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अर्थव्यवस्था दबाव में लेकिन...

कोरोना वायरस के चलते पहले रिजर्व बैंक ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट पर कैंची चलाई और अब केन्द्र सरकार ने आम आदमी की बचत को झटका दिया है। छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में बड़ी कटौती कर दी गई है।

03:58 AM Apr 02, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना वायरस के चलते पहले रिजर्व बैंक ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट पर कैंची चलाई और अब केन्द्र सरकार ने आम आदमी की बचत को झटका दिया है। छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में बड़ी कटौती कर दी गई है।

कोरोना वायरस के चलते पहले रिजर्व बैंक ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट पर कैंची चलाई और अब केन्द्र सरकार ने आम आदमी की बचत को झटका दिया है। छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में बड़ी कटौती कर दी गई है। नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी स्कीमों पर ब्याज दर 0.70 फीसदी से 1.40 फीसदी की कटौती कर दी है। सरकार कर्मचारियों की भविष्य निधि योजना पर ब्याज दर पहले ही घटा चुकी है। कोई भी केन्द्र सरकार अपने कर्मचारियों के भविष्यनिधि पर ब्याज दर घटाने और लघु बचतों पर ब्याज दर घटाने के पक्ष में नहीं होती क्योंकि इससे सरकार की लोकप्रियता में कमी आने की आशंका रहती है। कोई भी सरकार कर्मचारी वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती और न ही बचत को हतोत्साहित करना चाहती है लेकिन अगर सरकार को ऐसा करना पड़ रहा है तो स्पष्ट है कि देश की अर्थव्यवस्था दबाव में है। कोरोना वायरस की महामारी के चलते विश्व की महाशक्तियों की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है, ऐसी स्थिति में भारत भी अछूता नहीं रह सकता। इस विषम परिस्थि​ति में अप्रैल-जून तिमाही में भारत की जीडीपी साल दर साल आधार पर 10.3 फीसदी घट सकती है। वहीं अमेरिका में लम्बे समय तक मंदी जारी रह सकती है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था इस वर्ष 11 फीसदी से ज्यादा सिकुड़ ​सकती है। जापान के विश्व बैंक व फाइनेंशियल सर्विसेज कम्पनी नोमुरा ने साधारण स्थिति में 2020 के ​लिए भारत की विकास दर के अनुमान को 4.5 फीसदी से घटा कर -0.5 फीसदी कर ​दिया है। भारत में बेरोजगारी का संकट तो काफी बड़ा होता जा रहा है। भारत में 69 मिलियन (6.9 करोड़) माइक्रो स्मॉल और मीडियम इंटरप्राइजेज यानी एसएमएमई है, जो लॉकडाउन के चलते बंद पड़े हैं। अगर ​स्थितियां और खराब हुईं तो इन यूनिटों की हालत खस्ता हो जाएगी।
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लॉकडाउन की पाबंदियों के बीच सरकार ने जनता में भरोसा पैदा करने के लिए अनेक राहतों की घोषणा की है। अर्थ विशेषज्ञ वर्तमान स्थिति को आर्थिक आपातकाल जैसी बता रहे हैं। वैसे अभी आर्थिक आपातकाल की वकालत करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यदि आर्थिक आपातकाल की परिस्थितियां बनती हैं तो आजाद भारत के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब संविधान के अनुच्छेद 360 का इस्तेमाल करके इसे लागू किया जाएगा। इससे पहले देश में 25 जून, 1975 को आंतरिक गड़बड़ी की आशंका में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लागू किया गया था। हमारे देश के संविधान में तीन तरह के आपातकाल का उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में देश में या किसी राज्य में आपातकाल लागू किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत आर्थिक आपात स्थिति लागू करने का प्रावधान है। 
मुझे लगता है कि अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है कि आर्थिक आपातकाल लागू किया जाए। देशवासी संयम और संकल्प के साथ एकजुट होकर महामारी के संकट पर विजय पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को इस वर्ष मंदी झेलनी पड़ेगी, इससे विकासशील देशों को ज्यादा मुश्किलें होंगी। साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने यह भी कहा है कि इस मंदी से चीन और भारत पर कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। मंदी से निपटने में भारत का ट्रैक रिकार्ड काफी अच्छा रहा है। लोगों में बचत का विचार काफी पुख्ता है। 
भारतीय अपनी जरूरतों को कम करके संकट की घड़ी के ​लिए कुछ न कुछ बचा कर जरूर रखते हैं। अगर भारतीयों को कुछ समय के लिए ब्याज कम भी मिलता है तो वह इसे भी झेल जाएंगे। जो राष्ट्र गरीबों, दिहाड़ीदार मजदूरों को भोजन देने के लिए उमड़ पड़ा है, उसके लिए चंद रुपए मायने नहीं रखते। कार्पोरेट सैक्टर बढ़-चढ़ कर प्रधानमंत्री केयर फंड में दिल खोलकर दान दे रहा है। संत कबीर ने तो परोपकार को बहुत बड़ा माना है और कहा था-
‘‘परमारथ हरि रूप है, करो सदा मन ताप।
पर उपकारी जीव जो, मिलते सब को धाप।’’
संत कबीर कहते हैं कि अगर संसार में कुछ स्थाई है, तो वह आदमी के द्वारा अर्जित किया हुआ यश जो परोपकार से मिलता है। 
‘‘धन रहे ना जोवन रहे, रहे ना गाम ना नाम
कबीर जग में जश रहे, करदे किसी का काम।’’
भारतीय संस्कृति का सर्वोत्तम जीवन मूल्य ही परमार्थ है। परमार्थ तभी होता है जब भावना हो। अर्थ तंत्र के दबाव को सहन करके भी भारतीय यथासम्भव देशवासियों को दे रहे हैं, यह एक शुभ संकेत है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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