पहले 24 नहीं 21 घंटे का होता था दिन! scientists की नई स्टडी ने सबको चौंकाया?
दुनिया में अकसर सभी जानते हैं कि एक दिन में 24 घंटे होते हैं. वहीं पृथ्वी को अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में 86,400 सेकंड लगते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि करोड़ों साल पहले ऐसा नहीं था? वैज्ञानिकों (scientists) की एक रिसर्च के मुताबिक, करीब 60 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर एक दिन सिर्फ 21 घंटे का होता था.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी की घूर्णन गति (Rotation Speed) समय के साथ बदलती रहती है. यह हमेशा एक जैसी नहीं रही है. असल में, पृथ्वी की गति धीरे-धीरे कम हो रही है. वैज्ञानिकों के अनुसार, हर 100 साल में दिन की लंबाई लगभग 1.8 मिली सेकंड बढ़ रही है. इसी वजह से 60 करोड़ साल पहले दिन छोटे हुआ करते थे.
दिन छोटा या बड़ा क्यों होता है?
- पृथ्वी के घूमने की गति में बदलाव के कई कारण हो सकते हैं:
- चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण (Tidal Effects), जो पृथ्वी की गति को प्रभावित करते हैं.
- पृथ्वी के अंदरूनी हिस्सों यानी कोर और मैंटल के बीच संबंध.
- ग्रह पर बर्फ, महासागर और मौसम में बदलाव.
- भूकंप, ग्लेशियर का पिघलना और चुंबकीय क्षेत्र भी इस प्रक्रिया में भूमिका निभाते हैं.
- इन सभी कारणों से पृथ्वी की घूमने की गति या तो धीमी होती है या कभी-कभी तेज भी हो जाती है.
2020 की नई खोज
साल 2020 में वैज्ञानिकों ने एक नई और हैरान कर देने वाली बात बताई. उन्होंने पाया कि हाल के वर्षों में पृथ्वी की गति धीमी होने की बजाय तेज हो रही है. पिछले 50 सालों में यह सबसे तेज रफ्तार से घूम रही है. पहले माना जाता था कि पृथ्वी की रोटेशन धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन अब इसके उलट हो रहा है.
इस बदलाव से क्या असर पड़ेगा?
वैज्ञानिक अभी तक पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं कि पृथ्वी की गति क्यों तेज हो रही है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसका कारण ग्लेशियर का पिघलना हो सकता है, जिससे पृथ्वी पर पानी का वितरण बदल गया है. हालांकि, यह बदलाव शायद अस्थायी हो और आने वाले समय में पृथ्वी की गति फिर से धीमी होने लगे.
क्या हमें डरना चाहिए?
सामान्य लोगों के जीवन पर इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ने वाला है. लेकिन जो टेक्नोलॉजी बहुत सटीक समय पर काम करती है, जैसे GPS सिस्टम, स्मार्टफोन, कंप्यूटर और कम्युनिकेशन नेटवर्क, उन पर इसका प्रभाव हो सकता है. फिर भी, वैज्ञानिक ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए तैयार हैं. इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है, जब तक कि यह बदलाव इंसानों की गतिविधियों से न हो रहा हो.