मुंह देखते रह गए मोहम्मद यूनुस! Bangladesh में Election को लेकर EC ने कर दिया बड़ा खेला
Bangladesh में अगले साल यानी फरवरी 2026 में आम चुनाव (General Election) होने वाले हैं। इसकी जानकारी हाल ही में अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने दी थी। लेकिन इस बीच Election को शांतिपूर्ण और निष्पक्ष बनाने के लिए चुनाव आयोग (EC) ने एक नया प्लान तैयार किया है। जिससे Bangladesh की यूनुस सरकार को बड़ा झटका लगा है। इस बार Election में सेना, नौसेना और वायुसेना को भी कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए शामिल करने का प्रस्ताव है।
RPO में बदलाव का प्रस्ताव
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को चुनाव आयोग की एक अहम बैठक हुई, जिसमें Representation of the People Order (RPO) में बदलाव को मंजूरी दी गई। अगर यह प्रस्ताव कानून बनता है, तो फिर सेना और अन्य सशस्त्र बलों को चुनाव के दौरान कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बिना किसी अलग आदेश के तैनात किया जा सकेगा। यह बदलाव होने पर सेना के जवान मतदान केंद्रों पर ड्यूटी कर पाएंगे और जरूरत पड़ने पर बिना वारंट गिरफ्तारी भी कर सकेंगे, जैसे कि अभी पुलिस और अन्य सुरक्षा बल करते हैं।
पहले क्या था नियम?
Bangladesh में 2001 से 2008 के बीच RPO में सेना को कानून-व्यवस्था बल माना गया था, लेकिन 2009 में उन्हें इस परिभाषा से हटा दिया गया था। फिलहाल कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस, RAB, आंसर, BGB और कोस्ट गार्ड जैसे बलों को शामिल किया जाता है। RPO की धारा 87 के अनुसार, इन बलों को मतदान केंद्र और उसके आसपास 400 गज के दायरे में कार्रवाई करने का अधिकार है।
सेना की तैनाती का मतलब क्या है?
अब तक सेना को सिर्फ स्ट्राइकिंग फोर्स के रूप में तैनात किया जाता था यानी वे आसपास निगरानी रखते थे लेकिन मतदान केंद्र के अंदर काम नहीं करते थे। अगर RPO में बदलाव होता है, तो सेना को भी मतदान केंद्रों पर ड्यूटी देने और बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार मिल जाएगा।
प्रोफेसर यूनुस क्यों विरोध कर सकते हैं?
प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस पहले भी यह कह चुके हैं कि Election लोकतांत्रिक और स्वतंत्र माहौल में होना चाहिए, न कि सेना के दबाव में। उनका मानना है कि सेना देश की रक्षा के लिए है, न कि चुनाव कराने के लिए। उनके अनुसार, सेना को मतदान केंद्रों पर तैनात करना लोकतंत्र में सेना के दखल को बढ़ा सकता है, जो उचित नहीं है।
क्या बोले एक्सपर्ट ?
रिटायर्ड मेजर जनरल फ़ज़ले इलाही अकबर का मानना है कि अगर सेना को सिर्फ स्ट्राइकिंग फोर्स के रूप में रखा गया, तो संसाधनों और पैसों की बर्बादी होगी। उन्हें भी चुनाव में अन्य बलों के साथ समान ज़िम्मेदारी देनी चाहिए। वहीं, अर्थशास्त्री देबप्रिया भट्टाचार्य का कहना है कि पुलिस की क्षमता और मनोबल फिलहाल कमजोर है। इसलिए चुनाव को सुरक्षित और निष्पक्ष बनाने के लिए सेना की ज्यादा भूमिका होनी चाहिए। उनका सुझाव है कि सेना चुनाव से तीन महीने पहले ही अवैध हथियारों की धरपकड़ शुरू करे और चुनाव खत्म होने के 10 दिन बाद तक तैनात रहे।