Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

हिंद प्रशांत क्षेत्र का आर्थिक गुट

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आजकल जापान की यात्रा पर हैं वह देश में 4 देशों के संगठन क्वाड की बैठक में भाग लेने गए हैं लेकिन इस बैठक के होने से पूर्व उन्होंने अमेरिका के नेतृत्व में हिंद महासागर और प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों के आर्थिक संगठन की सदस्यता भी भारत को दिलाते हुए साफ किया ​कि हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में ऐतिहासिक रूप से भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है और गुजरात में दुनिया का सबसे पुराना लोथल बंदरगाह रहा है। दरअसल अमेरिका के नेतृत्व में जिंबारा हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों का संगठन बना है वह इस महासागरीय क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने का एक उपक्रम है।

01:34 AM May 25, 2022 IST | Aditya Chopra

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आजकल जापान की यात्रा पर हैं वह देश में 4 देशों के संगठन क्वाड की बैठक में भाग लेने गए हैं लेकिन इस बैठक के होने से पूर्व उन्होंने अमेरिका के नेतृत्व में हिंद महासागर और प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों के आर्थिक संगठन की सदस्यता भी भारत को दिलाते हुए साफ किया ​कि हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में ऐतिहासिक रूप से भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है और गुजरात में दुनिया का सबसे पुराना लोथल बंदरगाह रहा है। दरअसल अमेरिका के नेतृत्व में जिंबारा हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों का संगठन बना है वह इस महासागरीय क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने का एक उपक्रम है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आजकल जापान की यात्रा पर हैं वह देश में 4 देशों के संगठन क्वाड की बैठक में भाग लेने गए हैं लेकिन इस बैठक के होने से पूर्व उन्होंने अमेरिका के नेतृत्व में हिंद महासागर और प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों के आर्थिक संगठन की सदस्यता भी भारत को दिलाते हुए साफ किया ​कि हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में ऐतिहासिक रूप से भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है और गुजरात में दुनिया का सबसे पुराना लोथल बंदरगाह रहा है। दरअसल अमेरिका के नेतृत्व में जिंबारा हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों का संगठन बना है वह इस महासागरीय क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने का एक उपक्रम है। भारत के इस अमेरिकी नेतृत्व के आर्थिक संगठन में शरीक होने पर मिली-जुली प्रतिक्रिया हो सकती  है क्योंकि आजादी के बाद से भारत का यह नजरिया रहा है ​कि हिंद महासागर क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय रूप से शांति क्षेत्र घोषित होना चाहिए परंतु 80 के दशक से पहले तक इस क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति ऐसी नहीं थी जैसे कि पिछले एक दशक से बनी हुई है। चीन के आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने के बाद हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र की आर्थिक व सामरिक दोनों ही परिस्थितियों में अंतर आया है जिसकी वजह से दूर बैठा अमेरिका अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा के लिए चिंतित हो उठा  है। 
Advertisement
जाहिर तौर पर अमेरिका की अपनी कुछ विशिष्ट चिंताएं हो सकती हैं जिनका भारत से सीधा लेना-देना ना हो परंतु हिंद महासागर क्षेत्र की स्थिति से भारत का सीधा लेना-देना है और इसी वजह से संभवत: भारत ने इस 13 देशों के गुट में शामिल होना मंजूर किया है। यह 13 देश हैं ऑस्ट्रेलिया, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। जाहिर है यह सभी दक्षिण एशिया के देश हैं और चीन के साथ भी इनके आर्थिक संबंध बहुत गहरे हैं बल्कि हकीकत यह है कि चीन इन देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को जिस स्तर पर ले जाने के लिए उत्सुक दिखाई पड़ता है उसमें कहीं ना कहीं इन सभी देशों के अंदर श्रीलंका जैसी घबराहट भी परोक्ष रूप से देखी जा सकती है। 
सवाल पैदा हो सकता है कि क्या अमेरिका इसका लाभ उठाने के लिए इन सभी देशों को अपने पक्ष में करने के लिए जा रहा है। इसका उत्तर तो आने वाला समय ही देगा परंतु प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत किस महासागर क्षेत्र में अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की भावना से काम करेगा। भारत हकीकत को नहीं बदल सकता कि चीन उसका बहुत निकट का पड़ोसी है और उसके साथ उसके आर्थिक संबंध सीमा पर चुनाव होने के बावजूद बदस्तूर जारी हैं। व्यापार वाणिज्य देशों के बीच ऐसी अनिवार्यता है जिससे इनके लोगों का विकास सीधा जुड़ा हुआ है अतः यह आलोचना उचित नहीं है कि भारत-चीन सीमा पर तनाव के चलते व्यापार और वाणिज्य की गतिविधियां क्यों चालू है। भारत की शुरू से ही यह नीति रही है कि एशिया में भारत और चीन आपसी सहयोग के साथ विभिन्न क्षेत्रों में विकास कर सकते हैं परंतु चीन की नीति अपने सामर्थ्य जो कि मुख्य रूप से सामरिक है उसके बूते पर अपनी आर्थिक शक्ति के विस्तार की रही है जिससे हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में असंतुलन पैदा होने की संभावना बढ़ी है परंतु इसका अर्थ यह नहीं है किस क्षेत्र को सामरिक स्पर्धा का केंद्र बना दिया जाए और अमेरिका के नेतृत्व में कुछ अन्य देशों को मिलकर इसे अखाड़े में तब्दील कर दिया जाए। अजय भारत ने बड़ी चतुरता के साथ क्वाड की सदस्यता ग्रहण की और अब अमेरिका के नेतृत्व में 13 देशों के संगठन में शामिल होना केवल इसीलिए मजबूर किया लगता है जिससे महासागरीय क्षेत्र को सामरिक अखाड़ा ना बनाया जा सके। 
विश्व की बदलती परिस्थितियों के अनुसार उन्हीं नीतियों पर कायम नहीं रहा जा सकता जो 80 के दशक तक थी, इसके बाद दुनिया बदली है और यहां तक बदली है कि यह एक अलग हुई हो गई है जिसे चीन चुनौती देता लग रहा है और भारत एक बड़ी विश्व आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है अतः हिंद महासागर और प्रशांत महासागर क्षेत्र में इसकी आर्थिक गतिविधियां निर्बाध रूप से जारी रहनी चाहिए और बिना किसी डर के। हिंद प्रशांत आर्थिक संगठन या गुट का मतलब यह है दुनिया का 60 प्रतिशत से अधिक कारोबार इसी जलमार्ग से होता है और जिस तरह की परिस्थितियां विभिन्न वैश्विक मोर्चों पर बन रही हैं उन्हें देखते हुए इस व्यापारिक क्षेत्र में बिना किसी रूकावट के माल परिवहन की प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए जिससे दुनिया के विभिन्न देशों में उनकी आवश्यकता अनुरूप वस्तुओं या माल की सप्लाई होती रहे और वहां से तैयार माल दूसरे देशों को जाता रहे। इस दृष्टि से भारत की नीति हिंद महासागर क्षेत्र को शांति क्षेत्र बनाए रखने की है। 
हालांकि इसका स्वरूप बदला है। इस कदम को हम इस तरह भी देख सकते हैं ​कि भारत ने अमेरिका का साथ इसलिए देने का फैसला किया है जिससे विश्व स्तर पर विभिन्न देशों के बीच आपसी विश्वास पैदा हो सके और माल की सप्लाई में कोई व्यवधान ना आ सके और समय पर उनकी डिलीवरी हो सके। मगर चीन को यह समझना होगा कि उसकी ध्वज पट्टी की रणनीति कारगर नहीं हो सकती क्योंकि वह अकेला सभी अंतर्राष्ट्रीय नियमों को धत्ता बताते हुए अपनी मनमानी नहीं कर सकता और अपनी सामरिक ताकत के बूते पर आर्थिक गतिविधियों का मुंह नहीं मोड़ सकता। उसे समझना होगा ​कि वाणिज्यिक गतिविधियां आपसी सहयोग और विश्वास तथा आपसी हितों को आगे रखकर ही चलाई जाती हैं।
Advertisement
Next Article