आतंकवाद की परिभाषा
संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। संयुक्त राष्ट्र आज युद्ध रोकने में सक्षम नहीं है। वह एक ऐसी कागजी संस्था बनकर रह गई है जो केवल दुनिया भर में कराह रही मानवता पर चिंता जताते हुए कागजी बयान जारी करती रहती है। वैश्विक शक्तियों के हाथ खिलौना बनी इस संस्था का कोई फायदा नहीं है। आतंकवाद की न तो दो परिभाषाएं हो सकती हैं और न ही दोहरे मापदंड। समूचे विश्व को यह समझ लेना होगा कि आखिर वह कौन सी मानसिकता है जो विश्व को शांत नहीं रहने देना चाहती। प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग ऑफ नेशन्स’ की कार्यशैली की असफलता के बाद सारी दुनिया ने महसूस किया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति, प्रसार और सुरक्षा की नीति तभी सफल हो सकती है जब सम्पूर्ण विश्व अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर खुद को एक ईकाई समझकर अपनी सोच को विकसित करे।
आज एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है तो दूसरी तरफ इजरायल और फिलिस्तीन में घमासान चल रहा है। मौतों की संख्या बढ़ रही है। बच्चों और महिलाओं से भी क्रूरता की हदें पार की जा रही हैं। लाखों लोग घरबार छोड़ने को मजबूर हैं लेकिन दुनिया अपने अनुसार आतंकवाद की परिभाषा गढ़ रही है। अर्जेंटीना की चे ग्वेरा की दो मशहूर किताबों के कारण उन्हें क्रांतिकारी लेखक माना जाता है लेकिन दुनियाभर के लोग उन्हें आतंकवादी भी मानते हैं। जॉर्ज ऑरवेल ने भी कई किताबें लिखीं लेकिन उन्हें भी कुछ लोग आतंकवादी मानते हैं। दोनों ने ही अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसक साधनों का उपयोग करने का समर्थन किया। आज भी आतंकवाद के मुद्दे पर दुनिया में कोई एक मत नहीं। सवाल यह है कि ऐसा क्यों है। संयुक्त राष्ट्र अब तक आतंकवाद की स्वीकार्य परिभाषा तय नहीं कर पाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पी-20 के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए इस मुद्दे पर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। आतंकवाद को मानवता के विरुद्ध करार देते हुए इस बात पर दुख व्यक्त किया है कि अभी तक संंयुक्त राष्ट्र में आतकंवाद की परिभाषा तय नहीं हो सकी है। इसका फायदा उन लोगों को हो रहा है जो आतंकवाद को पाल रहे हैं।
इजराइल-हमास युद्ध का जिक्र किए बिना प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि आतंकवाद से निपटने के लिए एकजुटता जरूरी है। संघर्षों और टकराव से किसी का फायदा नहीं होने वाला। सच तो यह है कि भारत आतंकवाद से सर्वाधिक पीड़ित देश रहा है। कई वर्षों तक हम दुनिया को चीख-चीख कर बताते रहे लेकिन अमेरिका और अन्य देश आतंकवाद को भारत का आंतरिक मामला या दो देशों की दुश्मनी मानकर नजरअंदाज करते रहे। अमेरिका ने एक की तरह से किए गए अपराध को दो अलग-अलग नाम दिए। आतंकवाद का एहसास अमेरिका को 9/11 हमले के बाद ही हुआ। तब भी उसने युद्ध अनुमाद में बदला लेने के लिए अफगानिस्तान पर हमला बोला आैर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में उस पाकिस्तान को अपना साथी बनाया जो हमेशा से ही आतंकवाद की खेती करता रहा है।
आतंकवाद एक ऐसी विचारधारा है जो अपनी स्वार्थसिद्धि और राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हर प्रकार की शक्ति तथा अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग करने में विश्वास रखती है। अस्त्र-शस्त्रों का ऐसा घृणित प्रयोग प्रायः विरोधी वर्ग, समुदाय, सम्प्रदाय अथवा राष्ट्र विशेष को गैर-कानूनी ढंग से डराने, धमकाने, जान से मार देने, हिंसा के माध्यम से सरकार को गिराने तथा शासन तंत्रों पर अपना प्रभुत्व जमाने के उद्देश्य से किया जाता है।
आतंकवाद के आज कई स्वरूप हैं। आतंकवादियों के पास अत्याधुनिक मारक हथियार, यातायात तथा संचार के साधन उपलब्ध हैं। इजराइल की ताकतवर एजैंसी मोसार भी हमास के हमलों को रोकने में विफल साबित हुई। कई देश आज आतंकवादी संगठनों को हथियार और प्रशिक्षण दे रहे हैं। विकासशील राष्ट्रों में उत्पन्न जातीय धार्मिक विभेद और पृथकतावादी ताकतों ने आतंकवाद की छाया को और अधिक गहरा बना दिया है। नशीले पदार्थों के अवैध धंधों ने भी आतंकवाद को पालने का काम किया है। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो दूसरे देशों में अस्थिरता फैलाने के लिए आतंकवादियों को फंडंग करते हैं। आतंकवाद का एक रूप मानव बम भी है। यह एक ऐसा हथियार है जिसकी काट अब तक विश्व की किसी भी सुरक्षा एजैंसी, सरकार और सेना के पास नहीं है। मरने और मारने का संकल्प लिए विस्फोटकों से लैस कोई भी युवक या युवती एक बटन दबाकर विस्फोट कर देता है जिसमें उसकी खुद की जान तो जाती है और साथ में निर्दोष लोग भी मारे जाते हैं। आज भी दुनिया में कितने मानव बम घूम रहे हैं। कोई अनुमान नहीं लगा सकता।
आज इस्लामिक आतंकवाद बहुत खतरनाक हो चुका है। इस्लामी विचारधारा का जुनून इस सीमा तक सवार हो चुका है कि यह मरने मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस संघर्ष को वे जेहाद कहते हैं और जेहादी हंसते-खेलते शहरों को कब्रगाह बनाने में परहेज नहीं करते। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक परिभाषा और एक मानदंड होना बहुत जरूरी है। अगर आज भी पूरी दुनिया एकजुट न हुई तो फिर दुनिया का नक्शा बदलते समय नहीं लगेगा।