंका की जनता ने अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के कारण सत्ता सौंपी है। श्रीलंका पैट्रोिलयम और खाद्य सामग्री और अन्य कई उत्पादों को लेकर भारत पर ही निर्भर है। हालांकि चीन को नजरअंदाज करना दिसानायके के लिए मुश्किल है लेकिन भारत के साथ रिश्ते बेहतर करना उनकी जरूरत है। फिलहाल श्रीलंका के आश्वासन से चीन का पूरा प्लान खराब होता दिखाई दे रहा है। दिसानायके ने संतुलित दिशा को अपनाया है, जो उनके अपने हित में भी है।