DRDO और नौसेना ने किया MIGM माइन्स का सफल परीक्षण
माइन्स परीक्षण में DRDO और नौसेना की सफलता
डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने स्वदेशी मल्टी-इन्फ्लुएंस ग्राउंड माइन (MIGM) का सफल परीक्षण किया, जो भारत की पानी के भीतर युद्ध क्षमताओं को बढ़ाएगा। यह प्रणाली दुश्मन के जहाजों को निशाना बनाने के लिए डिज़ाइन की गई है और जल्द ही नौसेना में शामिल होगी। “एमआईजीएम कई सेंसर से लैस है, जो समुद्री जहाजों द्वारा उत्पन्न ध्वनि, चुंबकीय क्षेत्र, दबाव आदि जैसी चीजों की निगरानी करता है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय नौसेना ने स्वदेशी रूप से विकसित मल्टी-इन्फ्लुएंस ग्राउंड माइन (MIGM) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है, जो भारत की पानी के भीतर युद्ध क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कई सेंसर का उपयोग करके दुश्मन के जहाजों का पता लगाने और उन्हें निशाना बनाने के लिए डिज़ाइन की गई एमआईजीएम प्रणाली को जल्द ही भारतीय नौसेना में शामिल किया जाएगा। एक बार तैनात होने के बाद, यह भारतीय समुद्री क्षेत्र में दुश्मन के जहाजों और पनडुब्बियों की घुसपैठ के खिलाफ एक शक्तिशाली निवारक के रूप में कार्य करेगा।
#WATCH | DRDO (Defence Research and Development Organisation) and Indian Navy successfully conducted validation trial of Multi-Influence Ground Mine. This system will further enhance undersea warfare capabilities of Indian Navy.
(Video Source: DRDO) pic.twitter.com/tnaASlhpvt
— ANI (@ANI) May 5, 2025
अंडर वाटर माइन का सफल परीक्षण
यह परीक्षण भारत के महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रयास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसके अलावा यह पानी के नीचे के खतरों के खिलाफ समुद्री क्षेत्रों को सुरक्षित करने और नौसेना की क्षमता बढ़ाने में कारगर साबित होगा। डीआरडीओ ने इस परीक्षण का एक वीडियो भी साझा किया है, जिसमें पानी के नीचे विस्फोट होते हुए दिखाया गया है। इस परीक्षण पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी बयान दिया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ और नौसेना को बधाई दी है। राजनाथ सिंह ने कहा, “यह प्रणाली भारतीय नौसेना की पानी के नीचे युद्ध क्षमताओं को और बढ़ाएगी।”
मल्टी-इन्फ्लुएंस ग्राउंड माइन क्या है?
इस बारे में भारत डायनेमिक्स लिमिटेड ने कहा, “एमआईजीएम कई सेंसर से लैस है, जो समुद्री जहाजों द्वारा उत्पन्न ध्वनि, चुंबकीय क्षेत्र, दबाव आदि जैसी चीजों की निगरानी करता है। विशाखापत्तनम और अपोलो माइक्रोसिस्टम्स लिमिटेड और भारत डायनेमिक्स इसके उत्पादन में साझेदार हैं।” आपको बता दें कि पानी के नीचे की खदानें कई शताब्दियों से नौसैनिक युद्ध का केंद्र रही हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश, अमेरिकी, जापानी और जर्मन समुद्री मार्गों पर खदानें बिछाते थे।
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