ड्रैगन-हाथी फ्रैंडशिप ?
1950 के दशक में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा…
1950 के दशक में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया था जो भारत और चीन के मध्य मैत्री का प्रतीक था लेकिन 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर हमारी पीठ में छुरा घोपा तो यह नारा अर्थहीन हो गया। युद्ध ने भारत के जनमानस में चीन के प्रति अविश्वास की भावनाओं को इतना प्रबल कर दिया कि आज तक हम 62 का युद्ध नहीं भूल पाए। सीमा पर बार-बार गतिरोध के चलते भी दोनों देशों के रिश्तों में खटास पैदा हुई। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख के टकराव के पांच साल बाद दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली और दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हुआ। चीन की पहचान ऐसे देश के तौर से होती है जो अभी आप से हाथ मिलाएगा तो उसी पल आप पर वार करने के लिए दूसरे हाथ में तलवार रखेगा। दरअसल चीन भारत को अपने बराबर मानने के लिए तैयार ही नहीं हो पा रहा था। सीमा विवाद ऐसा मुद्दा है जिस पर भारत और चीन हमेशा भिड़ते रहे हैं लेकिन जब बात आर्थिक रिश्तों की आती है तो हालात बिल्कुल विपरीत नजर आते हैं। भारत और चीन एक-दूसरे के साथ लाखों-करोड़ाें का व्यापार करते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने भारत, चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों पर टैरिफ लगाने का ऐलान कर बड़ी चुनौती पेश कर दी है। भारत इस समय बड़ी आर्थिक ताकत बन चुका है। आज जिस प्रकार आर्थिक वैश्वीकरण का स्वरूप बदल रहा है और अमेरिकी चुनौतियों को देखते हुए नए समीकरण बन रहे हैं। ऐसे में दो दुश्मन देश भी दोस्त बन जाते हैं। अमेरिका से झटका खाने के बाद चीन ने भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बीजिंग और नई दिल्ली से एक साथ काम करने और आधिपत्यावाद और शक्ति की राजनीति का विरोध करने में अग्रणी भूमिका निभाने का आह्वान किया है। उन्होंने ड्रैगन और हाथी की कहानी भी समझाई। उन्होंने ड्रैगन (चीन) और हाथी (भारत) का उदाहरण देते हुए कहा कि दोनों देशों का साथ मिलकर चलना ही सबसे सही विकल्प है। वांग यी ने कहा कि चीन और भारत को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, न कि कमजोर करना चाहिए। एक-दूसरे के साथ काम करना चाहिए, एक-दूसरे के खिलाफ नहीं होना चाहिए। यही वो रास्ता है जो दोनों देशों और उनके लोगों के हित में है। वांग यी ने कहा कि जब चीन और भारत साथ आते हैं तो दुनिया में लोकतंत्र मजबूत होता है और विकासशील देशों को ताकत मिलती है।
उन्होंने यह भी ऐलान किया कि यदि एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आपस में मिल जाएं तो अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों का लोकतांत्रिकरण तथा ग्लोबल साऊथ का विकास और सुदृढ़ीकरण एक उज्ज्वल भविष्य होगा। भारत ने लगातार इस बात की कोशिश की है कि दोनों देश ‘‘बीती ताहिर बिसार दे’’ और चीन से संबंधों को मजबूत बनाया जाए लेकिन हर बार उसकी विस्तारवादी नीतियां आड़े आती रही हैं। भारत पहले भी कई बार कह चुका है कि जब तक दो पड़ोसी देश हाथ नहीं मिलाते तब तक एशियाई शताब्दी नहीं आएगी। भारत और चीन का हाथ मिलाना दोनों देशों के हित में है। विशेषज्ञ लगातार कहते रहे हैं कि अगर भारत, चीन और रूस का त्रिकोण बन जाए और तीनों देश आपसी सहयोग को आर्थिक क्षेत्र से लेकर सामरिक क्षेत्र में मजबूत कर लें तो फिर अमेरिका भी इसका मुकाबला नहीं कर पाएगा। रूस, भारत, चीन रणनीतिक त्रिकोण के विचार को पहली बार रूसी विदेश मंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने दिया था। रूस और भारत के बीच ऐतिहासिक मित्रता है जो 1991 में शीत युद्ध की समाप्ति से भी पहले शुरू हुई थी। भारत के लिए रूस अमेरिकी वर्चस्व के प्रति एक प्रतिपक्ष के रूप में कार्य करता है। अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान भारत ने रूस से तेल खरीदा और एस 400 मिसाइल प्रणाली भी खरीदी। युद्ध के दौरान रूस और चीन के संबंध एक समान दुश्मन की पहचान के साथ नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए। रूस और चीन दोनों को अमेरिका की दादागिरी का मुकाबला करना था। रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों ने उसे बीजिंग की गोद में धकेल दिया है। यूक्रेन युद्ध के दौरान चीन ने रूस का समर्थन किया।
अब सवाल है कि भारत और चीन एक साथ आ जाएं तो क्या होगा? भारत और चीन का साथ आना दोनों मुल्कों के लिए जितना फायदेमंद है, उतना ही यह दुनिया के लिए भी है। दोनों मुल्कों के करीब आने से उनके बीच व्यापार और निवेश बढ़ेगा, जिसका फायदा भारतीय और चीनी लोगों को रोजगार के रूप में मिलेगा। दोनों देश आर्थिक रूप से और ताकतवर बन जाएंगे। भारत-चीन की दोस्ती से स्थानीय और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग बढ़ेगा। यूक्रेन, ताइवान जैसे मसलों को जल्द से जल्द सुलझाकर दुनिया में शांति स्थापित की जा सकेगी। भारत और चीन की दोस्ती का मतलब है कि एशिया के दो पावरहाउस एक-दूसरे से भिड़ना छोड़कर अपने विकास पर ध्यान देंगे। इस तरह एशिया में शांति आएगी और यहां समृद्धि होगी। साथ ही दुनिया को एक स्थिर और बहुध्रुवीय दुनिया मिलेगी, जहां ताकत किसी एक मुल्क के पास नहीं, बल्कि सभी के पास होगी। अब सवाल यह है कि भारत चीन पर कितना विश्वास करे, भारत के पुराने अनुभव काफी कड़वे रहे हैं। चीन की दोस्ती की पेशकश पर भारत को सचेत रहकर प्रतिक्रिया देनी होगी। यह सही है कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं रहा, अब वह काफी शक्तिशाली देश है। यह बात सच है कि संवेदनशील मुल्क को अपना अतीत नहीं भूलना चाहिए लेकिन यह बात उतनी ही सच है कि युग के साथ-साथ युग का धर्म भी बदल जाता है। विश्व में अमेरिका की दादागिरी दुर्भाग्यपूर्ण है, इसलिए ड्रैगन और हाथी की मैत्री दुनिया के हित में है।