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द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति होना अन्त्योदय ​की मिसाल...

किसी ने सपने में भी नहीं सोचा ​था कि भारत की पहली आदिवासी महिला 15वीं राष्ट्रपति होंगी।

02:00 AM Jul 24, 2022 IST | Kiran Chopra

किसी ने सपने में भी नहीं सोचा ​था कि भारत की पहली आदिवासी महिला 15वीं राष्ट्रपति होंगी।

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति होना अन्त्योदय ​की मिसाल
किसी ने सपने में भी नहीं सोचा ​था कि भारत की पहली आदिवासी महिला 15वीं राष्ट्रपति होंगी। यह भारत के लोकतंत्र की पहचान है। यही नहीं यह दीनदयाल उपाध्याय जी के अन्त्योदय को बल देता, सार्थक करता सारी दुनिया के सामने एक बेमिसाल उदाहरण है कि सदियों से हाशिये पर पड़े आदिवासी समाज की एक महिला विराजमान होगी। ओडिशा के आदिवासी बहुल इलाके के एक छोटे से गांव में जन्मी श्रीमती मुर्मू ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन में जिस प्रकार राजनीति में प्रवेश करके भारत की प्रजातांत्रिक प्रणाली को भी सबको दर्शा दिया हैै।
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यही नहीं हमारे यहां महिलाओं का सम्मान बहुत ऊंचा है, जहां नारी को हर रूप में देखा गया है। भारतीय नारी अपनी गुणवत्ता यानी ममता, सहनशीलता, त्याग, संस्कार, सभ्यता, कर्मठ महिला के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जाती है। द्रौपदी मुुर्मू सही मायने में भारतीय महिला की पहचान हैं।
 इतने बड़े पद पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावों से पहले नामांकन दायर करते समय उनके प्रस्तावक बनते हैं तो यही से द्रौपदी मुर्मू के व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
उनकी बेटी इतिश्री मुर्मू विवाहित है और दिल्ली में ही रहती है। सच बात यह है कि मुर्मू जी के राष्ट्रपति बनने के बाद राजनीति में अब यह चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है कि महिलाओं को जो 33 प्रतिशत आरक्षण की बात की जाती है उसे अब लोकसभा में अमलीजामा पहना ही दिया जाये तो अच्छा है। लोकतंत्र के लिए यह एक सुखद संकेत होगा। देश की महिला जब सड़क से संसद तक, जमीन से आसमान तक, ऑटो, बस, विमान, ट्रेन, मेट्रो और अंतरिक्ष तक अपने कदम रख सकती है तो लोकतांत्रिक मूल्यों को और मजबूत बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को जितनी जल्दी हो सके लागू कर ही दिया जाये तो अच्छा है। आज की तारीख में कॉरपोरेट में महिलाएं तरक्की कर रही हैं। बड़े-बड़े उद्योगों में जहां महिलाओं की उपस्थिति 20-30 प्रतिशत है वहां अच्छा अनुशासन और व्यवस्था देखने को मिल रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अनेक इंडस्ट्रीज में महिला उद्यमियों को आगे लाने के लिए 20 से 30 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था महिलाओं के लिए आरक्षित की जा रही है। इसके पीछे तर्क यह है कि महिलाएं ऑफिस कामकाज में ज्यादा अच्छा रिजल्ट देती हैं। नर्सरी स्कूलों से लेकर कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज तक महिलाओं का परफार्मेंस पुरुषों से आगे ही है। दसवीं और बारहवीं के सीबीएसई के अभी हाल ही के परिणाम देख लीजिए उसमें भी हर बार की तरह लड़कियों की सफलता दर लड़कों से ज्यादा है।
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डिबेट चल रहे हैं कि यद्यपि देश में महिला सशक्तिकरण है परंतु फिर भी राजनीतिक तौर पर महिलाओं को उस 33 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं मिला जिसके समर्थन में राजनीतिक पार्टियां अपनी आवाज उठाती रही हैं। महिलाओं को राजनीति में लाने के लिए इस व्यवस्था को लागू करना चाहिए और यह भी कहा जा रहा है कि मुर्मू जी के राष्ट्रपति बनने से अब आदिवासी और दूर दराज के पिछड़े हुए इलाकों में लड़कियों की शिक्षा को और ज्यादा प्रमोशन मिलेगी। मैं इसका स्वागत करती हूं। मैं स्वयं इस चीज की आवाज उठाती रही हूं कि पिछड़े हुए इलाकों में लड़कियों की शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए ज्यादा से ज्यादा गर्ल्स स्कूल कॉलेज खोले जाने चाहिए। हालांकि मोदी सरकार ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान भी चलाए और यह पूरे देश में एक क्रांतिकारी कदम सिद्ध हुआ। मुर्मू जी का राष्ट्रपति बनना अपने आपमें एक क्रांति है। इस क्रांति के लिए उन्हें प्रेरित किया गया, उन्हें पहचाना गया तभी उन्होंने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की। पूरा देश आज उन्हें नमन करता है। यह कलम उन्हें सैल्यूट करती है।
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Kiran Chopra

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