दीपावली और अर्थतंत्र
दिवाली का त्योहार जैसे-जैसे करीब आ रहा है, पूरे देश के बाजारों में रौनक भी बढ़ती जा रही है। सजे-धजे बाजारों में लोगों की भीड़, खरीदारी का उत्साह और स्वदेशी उत्पादों की चमक इस साल की दिवाली को खास बना रही है। अमेरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 100 प्रतिशत टेरिफ लगाए जाने का भी कोई प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा।
इस बार दिवाली पर बिक्री 4.75 लाख करोड़ रुपये के ऐतिहासिक आंकड़े को पार करने जा रही है, जो पिछले एक दशक में सबसे मजबूत त्योहारी सीजन माना जा रहा है। भारत त्योहारों का देश है और इन्हीं में से सबसे बड़ा पर्व है दीपावली। यह केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। दीपावली को “भारत की सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधि का मौसम” भी कहा जाता है, क्योंकि इस दौरान उपभोग, निवेश और व्यापार सभी अपने चरम पर पहुंचते हैं।
जीएसटी दरों में की गई कमी और 'स्वदेशी' और 'वोकल फॉर लोकल' अभियान ने व्यापारी समुदाय के लिए बड़ा बदलाव लाया है। 'यह दिवाली केवल घरों को नहीं, बल्कि देश के लाखों व्यापारियों, निर्माताओं, कारीगरों और सेवा क्षेत्र से जुड़े लोगों के जीवन को भी रोशन करेगी।' उपभोक्ताओं का उत्साह देखते ही बन रहा है, हर वर्ग के लोग अपनी क्षमता के अनुसार खरीदारी कर रहे हैं। यह त्यौहार भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था की असली ताकत को उजागर कर रहा है, जहां करोड़ों परिवार छोटे-बड़े स्तर पर खर्च कर रहे हैं, जिससे हर व्यापारी वर्ग को लाभ मिल रहा है। जीएसटी की दरों में कटौती का पूरा असर दिखे उससे पहले सितंबर में खुदरा महंगाई दर में बड़ी कमी आई है। सितंबर में खुदरा महंगाई दर गिरकर आठ साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। सरकार की ओर से सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर में खुदरा महंगाई दर 1.54 फीसदी पर आ गई। इससे पहले जून 2017 में महंगाई दर इस स्तर पर थी।
खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में गिरावट की वजह से खुदरा मंहगाई दर कम हुई है। इससे पहले अगस्त में खुदरा महंगाई 2.07 फीसदी रही थी। गौरतलब है कि महंगाई के आकलन करीब 50 फीसदी हिस्सा खाने पीने की चीजों का होता है। सितंबर के महीने में खाने पीने की चीजों की महंगाई महीने दर महीने के आधार पर माइनस 0.64 से घट कर माइनस 2.28 फीसदी हो गई। सितंबर महीने में ग्रामीण महंगाई दर 1.69 से घट कर 1.07 फीसदी और शहरी महंगाई 2.47 से घटकर 2.04 फीसदी पर आ गई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी संकेतक बेहतर भविष्य की ओर इशारा कर रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.9 फीसदी कर दिया है, जो देश की आर्थिक मजबूती का ही प्रमाण है। इसने यह बदलाव मुख्य रूप से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मिली मजबूत आर्थिक वृद्धि और घरेलू मांग में आयी तेजी के कारण किया है। फिच के ‘ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक सितंबर’ रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी-मार्च की तिमाही में 7.4 प्रतिशत की वृद्धि दर के मुकाबले अप्रैल-जून में विकास दर बढ़कर 7.8 फीसदी हो गयी, जो उसके जून में लगाये गये 6.7 प्रतिशत के अनुमान से कहीं अधिक है। भारतीय अर्थव्यवस्था में गति बनी हुई है, पीएमआई सर्वे और औद्योगिक उत्पादन इसकी ओर इशारा करते हैं। गौरतलब है कि व्यापारिक गतिविधियों का सूचक समग्र पीएमआइ सूचकांक अगस्त में 17 वर्ष के शिखर पर पहुंच गया, जबकि औद्योगिक उत्पादन चार महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया। जबकि ट्रंप द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था को मृत बताये जाने के बाद मजबूत अर्थव्यवस्था और विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन का हवाला देते हुए स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने 18 साल बाद भारत की रेटिंग बढ़ायी है। उल्लेखनीय है कि आईएमएफ, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि ने भी अपनी रिपोर्टों में भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के बने रहने को रेखांकित किया है।
दिवाली को पारंपरिक रूप से सोना-चांदी खरीदने का शुभ अवसर माना जाता है। ऐसे में त्योहार से पहले कीमतों में यह अप्रत्याशित वृद्धि ग्राहकों के लिए चिंता का विषय बन गई है। बाजार विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में भी यदि वैश्विक परिस्थितियां ऐसी ही बनी रहीं तो चांदी और सोने के दामों में और बढ़ोतरी संभव है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित टैरिफ (शुल्क) नीतियों और अमेरिकी फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दरों में की गई कटौती के कारण वैश्विक बाजार में निवेशक सुरक्षित निवेश के विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। इसका सीधा असर चांदी और सोने की कीमतों पर पड़ा है।
चांदी का बड़े पैमाने पर औद्योगिक इस्तेमाल होता है। इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल और औषधीय उपकरणों में इसकी खपत बढ़ने से मांग में तीव्र वृद्धि हुई है। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, चांदी की आपूर्ति में असंतुलन के कारण इसका स्टॉक घट गया है। इससे चांदी खरीदने के लिए ग्राहकों को 8 दिन पहले ऑर्डर देना पड़ रहा है। आर्थिक अनिश्चितता के इस दौर में निवेशक सुरक्षित और स्थिर माने-जाने वाले परिसंपत्तियों जैसे कि सोना और चांदी की ओर रुख कर रहे हैं। इसके चलते मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। त्योहारी सीजन में सोने और चांदी की कीमतों ने अभी तक के सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। एक बार फिर सोने और चांदी की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। खासकर चांदी की कीमतों ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है, जिसके बाद ज्वेलरी कारोबार से जुड़े कारोबारियों ने इसे भविष्य के सोने का नाम दिया है। साथ ही सोने की बढ़ती कीमतों के बीच अब उपभोक्ताओं का रुझान सिल्वर ज्वेलरी और खासकर फैशन ज्वेलरी की मांग बढ़ गई है।
भारत में सोने और चांदी को गहनों के अलावा इंवेस्टमेंट के तौर पर भी देखा जाता है। पिछले कुछ साल से विश्व में युद्ध के हालात बने हुए हैं। ऐसे में इस समय इन्वेस्टर्स को सोने और चांदी के अलावा अन्य कोई ऐसा रास्ता दिखाई नहीं दे रहा जो निवेश के लिए बेहतर हो। ऐसे में पिछले कुछ सालों से इन दोनों कीमती धातुओं में निवेश तेजी से बढ़ा है। लोगों के पास जो सरप्लस पैसा है उसके निवेश के लिए शेयर बाजार से सुरक्षित इस समय गोल्ड और सिल्वर लग रहा है। सोना और चांदी मध्यम वर्ग से दूर होता जा रहा है। फिर भी इस बार की दिवाली सभी के लिए खुशगवार साबित हो रही है।