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आर्थिक सर्वेक्षण के संकेत

बजट से एक दिन पूर्व रखे गये आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना की मार झेलने के बावजूद पटरी की तरफ बढ़ रही है और देश के आर्थिक मानक मजबूती का परिचय देने लगे हैं।

01:05 AM Feb 01, 2022 IST | Aditya Chopra

बजट से एक दिन पूर्व रखे गये आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना की मार झेलने के बावजूद पटरी की तरफ बढ़ रही है और देश के आर्थिक मानक मजबूती का परिचय देने लगे हैं।

बजट से एक दिन पूर्व रखे गये आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना की मार झेलने के बावजूद पटरी की तरफ बढ़ रही है और देश के आर्थिक मानक मजबूती का परिचय देने लगे हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र रहा है जिसने समूची अर्थव्यवस्था को अपने कन्धे पर उठाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई और कोरोना काल में इसकी वृद्धि दर बेरोक-टोक ऊपर की तरफ रही। इसका श्रेय निश्चित रूप से देश के किसानों को दिया जा सकता है जिन्होंने कृषि उत्पादन में कीर्तिमान स्थापित करते हुए तीस करोड़ टन का खाद्यान्न उत्पादन किया और 33 करोड़ टन का बागवानी उत्पादन किया। वर्ष 2021-22 में आर्थिक विकास वृद्धि की दर 9.2 प्रतिशत रहने की संभावना है जो 7.3 प्रतिशत नकारात्मक दर को पीछे धकेलते हुए धनात्मक घेरे में रहेगी। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आर्थिक चाल कोरोना से पहले की स्थिति में आ रही है जिसका लाभ सकल रूप में समूचे आर्थिक मानकों पर पड़ेगा। जहां तक राजस्व उगाही का सवाल है तो यह भी लगातार ऊंचाई की तरफ जा रहा है और वस्तु व सेवाकर (जीएसटी) की मद में उगाही उत्साहवर्धक हो रही है।
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कोरोना वर्ष में सरकार ने पूंजीगत खाते की मद में अधिक धन खर्च करके रोजगार की कमी को थामने की कोशिश की है परन्तु ये प्रयास पर्याप्त नहीं कहे जा सकते क्योंकि बेरोजगारी दर में पहले की अपेक्षा वृद्धि हुई है। इस दृष्टि से देखा जाये तो आगामी बजट में सरकार को अपने पूंजीगत खर्च में और वृद्धि करनी पड़ेगी। कोरोना काल में सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को थामने के लिए जो आर्थिक पैकेज दिये गये उनकी सार्वजनिक क्षेत्रों में जमकर आलोचना भी हुई मगर इसके बावजूद इन पैकेजों के सुखद परिणाम निकले हैं और भारत के निर्यात व आयात कारोबार दाेनों में ही वृद्धि हुई है जिससे विदेशी मुद्रा की आवक में रफ्तार बनी रही और भुगतान सन्तुलन सन्तोषजनक बना रहा। यदि गौर से देखें तो भारत की अर्थव्यवस्था को गड्ढे में जाने से रोकने में ग्रामीण या असंगठित क्षेत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके तार सीधे कृषि क्षेत्र से जाकर जुड़ते हैं। इसकी प्रतिछाया में संगठित क्षेत्र में उत्पादन बढ़ने में आसानी हुई और इसकी क्षमता में भी वृद्धि हुई परन्तु औद्योगिक उत्पादन क्षमता का अभी भी शत-प्रतिशत उपयोग नहीं हो पा रहा है जो रोजगार बढ़ाने से लेकर प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए बहुत जरूरी है।
सरकार ने आधारभूत क्षेत्र में निवेश में वृद्धि करके सन्तुलन बनाने की कोशिश की है मगर इस पर कर्जों के भार में भी वृद्धि होना बताता है कि सरकार को राजस्व उगाही के लिए अधिक स्रोतों की जरूरत पड़ेगी जबकि दूसरी तरफ निजी स्तर पर मांग की कमी होने का असर भी बाजार पर रहा है। इसके लिए सरकार को आम नागरिकों के हाथ में अधिक धन रहने की व्यवस्था करनी पड़ेगी  और ऐसा निजी आयकर की सीमा बढ़ाने या इसमें कटौती किये जाने से ही किया जा सकता है। हालांकि चालू वित्त वर्ष के दौरान कार्पोरेट क्षेत्र के मुनाफे में खासी वृद्धि हुई है मगर यह उसकी उत्पादन क्षमता के कम उपयोग से जुड़ी हुई है जिसे देखते हुए उसकी पूर्ण उत्पादन क्षमता के उपयोग के आधार पर बाजार में मांग को बढ़ा कर ही अर्थव्यवस्था अपने असली स्वरूप में उभर सकती है। चालू वित्त वर्ष के दौरान बैंकिंग क्षेत्र ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और कोरोना काल में नीचे की ओर जाती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए इसने सभी खतरे अपने सिर पर भी लिये हैं और बाजार में पूंजी की सुलभता में कमी नहीं आने दी है परन्तु निजी निवेश की वृद्धि दर इस अपेक्षा में नहीं बन पाई कि कार्पोरेट क्षेत्र अपनी शत-प्रतिशत उत्पादन क्षमता का उपयोग करता जिसकी वजह से रोजगार का संकट भी बीच में गरमाता रहा है। फिर भी कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अर्थव्यवस्था उतनी ज्यादा प्रभावित नहीं हो पाई जितनी की पहली लहर के दौरान हुई थी।
यह आर्थिक सर्वेक्षण संकेत दे रहा है कि सरकार को अपनी जन कल्याणकारी परियोजनाएं आगे जारी रखते हुए घेरलू मांग में इजाफा लाने के ठोस उपाय करने चाहिए। हालांकि सरकार का सकल वित्तीय घाटा चालू वर्ष के नवम्बर महीने तक 46.2 प्रतिशत पहुंच गया है और इस पर कर्जों का भार भी बढ़ कर सकल उत्पाद के अनुपात में 59 प्रतिशत के करीब पहुंच गया है परन्तु अर्थव्यवस्था में शुरू हुए सुधार से इसे पाटने में धीरे-धीरे सफलता मिलेगी, बशर्ते विकास वृद्धि की दर में उठान जारी रहे। वर्ष 2022-23 में वृद्धि दर के आठ से साढ़े आठ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया जा रहा है जिसे देखते हुए वित्तीय घाटे में तभी कमी होगी जब सरकार की राजस्व उगाही में वृद्धि होगी और अप्रैल से नवम्बर तक जिस तरह सकल राजस्व में वृद्धि दर 50 प्रतिशत के करीब रही है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि घाटे की पूर्ति क्रमवार होती जायेगी परन्तु इसके लिए सरकार को कुछ सख्त कदम उठाने भी पड़ सकते हैं। विनिवेश के माध्यम से यह क्षतिपूर्ति संभव नहीं है।
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