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अर्थव्यवस्था आैर बाजार का सच

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07:55 AM Aug 11, 2018 IST | Desk Team

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खुदरा महंगाई की दर बढ़ रही है। खाद्य वस्तुओं और तेल मूल्यों में लगातार बढ़ौतरी को जोड़कर देखा जाए तो महंगाई और भी विकराल रूप में दिखाई देगी। सामान की ढुलाई और परिवहन सेवाएं महंगी होने से खाने-पीने के उत्पाद भी महंगे हैं। दूसरी ओर डॉलर की तुलना में रुपया लगातार कमजोर होने से आरबीआई पर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव बना हुआ था और उसने एक अगस्त को अपनी तीसरी मौ​द्रिक समीक्षा में प्रमुख ब्याज दर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में आधार अंकों की वृद्धि कर दी। अब लोगों को होम लोन, आटो लोन, व्यक्तिगत ऋण के लिए अधिक ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा ही। इसका सीधा प्रभाव महंगाई पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है​ कि पूरी स्थिति का अध्ययन करने के बाद ही रेपो दरों में परिवर्तन किया गया है। आगामी लोकसभा चुनावों से पूर्व ऐसा निर्णय विवशता में ही किया गया है। खरीफ की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के सरकार के फैसले से मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ सकता है। कच्चे तेल की कीमतों पर तो हमारा कोई नियंत्रण नहीं है।

रुपए के गोता लगाने का असर देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा है। पिछले दो माह में इसमें 18 अरब डॉलर की गिरावट भी आई है। रुपए को मजबूत रखने या स्थिर रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा एक्सचेंजों में डॉलर की जमकर बिकवाली की गई। हालांकि भारत के इस कदम से अमेरिका भी नाराज है। उसका मानना है कि भारत की आयात जरूरतें पूरी करने के लिए 400 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है लिहाजा उसे इसको आैर बढ़ाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए लेकिन कई आर्थिक विशेषज्ञ सरकार को राय दे रहे हैं कि उसे अपना विदेशी मुद्रा भंडार अगले कुछ वर्षों में 750 से 1000 अरब डॉलर बढ़ा लेना चाहिए। अमेरिका का मानना है कि भारत अपने विदेशी मुद्रा भंडार के जरिये लगातार डॉलर को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। यही वजह थी कि पिछले वर्ष के अंत में अमेरिका ने भारतीय मुद्रा रुपए को अपनी निगरानी सूची में डाल दिया था। अमेरिका ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी संस्था कह रही है कि निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात करने वाली अर्थव्यवस्था के चलते भारत अपनी मुद्रा को जानबूझ कर मजबूत बनाए हुए है जबकि भारत का कहना है कि उसने दो दशक पहले ही अपनी मुद्रा की विनिमय दर तय करने का जिम्मा बाजार को सौंप दिया है।

रिजर्व बैंक के मुताबिक वह तभी बाजार में हस्तक्षेप करता है जब रुपए में गिरावट या उछाल दर्ज किया जाता है। यह भी आरोप लगाया जाता है कि भारतीय रिजर्व बैंक डॉलर की बिकवाली करके रुपए को कृत्रिम रूप से मजबूत बना रहा है लेकिन विशेषज्ञों का मानना यह भी है कि आरबीआई के पास इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है क्योंकि भारत निर्यात से कहीं ज्यादा आयात करता है। बढ़ती महंगाई और रुपए की घटती कीमत के बीच शेयर बाजार रिकार्ड स्तर पर झूम रहा है। बाजार रोज नई ऊंचाइयों को छू रहा है। पहली बार शेयर सूचकांक 38,000 के पार गया। सकारात्मक वातावरण तैयार तो हुआ है लेकिन निवेशक फिर भी मायूस हैं। बाजार की असली तस्वीर यह है कि निवेशकों का पोर्टफोलियो नहीं बढ़ रहा है। यह सही है कि सेंसेक्स, निफ्टी, बैंक निफ्टी रिकॉर्ड ऊंचाई पर है लेकिन निफ्टी के 17 शेयर 52 हफ्ते की ऊंचाई से 5 फीसदी नीचे, 12 शेयर 15 फीसदी नीचे और 5 शेयर 30-45 फीसदी नीचे हैं। निफ्टी के फिसड्डी शेयर भी 35 से 45 फीसदी फिसले हैं।

शेयर बाजार के खेल बहुत व्यापक हैं। शेयर बाजार की ऊंचाइयों से खुदरा निवेशकों को बहुत सजग रहने की जरूरत है। संस्थागत निवेश यदि लाभ के लिए शेयरों की बिकवाली करने लगे तो बाजार में गिरावट भी आ सकती है। छोटे निवेशकों के लिए म्युचुअल फंड आज भी अत्यधिक सुरक्षित निवेश का विकल्प है। यद्यपि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व के छठे पायदान पर पहुंच गई है आैर हो सकता है कि हमारी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए। ऐसा हो भी जाए तो खुशी मनाने वाली बात नहीं क्योंकि फ्रांस या ब्रिटेन की तुलना में हमारी जनसंख्या 20 गुनी है। भारत के सामने चुनौतियां बहुत हैं-जैसे बैंकों की खराब हालत, बुनियादी संरचनाओं में कमी, अकुशल प्रशासन और बेरोजगारी। अभी हमें बहुत लम्बा रास्ता तय करना है।

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