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कैनेडा में ‘ड्रग मनी’ से खालिस्तानी उग्रवाद को बढ़ावा

04:20 AM Dec 04, 2025 IST | Sudeep Singh
कैनेडा में ‘ड्रग मनी’ से खालिस्तानी उग्रवाद को बढ़ावा

पिछले लम्बे समय से कैनेडा में खालिस्तानी गतिविधियों में निरन्तर बढ़ौतरी देखी जा रही है जिनका मुख्य मकसद कैनेडा की धरती पर बैठकर भारत के खिलाफ जहर उगलना, भारत में दहशत का माहौल पैदा करना है जिसके लिए उन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सियों से हर तरह की संभव सहायता मिलती है और उसी के बलबूते पर वह अपनी गतिविधियों को अन्जाम देते हैं। कैनेडा सरकार द्वारा भी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई न किए जाने से इनके मनसूबे और दृढ़ होते चले जा रहे हैं और अब तो यह भी देखा जा रहा है कि ड्रग मनी खालिस्तानी उग्रवाद को बढ़ावा देने में अहम भूमिका अदा कर रही है। साल 2007 से अब तक सिर्फ ब्रिटिश कोलंबिया में ही 200 से अधिक गैंग-संबंधी हत्याएं पंजाबी-कनाडाई गैंगों के बीच हुई हैं। सिख फार जस्टिस जैसी अनेक संस्थाएं कनाडा में रहकर खालिस्तानी गतिविधियों को आगे बढ़ा रहे हैं।
कनाडा दुनिया के सबसे बड़े सिख प्रवासी समुदायों में से है जहां 8 लाख की आबादी केवल सिखों की है जिन्होंने अपनी मेहनत और ईमानदारी से कार्य करते हुए कनाडा को विकास की राह पर अग्रसर किया है। प्रवासी सिखों ने ट्रकिंग, खेती, निर्माण और छोटे व्यवसायों के माध्यम से देश को समृद्ध किया वहीं पिछले दो दशकों में पंजाबी-कनाडाई समुदाय के भीतर एक छोटा लेकिन हिंसक गिरोह अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध में गहराई से जुड़ गया जिनके द्वारा कोकीन, मेथामफेटामाइन और फेंटानिल तस्करी से होने वाला मुनाफा सिर्फ बंदूकें और लग्जरी कारें ही नहीं खरीद रहा, बल्कि इस पैसे से खालिस्तानी समर्थकों की रैलियों, जनमत-संग्रहों और उग्रवादियों के कानूनी बचाव पर खर्च होता देखा जा रहा है। 2022 के दौरान संयुक्त कनाडा-अमेरिका अभियान में 25 मिलियन डॉलर मूल्य की ड्रग्स जब्त की गईं। आरोपित 5 व्यक्तियों में से 3 पंजाबी-कनाडाई थे जो ट्रकिंग कंपनियों को आवरण की तरह इस्तेमाल कर रहे थे। 2024 में फाल्कलैंड, बीसी में एक सुपर-लैब का भंडाफोड़ किया गया जो 500 मिलियन डॉलर मूल्य की सिंथेटिक ड्रग्स तैयार करने में सक्षम थी। फरवरी 2025 पील क्षेत्रीय पुलिस ने 479 किलोग्राम कोकीन जब्त की जो अमेरिका से आने वाले ट्रक ट्रेलरों में छिपाई गई थी। आरोपित 9 लोगों में से 6 इंडो-कनाडाई थे। यह घटनाएं अलग-थलग नहीं हैं। दोनों देशों के कानून-प्रवर्तन स्रोतों का कहना है कि पश्चिमी कनाडा में प्रवेश करने वाली कोकीन और फेंटानिल की एक महत्वपूर्ण मात्रा अब उन नेटवर्कों से होकर गुजरती है जिन पर पंजाबी-कनाडाई संगठित अपराध समूहों का एक उपसमूह हावी है।
इस प्रकार की घटनाओं में निरन्तर बढ़ौतरी होती दिख रही है। भारतीय राजनयिकों और कुछ कनाडाई पुलिस अधिकारियों का आरोप है कि इस आपराधिक कमाई का एक हिस्सा डायस्पोरा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को फंड कर रहा है। हालांकि किसी कनाडाई एजेंसी ने सीधे, संगठित धन-प्रवाह की सार्वजनिक पुष्टि नहीं की है लेकिन कई दस्तावेजीकृत मामलों ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अगर वाकय ही इस बात में रत्तीभर भी सच्चाई है तो यह समूची सिख कौम को शर्मसार करने वाली है। कनाडाई पुलिस और प्रशासन को चाहिए कि ऐसी घटनाओं को अन्जाम देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब यह लोग कनाडा के लिए भी घातक सिद्ध हो सकते हैं।
श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की गिरती साख के लिए जिम्मेवार कौन ?
सिख पंथ में श्री अकाल साहिब को सर्वोच्च माना जाता है जिसकी स्थापना छठे गुरु हरिगोबिन्द साहिब के द्वारा की गई थी और इसके जत्थेदार कोई भी रहे हों समूचा पंथ उनके आदेश को सिर झुकाकर मानता आया है। श्री अकाल तख्त साहिब के आदेश के आगे महाराजा रणजीत सिंह ने भी सिर झुकाया और यहां से उन्हें शरीर पर कोड़े मारने तक का आदेश उस समय के जत्थेदार साहिब के द्वारा सुनाया गया था और बिना किसी हिचकिचाहट के अपने शरीर पर कोड़े खाए भी। स. बूटा सिंह, ज्ञानी जैल सिंह, सुरजीत सिंह बरनाला, जत्थेदार संतोख सिंह आदि अनेक राजनीतिक शख्सीयतों ने भी श्री अकाल तख्त साहिब के आगे शीश झुकाया मगर पिछले कुछ समय से जिस प्रकार राजनीतिक लोगों के द्वारा अपनी राजनीति हेतु मन मुताबिक फैसले करवाए जाने लगे और तख्त पर विराजमान जत्थेदारों के द्वारा श्री अकाल तख्त साहिब की मर्यादा और वर्चस्व को नजरअंदाज कर अपने आकाओं को खुश करने हेतु बिना वजह छोटी-छोटी बात पर हुक्मनामे जारी किये जाने लगे तो आम सिखों में श्री अकाल तख्त साहिब की महानता दिन-प्रतिदिन कम होने लगी। डेरा सच्चा सौदा गुरमीत राम रहीम के द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह के समान्तर पोशाक पहनकर किए अपराध के लिए उन्हें बिना श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश हुए माफीनाम दे दिया गया। अगर किसी जत्थेदार ने सिख मर्यादा और परंपरा को आगे कर अकाली नेताओं को कटघरे में खड़ा करने की हिम्मत दिखाई तो उन्हें तुरन्त जत्थेदारी के पद से ना सिर्फ हटाया गया बल्कि उन पर कई तरह के ऐसे आरोप लगाए गए जिसे सुनकर कोई भी शर्मसार हो जाए। अब जब सिख पंथ की नुमाईंदगी करने वाले अकाली दल के नेताओं के द्वारा जत्थेदार के प्रति ऐसी सोच रखी जाएगी, उनके लिए इस तरह की शब्दावली का प्रयोग किया जाएगा तो अन्य लोगों के द्वारा जत्थेदार का सम्माान कैसे किया जा सकता है। इसलिए आज जो कोई भी उठता है जत्थेदार के पद पर बैठे इन्सान से तरह-तरह के सवाल करने लगता है। ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक राजनीतिक पार्टियों के लोग जत्थेदारों को धर्म गुरु मानने के बजाए दिहाड़ीदार मुलाजिम समझते रहेंगे। आज तक किसी अन्य धर्म में ऐसा नहीं देखा गया कि उन्हांेने अपने धर्म गुरु पर किसी तरह की बयानबाजी की हो, फिर सिख धर्म में ही ऐसा क्यों होता है, यह गंभीर चिन्तिन का विषय है। श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के द्वारा भी इस मुद्दे को उठाया गया है।

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